For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts (1,174)

कितना बदल गया इंसान

जाने क्या हो गया है
आजकल के इंसान को .
पेड काट के आता है
बिल्डिंग बना जाता है|

मार्बल मकराना पत्थर
खूब अच्छे से पहचानता है
बस बुढे बाप की
बढ़ती पथरी नहीं देख पता |

स्वार्थ जलन मोह धन वासना
लक्ष बन जाता है
गौर से देखो यारो इंसान
जानवर से भी पीछे नज़र आता है |



लेखक :- आनंद वत्स .

सह्रदय आभार- आदरणीय बब्बन पाण्डेय जी ..आपसे प्रेरणा मिली है |

Added by Anand Vats on June 26, 2010 at 3:00pm — 4 Comments

अब गोरैया कहां जायेगी

(महानगरों की आवास समस्या पर ...)

पहले

घर के आँगन में भी

बना लेती थी

गोरैया अपना घोसला ॥



दाने की खोज में

भूलकर/भटककर

पहुँच गयी एक गोरैया

महानगर में ॥



पेड़ नहीं थे वहां

कहां बनाती अपना घोसला ॥



बिजली का खम्भा ही

एकमात्र विकल्प था

तिनका -तिनका जोड़ कर

बनाया अपना घोसला ॥



फिर एक दिन

बिजली कर्मियों ने

नष्ट कर दिया उसका घोसला ....

अंडे फूट गए ॥

अब गोरैया कहां जायेगी… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 11:00pm — 5 Comments

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दिल में उतर जाओगे ,

हर कदम पर साथ में पाओगे ,

मगर इसके लिए कुछ करना होगा ,

दो शब्द प्यार के बोलना होगा ,

भूलना होगा वो सब नफरत भरे शब्द ,

भूलने के बाद सोचने की जरुरत नहीं ,

कारण, नफ़रत सोचने के लिए नहीं होती,

सोचने के लिए तो बस प्यार होता हैं ,

मेरी बातो पे विश्वास ना हो तो ,

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दिल में उतर जाओगे,

( राणा जी के सुझाव के अनुसार यह पोस्ट प्रबंधन स्तर से एडिट कर वर्तनी और…

Continue

Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 7:30pm — 9 Comments

मानवता का अपहरण

यादों के समंदर में जब और जितनी बार डूबकी लगाया हूँ उतनी ही बार ईश्वर की असीम कृपा से कुछ न कुछ मिलता ही रहा है . यादें कुछ तो माँ के आँचल के समान ठंडक देने वाली होती हैं, कुछ यादें तो मन का मानों सन्धिविचेद कर देती रही हो भला इस मनोदशा को ईश्वर के अलावे कौन जान पाया है ! अगर कोई फरिश्ता उस मनोदशा को जानने की कोशिश भी करता है तो शायद इस संसार में उनकी गिनती एक अपवाद ही बन कर रही गयी हो . बचपन में माँ -बाप ,गुरुजनों से जो प्यार और शिक्षा मिली वो तो गंगाजल के सामान पवित्र था .आज भी सोचता हूँ तो… Continue

Added by Devesh Mishra on June 25, 2010 at 8:00pm — 3 Comments

इस मुस्कुराहट का राज ,

मुस्कुराहट का राज़



मैं मुस्कुरा कर स्वागत करती हूँ ,

और वो हरदम पूछते हैं ,

इस मुस्कुराहट का राज़ ,

और मैं कहती हूँ ,

मैं हर दम खुश रहती हूँ ,

कारण गम मेरा हमदम नहीं हैं ,

खुशियों से हमने दोस्ती की हैं ,

अगर आप रोता हुआ चेहरा देखेंगे ,

और फिर करेंगे आप सवाल ,

क्या दुःख हैं हमें बतायो,

और मैं अपने दोस्तों को ,

अपने दुःख से दुखी न करूंगी ,

इसलिए आप को इस सवाल का ,

मौका नहीं दूंगी ,

हरदम खुश रहूंगी ,

अब समझ गए… Continue

Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 6:30pm — 4 Comments

मैं खरगोश नहीं बनना चाहता

बनते -बिगड़ते
संबंधों की आपा-धापी में
मैं खो जाता हू ॥

हड़बड़ी के चक्कर में
प्रेम खोजने के बदले
नफरत खोज लेता हू ॥

रिंग पहनाने को
शादी में बदल पाता
उससे पहले तलाक खोज लेता हू ॥

इसलिए .....
मैं अब
जिंदगी के रेस में
खरगोश नहीं ,
कछुआ बन कर ही
मंजिल तक जाना चाहता हू ॥

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 9:20am — 5 Comments

मैं तुम्हे पढना चाहता हु ...

