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मिट्ठू का घर (बाल-लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

गुड्डू को बहुत मज़ा आता था जब पड़ोस वाली चाची का मिट्ठू उसका नाम बार-बार रटता था। आख़िर उनके बेटे से ज़्यादा समय गुड्डू ही तो मिट्ठू मियाँ को दिया करता था, कभी उसकी पसंद का दाना चुगाकर या उसके साथ ख़ूब बातें करते हुए! बहुत ज़िद करने पर भी उसके मम्मी-पापा उसके लिए मिट्ठू नहीं ख़रीद रहे थे, जबकि चाची से उसने एक पुराना पिंजड़ा लेकर इंतज़ाम से रख दिया था। पापा को गुड्डू का पड़ोस में बार-बार जाना पसंद नहीं था। आज इतवार के दिन जब वह ज़िद पर अड़ा, तो पापा उसे मोटर-साइकल पर पार्क घुमाने ले जा रहे थे। रास्ते में ही सड़क के किनारे घने पेड़ों पर मिट्ठुओं की टोली को देख गुड्डू ख़ुश होकर बोला- "देखो पापा , मस्ती हो रही है मिट्ठुओं की। रुको पापा, मुझे देखना है इतने सारे मिट्ठू!"

पापा ने मोटर-साइकल रोक कर मोबाइल कैमरे से वीडियो बनाना शुरू कर दिया। गुड्डू पेड़ों पर चहचहाते मिट्ठुओं को एक डाल से दूसरी डाल पर कूंदते-फुदकते देख कर आनंदित हो रहा था। तभी एक ग्रामीण आदमी की आवाज़ सुनाई दी-"भाईसाहब, बच्चे के लिए एक मिट्ठू ख़रीद लो न, मेरे पास हैं घर पर! या कहें तो एक पकड़ कर दे दूँ!"

यह सुनकर गुड्डू पड़ोसन चाची के मिट्ठू के बारे में सोचने लगा।

"क्यों बेटा, एक मिट्ठू अपने घर ले चलें!" पापा ने कहा।

"नहीं पापा, यही मिट्ठू का असली घर है!" गुड्डू ने जवाब दिया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2016 at 10:48am
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर अपने प्रेरक अनुभव साझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब
Comment by रामबली गुप्ता on November 1, 2016 at 4:46am
बहुत ही सुंदर लघुकथा हुई है आद0 शेख शाहजाद साहब।दिल से बधाई लीजिए।सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 31, 2016 at 10:41am

मोहतरम जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब, परिंदों से प्यार करने की सीख देती सुन्दर लघुकथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by Samar kabeer on October 30, 2016 at 9:33pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,आपकी कघुकथा पढ़ कर मुझे अपना बचपन याद आ गया,मेरे पास भी एक मिट्ठू था जो मुझे रोज़ सुब्ह मेरा नाम लेकर जगाया करता था,एक दिन बिल्ली ने उसे मार दिया,में उसकी मौत पर बहुत रोया था,आज भी मुझे उसकी यद् मुझे सताती है,जवान होने पर फिर दिल चाहा कि एक मिट्ठू पल लूँ,मगर उस वक़्त वही विचार मेरे मन में आया जो आपकी लघुकथा की पंच लाइन है ।
बहुत ख़ूब वाह दिल छू लिया आपकी इस बहतरीन और सन्देशप्रद प्रस्तुति ने,ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 29, 2016 at 2:13pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।आपने लघुकथा के माध्यम से पशु पक्षियों की आज़ादी का सुन्दर संदेश दिया है।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2016 at 4:35am
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर पहली त्वरित प्रतिक्रिया व हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राहिला जी।
Comment by Rahila on October 28, 2016 at 7:39pm
बिल्कुल सही।बहुत अच्छे संदेश को देती हुयी रचना।बहुत बधाई आदरणीय आपको।सादर

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