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एहसास (कविता)

बदलते मौसम-से बदल गए 

बढाते हुए कदम और आगे बढ़ गए 

कौन कहता है कि हरजाई हो 

बदलना था तुमको और तुम बदल गए|

छूट गए गलियारे कितने ही! 

रूठ गए सुखद पल उतने ही 

अब बहार आये लगता नहीं है 

 क्यारियाँ महके लगता नहीं है| 

नहीं! नहीं! कुछ अलग नहीं हुआ है 

दुनिया का दस्तूर ही तो निभाया है 

भावनाओं का कुचलना स्वाभाविक था 

यूँ कदम-तले रौंद देना ही ठीक था | 

खुश हैं गलियारे तुम्हारे करीब के 

क्या गम करना जो न थे कभी नसीब से 

नदी की तरह बस बहते रहना 

आगे बढ़ना पीछे न लौटना |

सागर करता है इंतज़ार सबका 

अंत वही होता है जो तय होता है नसीब का 

चलने का नाम ही तो जीवन है 

और समय कब देता कोई ऑप्शन है? 

मौलिक, अप्रकाशित अप्रसारित | 

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