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हम जैसे सीधे सादो को क्यूँ बहकाते हो तुम

   2222          2222        2222  22

चलते चलते इन राहों में जब मिल जाते हो तुम

जाने क्या हो जाता है जो यूं सकुचाते  हो तुम

 

तेरी आँखों में लगता है काला कोइ जादू

जिसपे नजरें पड़ जाती उसको भरमाते हो तुम

 

इक पल को आते हो छत पर फिर गुम हो जाते हो

क्या बच्चो के जैसा ही हमको बहलाते हो तुम

 

उजला उजला योवन तेरा फूलों सा है भाये

क्यूँ छुईमुई जैसा छू लेने पर मुरझाते हो तुम

 

तेरी इन मादक आँखों से मदिरा छलका करती

हम जैसे सीधे सादो को क्यूँ बहकाते  हो तुम

 

गुल बागों की रौनक हैं उनको महकाया करते

घुलकर साँसों में जीवन को महकाते हो तुम

 

सागर लहरों में इक नैया ज्यों हिचकोले खाए

पागल हो मन जब इक नागिन सा लहराते हो तुम

 

चंचल मन मदमाता योवन नीली नीली आँखें

तिरक्षी नजरों से प्रेमी तन को ललचाते हो  तुम

मौलिक व अप्रकाशित 

 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2014 at 12:47pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ..आपकी उत्साह बढाने वाली इस प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2014 at 12:47pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ..आपने मेरी रचना बार बार पढी ..मुझे बेहद सुखद अहसास मिला ..इन्ही हौसलों से मैं उड़ने की कोशिस करूंगा  सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2014 at 12:45pm

आदरणीया मंजरी जी ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2014 at 12:45pm

आदरणीय गोपाल सर ..आपके इन शब्दों ने मेरी रचनाधर्मिता को नव उर्जा से लवरेज किया है ..आपका आशीष यूं हे मिलता रहे ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2014 at 11:45am

उजला उजला योवन तेरा फूलों सा है भाये

क्यूँ छुईमुई जैसा छू लेने पर मुरझाते हो तुम

वाह... क्या कहने आ० भाई आशुतोष जी  l इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 4, 2014 at 11:19am

बहुत ही सुंदर गजल आदरणीय डा.आशुतोष जी, बार-बार पढ़ी बहुत खूब, आपको दिली बधाई

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 8:28pm
आदरणीय डॉक्टर आशुतोष जी कोमल सी सुन्दर ग़ज़ल। बहुत बहुत बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 7:27pm

मित्र आपकी

सुकुमार कविता से प्रसाद जी याद  आगये - वे कहते है - तुम कनक किरण  के अन्तराल में लुक-छिप  कर रहते हो क्यों  ? हे ! लाज भरे सौन्दर्य बता दो मौन बने रहते हो क्यों ?

सादर i                              

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