For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

श्रृंगार से ये तन तुम, यूँ और मत सजाओ,
छूते हुए लगे डर, फौलाद अब बनाओ।।

मेहंदी सुहाग चूड़ा, कमजोरी की निशानी,
हाथों में लो कलम तुम, तलवार सा चलाओ।।

मेहँदी भी है पिया की, चूड़ी भी है पिया की,
कुछ तो दिमाग खोलो, अपना भी कुछ बताओ।।

जीवन गया ये अपना, पानी के भाव बहकर,
अपना नहीं रुका पर, बेटी का तुम बचाओ।।

देते हो दूसरों को, उपदेश जिंदगी के,
कुछ तो करो शरम अब, खुद भी तो आजमाओ।।

छोडो मुहब्बतों को, जीना नहीं है आसां,
है जिंदगी जहर जो, दो घूंट फिर पिलाओ।।

ये वक़्त भर गया है, हर जख्म दिल का मेरे,
पर दाग कह रहा है, मुझको न तुम भुलाओ।।

भीतर सभी के हमने, इक आग जलते देखी,
अब वक़्त आ गया है, लौ और भी बढ़ाओ।।

बनकर रही नदी तुम, सागर रहा ज़माना,
जीवन भरा "सरिता", सैलाब तुम वो लाओ ।।

सरिता पन्थी
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on August 9, 2016 at 11:09am

आदरणीया सरिता जी नारी को आधार बना कर कही गई ग़़ज़ल का स्‍वागत है आपके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार बहर पर गजल को देखा । 

मेहंदी सुहाग चूड़ा, कमजोरी की निशानी,
हाथों में लो कलम तुम, तलवार सा चलाओ।। इस शेर में आप स्‍वयं ही नारी के शृगांर को  कमजाेरी की निशानी बता रही है  कैसे ?

देते हो दूसरों को, उपदेश जिंदगी के,
कुछ तो करो शरम अब, खुद भी तो आजमाओ।।

 कुछ शर्म तो करो अब  खुद भी तो आजमाओ ।  शर्म को इस तरह से भ्‍ाी उपयोग में ले सकती हैंं आप ।  क्‍या आजमाने की बात हो रही हैै 

छोडो मुहब्बतों को, जीना नहीं है आसां,
है जिंदगी जहर जो, दो घूंट फिर पिलाओ।।

 है जह्र जिंदगी जो दो घूंट फिर पिलाओ  इस मिसरे में में जह्र (21) को  आप इस तरह भी प्रयोग कर सकती है 

बनकर रही नदी तुम, सागर रहा ज़माना,
जीवन भरा "सरिता", सैलाब तुम वो लाओ ।।  मकते में सरिता बह्र के अनुसार वज्‍न में नहीं है 

आपके प्रयास के लिये बहुत बहुत बधाई स्‍वीकार करेंं 

Comment by sarita panthi on August 7, 2016 at 9:23am
आदरणीय ब्रजेश कुमार बृज जी ह्र्दय से आभार आपका
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2016 at 9:48pm

बहुत सुन्दर बहुत सार्थक.....बधाई 

Comment by sarita panthi on August 6, 2016 at 7:01pm
आदरणीय इस ग़ज़ल को 221 2122 221 2122 मीटर में लिखने का प्रयास किया है मैंने आपसे सुधार की अपेक्षा रखती हूं

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 10:05am

आदरणीया सरिता जी , नारी अस्मिता कर अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइया ।

आदरणीया , यहाँ गज़ल के ऊपर बहर लिखने की परम्परा है , ताकि सीखने सिखना का उद्देश्य पूरा हो , बहर निभाने मे अगर कुछ कमी रह गई हो तो उचित सलाह जानकार दे सकें ।
मेरा अन्दाज़ा मात्रिक बहर ( बहरे मीर ) का  है । मक्ते के सानी  को पढने मे कुछ अटकाव है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आ. समर सर,मिसरा बदल रहा हूँ ..इसे यूँ पढ़ें .तो राह-ए-रिहाई भी क्यूँ हू-ब-हू हो "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. समर सर...ठीक कहा आपने .. हिन्दी शब्द की मात्राएँ गिनने में अक्सर चूक जाता…"
yesterday
Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service