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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

बाप साँसे बस दो चार सँभाले हुए हैं
तब से बेटे बंगले कार सँभाले हुए हैं

जिसने रद्दी कुछ अखबार सँभाले हुए हैं
हाँ उन्ही बच्चों ने घरबार सँभाले हुए हैं

आशियाँ टूट चुका इश्क़ का फिर भी लेकिन
हम वफ़ा की इक दीवार सँभाले हुए हैं

शाह तो खोये रंगीनी में हरम की यारो
आप जंजीर की झंकार सँभाले हुए हैं

मुल्क को लूट रहे जितने भी थे ख़ैरख़्वाह
मुल्क को कुछ ही वफादार सँभाले हुए हैं

आपदा के जितने पीड़ित थे उनको बस
सुर्ख़ियों में कुछ अख़बार सँभाले हुए हैं


गुमनाम पिथौरागढ़ी

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2014 at 4:55am

शाह तो खोये रंगीनी में हरम की यारो
आप जंजीर की झंकार सँभाले हुए हैं

आपदा के जितने पीड़ित थे उनको बस
सुर्ख़ियों में कुछ अख़बार सँभाले हुए हैं --- --------बहुत बढ़िया , आ. गुमनाम भाई दिली बधाई स्वीकार करें

Comment by gumnaam pithoragarhi on November 9, 2014 at 9:16pm
dhanyawaad dosto bas koshish kar raha hoon ................. baaki jimmedaari aap logo ki .......
Comment by somesh kumar on November 9, 2014 at 5:28pm

आप की गज़ले ,पहले फ-बुक पे भी पढ़ता रह हूँ ,हमेशा गहरा और ज़ोरदार लिखते हैं ,बधाई ,

Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:09pm

शाह तो खोये रंगीनी में हरम की यारो
आप जंजीर की झंकार सँभाले हुए हैं

मुल्क को लूट रहे जितने भी थे ख़ैरख़्वाह
मुल्क को कुछ ही वफादार सँभाले हुए हैं

आपदा के जितने पीड़ित थे उनको बस
सुर्ख़ियों में कुछ अख़बार सँभाले हुए हैं///////

ज़ोरदार कहन आदरणीय  गुमनाम भाई  //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by gumnaam pithoragarhi on November 8, 2014 at 6:36pm
धन्यवाद सर आपका प्रोत्साहन ऊर्जा देता है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 7, 2014 at 11:08pm
आदरणीय गुमनाम जी, बढ़िया गज़ल केलिए बधाई......

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2014 at 11:06pm
आपकी इस ग़ज़ल पर दिल से दाद दे रहा हूँ,भाई गुमनाम जी.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2014 at 7:04pm

सुन्दर गजल हुई है भाई . मुबारक हो .

Comment by gumnaam pithoragarhi on November 7, 2014 at 5:03pm
dhanywaad sir yograaj ji,aapne saraha mera utsaah duguna ho gaya ,,,,,, shyam ji aapko rachna pasand aai shukriyaa.........

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 7, 2014 at 12:19pm

//शाह तो खोये रंगीनी में हरम की यारो
आप जंजीर की झंकार सँभाले हुए हैं//

ग़ज़ल बढ़िया हुई है आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी।

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