तुम्हारी बातें

एक -एक शब्द जैसे ॥



श्वासों का आना -जाना

किताब के पन्ने

पलटने जैसा ॥



तुम्हारी मुस्कराहट

कविता पढने जैसी ॥



तुम्हारी हँसी

ग़ज़ल की पंग्तिया ॥



तुम्हारी उम्र का

हर गुजरा वक़्त

एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥



तुम्हें समझना

एक समझ न आने वाली

रहस्यमई कहानी जैसा ॥



सचमुच, तुम्हें पढना

एक किताब पढने जैसा ॥



हे ! प्रिय !!!

मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 7:45am — 4 Comments

मुक्तिका: ज़िन्दगी हँस के.... ---संजीव 'सलिल'

आज की रचना : मुक्तिका:

:संजीव 'सलिल'





ज़िन्दगी हँस के गुजारोगे तो कट जाएगी.



कोशिशें आस को चाहेंगी तो पट जाएगी..





जो भी करना है उसे कल पे न टालो वरना



आयेगा कल न कभी, साँस ही घट जाएगी..





वायदे करना ही फितरत रही सियासत की.



फिर से जो पूछोगे, हर बात से नट जाएगी..





रख के कुछ फासला मिलना, तो खलिश कम होगी.



किसी अपने की छुरी पीठ से सट जाएगी..





दूरियाँ हद से न ज्यादा हों 'सलिल'… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 24, 2010 at 10:58pm — 1 Comment

एक मृत लड़की की चिठ्ठी

मेरे पापा ने

माँ का गर्भ जांच कराया

सांप सूंघ गया उन्हें

शुक्र हो डाक्टर का

उन्होंने कहा ...

"एक ही बार माँ बन सकती है

आपकी पत्नी "

भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥



मेरी माँ ने

सिल्क साडी पहननी छोड़ दी

शौक -मौज फुर्र्र

मेरे विवाह की चिंता में

जन्म से ही ॥



पढाई के दौरान

प्यार हो गया एक लड़के से

शादी का लालच दिया उसने

माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े

दहेज़ के लिए

यह सोच , भाग गयी उसके साथ… Continue

Added by baban pandey on June 24, 2010 at 4:00pm — 3 Comments

अपना दुःख किससे कहू मैं ,

अपना दुःख किससे कहू मैं ,

यहा कौन हैं सुनने वाला ,

हर तरफ फैला अन्धियारा ,

धधक रही दहेज की ज्वाला ,



बेटी के बाप तो हमभी हैं ,

बड़ी मुश्किल से पढ़ा पाए ,

हम खाय आधपेट मगर ,

बेटी को हम बी कॉम कराए ,



लड़का बढ़िया खोज रहा हु ,

दहेज़ के बिना हैं परेशानी ,

अब सोचता हु क्यों पढ़ाया ,

जन्मते क्यों नहीं नमक खिलाया ,



मर गई होती ये तब ,

परेशानी ये ना आती अब ,

ये लड़का वालो जरा समझो ,

हम भी पढाये ये तो समझो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on June 24, 2010 at 4:00pm — 5 Comments

"एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर

पहले वह रोज आती थी

कभी बरामदे के मुंडेर पर बैठती

कभी खिड़की पर

और कभी-कभी तो

हद ही हो जाती जब वो

कमरे के अन्दर तक आ जाती ।



रोज सबेरे

जब उसकी आवाज सुनते

तब लगता

कि सुबह हो गई है

तब शुरू हो जाता

हमारा रोजनामचा ।



दिन ऐसे ही

रोज गुजरते रहे

वह रोज आती रही

हम रोज उसे देखते रहे

फिर एक दिन अचानक

लगा कुछ " मिसिंग" है ।



फिर अखबार में पढ़ा

गौरैया "एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर है

एक सदमा… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 24, 2010 at 3:11pm — 3 Comments

नदी की चाहत और हम

मित्रो, यह कोई कविता नहीं , बल्कि कविता के रूप में नदियों से होने वाले खतरे के प्रति मित्रो को आगाह करती है ..शायद आपको अच्छी लगे ...चुकी मैं इस छेत्र से जुड़ा हू ..तो लिखना मेरा फ़र्ज़ है ..



