For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ नये काफ़िये --- ग़ज़ल धार समय की --३

किस सागर में जान मिलेगी धार समय की

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की

तेरी यादों की बूबास घुलेगी ज्यूं ज्यूं

बढ़ती जाएगी त्यूं त्यूं महकार समय की

वक़्त कहाँ मिलता है दुनियावी पचड़ों से

मेरी ग़ज़लें सारी है बेकार समय की

वक़्त सिकंदर विश्व-विजेता सदियों से है

सुल्तानी लाफ़ानी है सरदार समय की

चंदा-सूरज गगन-पवन सब मौन खड़े हैं

आयु कौन बतलायेगा सुकुमार समय की

बैर भूलकर मीत बनें  सब  एक रहें सब 

सच मानो तो आज यही दरकार समय की 

'खुरशीद'-ओ-महताब सफ़ीने घूम रहे हैं

जाने कब होगी यह नदियाँ पार समय की

मौलिक व अप्रकाशित  

 

Views: 870

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:49am

आदरणीय गिरिराज सर ,शकूर सर ,दिनेश जी , श्याम नारायण जी ,राम शिरोमणि जी , जवाहर लाल सिंह साहब , आलोक मित्तल साहब आप सभी की मुहब्बत मेरा सरमाया है | तहेदिल से शुक्रिया |सादर |

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:44am

आदरणीय गोपालनारायण सर , मैं आप सभी गुणीजनों की छाया में ग़ज़ल का साधक ही बने रहना चाहता हूं क्यूंकि आदरणीय हबीब कैफ़ी साहब ने सस्नेह फ़रमाया था कि ' जो ग़ज़ल की बादशाहत का दावा करे, वो ग़ज़ल को सबसे कम जानने वालों में शुमार हो जाता है '

सादर | 

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:39am

आदरणीय सौरभ सर , ग़ज़ल की दूसरी एवं तीसरी किश्त ऑनलाइन रिप्लाई बॉक्स पर काफ़ियों की नाव पर सवार होकर सीधे ही उतरी थी |इन दोनो में काग़ज़-क़लम तथा तक्ती बगैर ज्यूं की त्यूं सीधे जहन से रिप्लाई बॉक्स पर उतरे अशहार है |आप सभी को ये  कच्ची ग़ज़लें पसंद आ जाना ही इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है | आपकी इस्लाह के बाद समरसता (monotony)  का सोंदर्य चरम पर है ,पाठक आप द्वारा सँवारे गये रूप  को स्वीकार करेंगे तो अति कृपा होगी |सादर नमन |

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:30am

आदरणीय ,मिथिलेश सर ,हरिप्रकाश जी सर , अनुराग प्रतीक साहब ,आप सभी का स्नेह इसी तरह बना रहें |सादर आभार |

Comment by Alok Mittal on January 4, 2015 at 8:02pm

वाःह्ह वाह्ह्ह आदरणीय बहुत शानदार ग़ज़ल कही आपने

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 4, 2015 at 6:49pm

बैर भूलकर मीत बनें  सब  एक रहें सब 

सच मानो तो आज यही दरकार समय की 

यही है मांग समय की .... बेहतरीन सन्देश देती हुई गजल!

Comment by ram shiromani pathak on January 4, 2015 at 3:22pm
वाह खुर्शीद साहब ज़ोरदार ग़ज़ल।।हार्दिक बधाई आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 10:52am

वाह लाजवाब जनाब खुर्शीद साहब लाजवाब बहुत बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत गज़ल के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2015 at 8:43pm

वाह भाई खुर्शीद जी , क्या बात है , काफियों की बरसात ही हो गई , हर शेर लाजवाब हैं ! आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by दिनेश कुमार on January 3, 2015 at 7:20pm
जितनी तारीफ़ की जाए, कम है। वाह वाह वाह ...!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service