For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- भाग २ धार समय की 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)

किस सागर में  जान मिलेगी  धार  समय की 

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की 

युगों युगों तक फैला है कुहसार  वसन  का                       कुहसार =पर्वतांचल 

कौन अज़ल से  बाँध रहा  दस्तार  समय की                    दस्तार = पगड़ी 

नोक कलम की  पर रखते हैं  काल तीन हम 

केवल हमने  स्वीकारी  ललकार  समय की 

ख़ार दर्द के  चुनकर गीत  उगायेंगे  हम 

कर जायेंगे  वादी  हम गुलज़ार  समय की 

तू  ऊषा की लाली   मैं संध्या  का केसर 

तेरे मेरे   बीच खड़ी  दीवार  समय की 

मोल जानते  हैं माटी का  हम बंजारे 

धाक जमेगी  क्या हम पर  ज़रदार  समय की                ज़रदार = धनी \मालदार 

मान गँवाकर   सोना -चाँदी   मिट्टी समझो 

रूह खरीदोगे क्या तुम  ख़ुद्दार समय की 

ये माह-ओ-' खुरशीद ' सितारे  इस अंबर के 

सदियों से करते  आये  बेगार समय की 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 626

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:28am

आदरणीय गिरिराज सर ,आदरणीय सौरभ सर  आप जैसे विशाल बरगदों की छाया , कलम को सदा तरोताज़ा रखती है |आशीर्वाद बनाये रखियेगा |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:26am

आदरणीय हरिप्रकाश जी सर सादर  आभार  स्नेह बनाये रखियेगा |आदरणीय सुशील सरना जी सर हार्दिक आभार आपके स्नेह अनमोल है |सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2015 at 8:28pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , गज़ल की दूसरी किश्त भी बे मिसाल हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

तू  ऊषा की लाली   मैं संध्या  का केसर 

तेरे मेरे   बीच खड़ी  दीवार  समय की 

ये माह-ओ-' खुरशीद ' सितारे  इस अंबर के 

सदियों से करते  आये  बेगार समय की   ---- बहुत खूब ! आदरणीय बधाई

Comment by Sushil Sarna on January 3, 2015 at 3:38pm

तू ऊषा की लाली मैं संध्या का केसर
तेरे मेरे बीच खड़ी दीवार समय की

उफ्फ गजब की कल्पना और शानदार प्रस्तुति … हम दिल से आपकी इस प्रस्तुति को सलाम करते हैं आदरणीय … हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2015 at 7:16am

तीनों कालों को हम रखते कलम-नोंक पर
केवल हमने स्वीकारी ललकार समय की

और
सोना-चाँदी मिट्टी है जब मान गया तो  
क्या तुम रूह खरीदोगे ख़ुद्दार समय की

उपर्युक्त बदलाव कैसे रहेंगे, बताइयेगा. हमने बस अपनी कही भर है. अलबत्ता, प्रस्तुति के इस वाले भाग में वाकई ग़ज़ल हुई है, भाई ! फिरभी गीतात्मकता के देसीपन की छौंक खूब लगी है !  

युगों युगों तक फैला है कुहसार वसन का
कौन अज़ल से बाँध रहा दस्तार समय की

तू ऊषा की लाली मैं संध्या का केसर
तेरे मेरे बीच खड़ी दीवार समय की

वाह वाह वाह !

और फिर मक़्ता में अपने नाम को क्या ही ख़ूबसूरती से पिरोया है आपने, भाई ! बहुत खूब !!

Comment by Hari Prakash Dubey on January 2, 2015 at 6:32pm

रूह खरीदोगे क्या तुम  ख़ुद्दार समय की .......आदरणीय खुरशीद जी , जगब की कल्पना , सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई !

Comment by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 2:50pm

आदरणीय गोपालनारायण जी सर ,इसी आशीर्वाद और इस्लाह के प्रसाद की चाह इस मंच पर खींच लाती  है |धन्य है आपकी कलम |अगर आपकी अनुमति हो तो मैं आपके इस स्नेह-प्रसाद को अपने शेर के ऊला मिसरे के रूप में प्रयोग कर लूं |इतना  कृपाकांक्षी तो शायद यह अनुज होगा ही |सादर अभिनन्दन 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 2, 2015 at 1:59pm

नोक  कलम की प्रखर काल त्रय  पर हम रखते

केवल हमने स्वीकारी ललकार समय की   -------------- वामनकर जी की  इच्छा मैंने पूरी कर दी i सादर i  बहुत बहुत बधाई i

Comment by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 1:57pm

आदरणीय  सोमेश जी , मिथिलेश सर जी  हार्दिक आभार |

आदरणीय मिथिलेश जी " तीनों काल कलम की नोक पे'  हम रखते हैं "  करता हूं तो पे की मात्रा गिरानी पढ़ेगी ,अगर यह रूप पहले वाले से कुछ स्वीकार्य हो तो मंच की अनुमति चाहूँगा | सादर 

Comment by somesh kumar on January 2, 2015 at 11:00am

तू  ऊषा की लाली   मैं संध्या  का केसर 

तेरे मेरे   बीच खड़ी  दीवार  समय की 

मोल जानते  हैं माटी का  हम बंजारे 

धाक जमेगी  क्या हम पर  ज़रदार  समय की \बहुत सुंदर प्रस्तुति भाई जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय नीलेश जी "समझ कम" ऐसा न कहें आप से साहित्यकारों से सदैव ही कुछ न कुछ सीखने को मिल…"
15 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय गिरिराज जी सदैव आपके स्नेह और उत्साहवर्धन को पाकर मन प्रसन्न होता है। आप बड़ो से मैं पूर्णतया…"
15 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना की विस्तृत समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार व्यक्त करता हूँ।…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. बृजेश जी मुझे गीतों की समझ कम है इसलिए मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लीजियेगा.कृष्ण से पहले भी…"
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. रवि जी ,मिसरा यूँ पढ़ें .सुन ऐ रावण! तेरा बचना है मुश्किल.. अलिफ़ वस्ल से काम हो…"
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. रवि जी,ग़ज़ल तक आने और उत्साह वर्धन का धन्यवाद ..ऐ पर आपसे सहमत हूँ ..कुछ सोचता हूँ…"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अनुज बृजेश , प्रेम - बिछोह के दर्द  केंदित बढ़िया गीत रचना हुई है , हार्दिक बधाई आदरणीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई  ग़ज़ल पर उपस्थिति  हो  उत्साह वर्धन  करने के लिए आपका…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश ,  ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभार , मेरी कोशिश हिन्दी शब्दों की उपयोग करने की…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय अजय भाई ,  ग़ज़ल पर उपस्थिति हो  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service