For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभी सुहाग कि मेहंदी हटीं न हाथों से

१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२

अभी सुहाग कि मेहंदी हटीं न हाथों से

जहर उगलने लगे हैं बशर तो बातों से

जो घूमते थे सदा तान सीना  जंगल में

वो शेर टूटे हैं जंगल में अपनी मातों से

हयात रो के गुजारी तमाम जनता नें

कहाँ ये लात के हैं भूत मनते बातों से ?

सुना है आज वो  संसद है इक मंदिर सी

 सुना था पहले जो चलती थी घूंसे लातों से

गले न मिलते हैं अब लोग इस सियासत में

कहीं न छीन ले कुर्सी ही कोई घातों से

है जात पांत से उनका गुरेज दिखलावा

चली है जिनकी सियासत ही जात पांतो से

 सियाह रातें ये देकर हमें विरासत में

कहें दिवाली मना के दिखा बताशों से

पिए हैं घूँट जो कडवे अभी तलक यारों

उन्हें नसीब समझ मत तू इन कयासों से

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 9, 2014 at 5:14pm

आदरनीय जीतेन्द्र जी .,आदरणीय गोपाल सर , अरुण जी, आदरणीय केवल जी , एवं आदरणीय शिज्जू जी ..किसी कारन वश दो तीन दिनों से दूर था ..आप सभी का स्नेह मुझे और मेरी रचना को मिला इसके लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर नमन के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:47pm

बहुत बढ़िया आदरणीय डॉ आशुतोष सर सादर बधाई स्वीकार करें

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 7, 2014 at 6:53pm

आ0 आशुतोष भाईजी,   बेहतरीन गजल हुई है।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:02pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2014 at 12:07pm

मित्र आशुतोष जी

बेहतरीन गजल उतरी है

अभी सुहाग कि मेहंदी हटीं न हाथों से

जहर उगलने लगे हैं बशर तो बातों से

जो घूमते थे सदा तान सीना  जंगल में

वो शेर टूटे हैं जंगल में अपनी मातों से

i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 7, 2014 at 9:09am

वाह! बहुत खूब, आपकी गजल का हर शेर सामयिक हुआ है आदरणीय डा.आशुतोष जी

पिए हैं घूँट जो कडवे अभी तलक यारों

उन्हें नसीब समझ मत तू इन कयासों से...........बहुत खूब, कमाल. दिली बधाई आपको

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 9:05am

आदरणीया कल्पना जी ..मेरी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए दिल से हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by कल्पना रामानी on July 6, 2014 at 10:26pm

हयात रो के गुजारी तमाम जनता नें

कहाँ ये लात के हैं भूत मनते बातों से ?....बिलकुल सही कहा

शानदार गजल हुई है  आदरणीय आशतोष मिश्रा जी, दिली बधाई स्वीकार कीजिये  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service