For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसे कह दूं हिंद हूं मैं

चीन हूं या अमरीका हूं

यूरोप शुष्क भावों की धरती

या अंध देश अफ्रीका हूं

प्रिय विछोह के विरह ताप से

सहस्‍त्र युगों तक तप्‍त रही मैं

निर्जनता के दु:सह शाप से

सदियों तक अभिशप्‍त रही मैं

लखकर तब मेरे विषाद को

दृग केशव के भर आए थे

असंख्‍य यक्ष गंधर्वों ने मिलकर

अश्रु के अर्ध्‍य चढ थे

मुरली से फिर जीवन फूटा

उल्‍लासित दशों दिशाएं थी

ओढ ओस की झीनी चदरिया

झूमी उनचास हवाएं थी

जागा स्‍वर जीवन का जल में

जागी रचना फिर अंबर में

कूदे छौने, थिरकी हिरणें

संग सजी सोने सी किरणें

हुई नहीं पूरी थी फिर भी

मेरी कामना, मेरी साधना

मानव, तुझे पाने की खातिर

तडप रही थी मेरी प्रार्थना

फिर मानव तू अवतीर्ण हुआ

सपना मेरा पूर्ण हुआ

दुख दर्द सकल अब दूर हुए

खुशियों से परिपूर्ण हुए

मिल गया दर्द को अदभुत विराम

बन गए व्‍यथा नयनाभिराम

हो गए भाव नीरस ललित

बनी रचना अक्षय ललाम

फिर मानव तू ही राम बना

औ वृंदा का घनश्‍याम बना

बने तुम्‍हीं नानक, पैगंबर

तू ही मेरी की संतान बना

कैसे बांटूं अब ममता को

काटूं किन तलवारों से

तुम लगे बांटने क्‍यांकर मुझको

प्रेरित हो किन ओछे विचारों से

मैं करूणा का दीपक जलता

मुझे हरपल यूं ही जलने दो

कृपा करो हे वीर व्रती अब

मुझे धरती ही बस रहने दो

Views: 524

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on October 15, 2012 at 1:11pm

आप सभी की उपस्थिति से आनंदित हूं, बताई गई त्रुटियों को सुधारने की कोशिश निश्चित रूप से करता रहूंगा, सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 7:56pm

फिर मानव तू अवतीर्ण हुआ

सपना मेरा पूर्ण हुआ

दुख दर्द सकल अब दूर हुए

खुशियों से परिपूर्ण हुए

धरती कि अभिलाषा को प्रकट करती सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें आद. राजेश कुमार झा जी.

Comment by Rekha Joshi on October 10, 2012 at 7:36pm

फिर मानव तू ही राम बना

औ वृंदा का घनश्‍याम बना

बने तुम्‍हीं नानक, पैगंबर

तू ही मेरी की संतान बना,सुंदर भाव लिए हुए इस रचना पर हार्दिक बधाई राजेश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2012 at 6:14pm

भाई राजेश जी, धरती के मनोभाव को अभिव्यक्त करती आपकी प्रस्तुत रचना अपने भावों के हिसाब से बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है. शिल्प के हिसाब से आप यदि इस रचना की पंक्तियों को मात्राओं का नियंत्रण दे दें तो इसका प्रवाह और सहज हो जाय. आपकी रचनाओं का कैनवास सदा से बड़ा होता है.  टंकण त्रुटि की ओर भी, भाईजी, संवेदनशील रहें. 
इस भाव-रचना की प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2012 at 12:39pm
राजेश कुमार झा जी आपकी यह कविता मन्त्र मुग्ध कर गई उन्नत भाव प्रवाह ...वाह कहीं कहीं टंकण त्रुटी हुई है ठीक कर लीजिये 
अश्रु के अर्ध्‍य चढ थे-----इसमें आप ने शायद चढ़ाए थे लिखा होगा जो पोस्ट के टाइम गलत हो गया होगा ऐसा मैं मानती हूँ ठीक कर लीजिये 

Comment by Vinita Shukla on October 10, 2012 at 12:07pm

बहुत सुंदर! धरती माँ की पीड़ा का मार्मिक बयान. बधाई स्वीकार करें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 11:16am

आदरणीय राजेश झा जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर भावभिव्यकती
बधाई स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 10, 2012 at 9:50am

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई भाई श्री राजेश कुमार झा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2012 at 5:35pm

बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ. राजेश कुमार झा जी ,

धरती माँ की वेदना कि इतनी सुन्दर भावाभिव्यक्ति पढ़ ह्रदय आनंदित हो गया , आपकी लेखनी को साधुवाद ..

असंख्‍य यक्ष गंधर्वों ने मिलकर

अश्रु के अर्ध्‍य चढ थे........................बहुत सुन्दर 

इसे प्रवाह में लाने हेतु क्या ऐसे लिखना उचित होगा..

"असंख्य यक्ष गन्धर्वों नें मिल 

अश्रु अर्घ्य चढ़ाए थे ."

मानव, तुझे पाने की खातिर

तडप रही थी मेरी प्रार्थना...वाह 

फिर मानव तू ही राम बना

औ वृंदा का घनश्‍याम बना

बने तुम्‍हीं नानक, पैगंबर

तू ही मेरी की संतान बना... बहुत सुन्दर.

हर बंद बहुत सुन्दर भाव समेटे है, बार बार पढने का मन हो रहा है. हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर .... पर इस प्रस्तुति को काव्य कि दृष्टि से अभी थोडा सा और साधने की आवश्यकता मुझे लगती है.

शुभकामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service