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ग़ज़ल -- दिल है सीने से लापता शायद

दिल है सीने से लापता शायद
इश्क़ मुझको भी हो गया शायद

जिन्दगी उलझनों का नाम हुई
ले रहा इम्तिहाँ ख़ुदा शायद

बिन कहे वो मिरी करे इमदाद
ज़ेह्न में उसके कुछ पका शायद

हर घड़ी वो जो मुस्कुराता है.
जख़्म उसका कोई हरा शायद

झूठ को झूठ अब भी कहता मैं
मुझ में बाक़ी है बचपना शायद

रात भर करवटें बदलता हूँ
बोझ पापों का बढ़ गया शायद

कौन करता लिहाज़ अपनों का
जह्र रिश्तों में अब घुला शायद

नर्म लहज़े में आप बात करें
काम कुछ मुझसे आ पड़ा शायद

शेख ये सोच कर नमाज पढ़े
वक़्त-ए-आखिर हो कुछ नफा शायद

आप की दाद ने मुझे बख़्शा
शे'र कहने का होंसला शायद

किस लिये तू 'दिनेश' ख़ौफजदा
जबकि रब तेरा रहनुमा शायद


-- दिनेश कुमार ०९/०२/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by दिनेश कुमार on February 14, 2015 at 10:12am
शुक्रिया आदरणीय भाई खुर्शीद जी, डा आशुतोष मिश्रा जी, डा गोपाल नारायण जी, धर्मेंद्र कुमार जी, अजय शर्मा जी और भाई हरि प्रकाश दूबे जी, आप सभी साथियों का तहेदिल से शुक्रिया।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 13, 2015 at 9:12pm

अच्छे अश’आर हुए हैं दिनेश जी, दाद कुबूल करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 11:47am

आ० दिनेश जी

अत्यधिक मार्मिक शेर  i बधाई हो i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 11, 2015 at 3:02pm

झूठ को झूठ अब भी कहता मैं
मुझ में बाक़ी है बचपना शायद...क्या बात है 

शेख ये सोच कर नमाज पढ़े
वक़्त-ए-आखिर हो कुछ नफा शायद...आखिरी समय ही ये चिंता होती है  बहुत बढ़िया ..इस उत्कृष्ट ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय दिनेश जी 

Comment by khursheed khairadi on February 11, 2015 at 12:31am

जिन्दगी उलझनों का नाम हुई
ले रहा इम्तिहाँ ख़ुदा शायद

बिन कहे वो मिरी करे इमदाद
ज़ेह्न में उसके कुछ पका शायद

हर घड़ी वो जो मुस्कुराता है.
जख़्म उसका कोई हरा शायद

झूठ को झूठ अब भी कहता मैं
मुझ में बाक़ी है बचपना शायद

रात भर करवटें बदलता हूँ
बोझ पापों का बढ़ गया शायद

आदरणीय दिनेश जी मतला ता मक्ता शानदार ग़ज़ल हुई है |आपका दिनेश और मेरा 'खुरशीद' तखल्लुस हमें मक्ते पर लाकर हमख्याल कर देता है |बहुत बहुत बधाई |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |

Comment by ajay sharma on February 10, 2015 at 10:37pm

रात भर करवटें बदलता हूँ
बोझ पापों का बढ़ गया शायद......wah wah sher 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 10, 2015 at 6:56pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी सुन्दर ग़ज़ल , हार्दिक बधाई !

 

Comment by दिनेश कुमार on February 10, 2015 at 5:14pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय Sushil Sarna सर जी, आप के शब्दों ने बल दिया है। आभार
Comment by दिनेश कुमार on February 10, 2015 at 5:13pm
आदरणीय गिरिराज सर जी, हौसला बढ़ाने के लिए आभार। आप ने गलतियां बता कर मुझ पर उपकार किया है। दोनों सुझाव बिल्कुल सही हैं। आभार।
Comment by दिनेश कुमार on February 10, 2015 at 5:09pm
बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी।

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