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बचा कर रखेगी दुआ हादसों से,
करो अबसे तौबा बुरी आदतों से|
कदम अब बढे है जमाने से आगे,
नहीं रोक सकते हमें पायलों से|
करार तमाचा जवाबी मिलेगा,
रहें अपने घर में कहो दुश्मनों से|
गरीबों को मारा खुले आसमाँ ने,
बरसती है आफत यहाँ बादलों से|
लो मुश्किल हुआ अब यहाँ सांस लेना,
हुए शेर मुजरिम गलत फैसलों से|
सजा बन रहे है मरासिम हमारे,
मिलेगी मुहब्बत यहाँ फासलों से|
मुहब्बत ये मेरी खता बन गयी है,
न पिघला तेरा दिल मेरे आंसुओं से|
सरिता पन्थी
"मौलिक व अप्रकाशित "
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