For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक सादा ग़ज़ल-नूर

२१२२/ २१२२/ २१२२/ २१२ 
.दिल में गर तूफां उठे तो मुस्कुराना है कठिन
याद करना है सरल पर भूल जाना है कठिन. 
.
यादों के झौंके पे झूले झूलना कुछ और है,
यादों के अंधड़ को लेकिन रोक पाना है कठिन.
.
हिचकियाँ आई यूँ ही होंगी तुझे नादान दिल!
भूलने वालों को तेरी याद आना है कठिन.
.
आड़ दो हाथों की पाकर सर उठा लेती है लौ,
हाँ खुली छत पर दीये का जगमगाना है कठिन.
.
कैसे कैसे लोग अब बसने लगे हैं शह्र में
अब लगे है यां भी अपना आब-ओ-दाना है कठिन.
.
ज़ह्न-ओ-दिल पर छाई हैं यूँ आजकल दुश्वारियाँ
ख्व़ाब में भी आपसे मिलना मिलाना है कठिन.
.  
दोष था मेरा जो मैंने सर किसी के मढ़ दिया    
जानता सबकुछ हूँ लेकिन मान पाना है कठिन.
.
फैज़ है, सब के दिलों में जल रही रौशनी,  
ज़ुल्म ये है, इस तपिश को आज़माना है कठिन.   


.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 817

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 11, 2015 at 1:58pm

ek achhee gazal ke liye badhaee mitra

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 8, 2015 at 5:01pm

आदरणीय नूर जी ..आज तो इस ग़ज़ल को इक नहीं कई बार गुनगुनाया ..बैसे तो आपकी हर ग़ज़ल मुझे भाती है ..लेकिन इस ग़ज़ल को मुझे पसंद आयी ग़जलों में मैं सबसे वरीयता के क्रम में रखूंगा ..इसके भाव इसकी सादगी  और खास रूप से ये शेर आड़ दो हाथों की पाकर सर उठा लेती है लौ, 
हाँ खुली छत पर दीये का जगमगाना है कठिन.....तो सीधा दिल को छूता है ...आप ऐसा ही शानदार लिखते रहे इन्ही शुभकामनाओं के साथ सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2015 at 8:48am

शुक्रिया आ. उमेश जी ..
हाँ ..है टाइपिंग में मिस हो गया है ..
ठीक किये लेता हूँ 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2015 at 8:45am

शुक्रिया आ. सौरभ सर.
क्रिकेट का खिलाड़ी और फैन रहा हूँ. जब boundaries न आ रहीं हों तो सिंगल्स ले के स्ट्राइक रोटेट करते रहना चाहिए :)))) 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2015 at 8:43am

शुक्रिया आ. दिनेश भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2015 at 8:43am

शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी साहब 

Comment by umesh katara on May 7, 2015 at 9:54pm

अति सून्दर गजल है नूर साहब् वाहहहहहहहहहह


फैज़ है, सब के दिलों में जल रही रौशनी,  

ज़ुल्म ये है, इस तपिश को आज़माना है कठिन.   शायद टाइपिंग में चूक है
जल रही है रौशनी  होना चाहिये था अन्यथा न लें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 4:47pm

लगता है, ये ग़ज़ल होते-होते हो गयी है.. बुरा न मानियेगा, भाईजी, मतले में भी उला सानी का आचा-पाचा बनता है ! वही फेरबदल !

वैसे ग़ज़लों में ग़ज़लियत ऐसे ही आती है.

शुभ-शुभ

Comment by दिनेश कुमार on May 7, 2015 at 3:22pm
बहुत खूब आदरणीय निलेश भाई ... बहुत खूब।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 7, 2015 at 2:42pm

वाह! लाजवाब,लाजव़ाब गजल हुयी है,संशोधनों के बाद ख़ूबसूरती और बढ़ गयी है!

मुझे आप की ये अब तक की सबसे बेहतरीन गजल लगी! क्युकी यहाँ सिर्फ आ० ''नूर'' सर है,कोई दूसरा नही!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
12 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"डिलेवरी बॉय  मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service