सर्पीली रूप में बहना

मेरी नियति है ॥

बाँधने की कोशिस में

उग्र हो जाती हू ॥

किनारे का बाँध तोड़

निकल जाना चाहती हू ...

फिर पूछो मत ...

कई सभ्यता /संस्कृतियों के

विनाश का कारण बन जाउगी ॥



बहना चाहती हू

जैसे , उन्मुक्त उड़ना चाहती है

पिंजरे का… Continue

Added by baban pandey on June 24, 2010 at 10:48am — 1 Comment

दे दे

जिसमे शब्द नही, हो चेहरा तेरा ला मुझे वो किताब देदे

जो बहाएँ हें हर पल मेने, मेरे इन आंसूओं का हिसाब देदे



कोई पीता है आँसू यहाँ तो किसीने पिए हैं अपने सारे गम

मैं तो हर रात यह कहता हू ला साकी थोड़ी और शराब देदे



अब देगी या तब देगी यही सोच कर काट दी उमर अपनी मैने

जो पूछा था तुझसे मैने अब तो मेरे उस सवाल का जवाब देदे



नही पता तुझे काँटों का चुभना दर्द नही देता थोड़ा भी मुझे

ला मुझे तेरे बदन की खुश्बू वाला,तुझसा हसीन एक गुलाब देदे



कहती… Continue

Added by Pallav Pancholi on June 24, 2010 at 1:31am — 2 Comments

मुक्तिका: ...आँख का पानी. ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



आँख का पानी



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

आजकल दुर्लभ हुआ है आँख का पानी.

बंद पिंजरे का सुआ है आँख का पानी..



शिलाओं को खोदकर नाखून टूटे हैं..

आस का सूखा कुंआ है आँख का पानी..



द्रौपदी को मिल गया है यह बिना माँगे.

धर्मराजों का जुआ है आँख का पानी..



मेमने को जिबह करता शेर जब चाहे.

बिना कारण का खुआ है आँख का पानी..



हजारों की मौत भी उनको सियासत है.

देख बिन बोले चुआ है आँख का पानी..



किया… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 23, 2010 at 10:30pm — 2 Comments

ह्रदय की कोमलता मत खो देना.

जग की कटुता देख, ह्रदय की कोमलता मत खो देना.

मधुमास सुबास सुमन तन की, हर इक सांसों में भर देना.

तेरे होठों की लाली से, उषा का अवतरण हुआ.

तेरी जुल्फों की रंगत से, ज्योति का अपहरण हुआ.

अपने खंजन- नयन में रम्भे, अश्रु कभी मत भर लेना.

मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.

पाता है रवि रौनक तुमसे, चाँद- सितारे शीतलता.

पवन सुगंध- हिरण चंचलता, रसिक - नयन को मादकता.

जग को मिलता प्राण तुम्हीं से, तुम्हे जगत से क्या लेना.

मधुमास सुबास सुमन तन का,… Continue

Added by satish mapatpuri on June 23, 2010 at 3:53pm — 4 Comments

मैं सब कुछ जानता हू

मुझे हसाना तो नहीं आता

मगर, रुलाना आता है ..दोस्त !



मुझे स्तुति -गान नहीं आता

मगर ,निंदा -गान आता है ...दोस्त !



मुझे तैरना नहीं आता

मगर , डुबाना आता है ....दोस्त !



मुझे धोती पहनाना नहीं आता

मगर , नंगा करना आता है ...दोस्त !



मैं गाली नहीं सुन सकता

मगर ,मगर गाली देना आता है ...दोस्त !



मुझे लिखना नहीं आता

मगर ,गलतियां निकाल लेता हू ...दोस्त !



सच में ,

मैं जानता कुछ नहीं ...मेरे दोस्त

फिर भी ,… Continue

Added by baban pandey on June 23, 2010 at 3:35pm — No Comments

बेवफा तुमको कैसे कहें.

तेरे प्यार में दर्द लाखों सहें.

मगर बेवफा तुमको कैसें कहें.

जिन्हें प्यार से तुमने चुमा कभी.

उन्हीं आँखों से गम का दरिया बहे.

मगर बेवफा तुमको कैसे कहें.

अब भी हमें ऐसा लगता अक्सर.

तुम्हीं सामने से चले आ रहे.

मगर बेवफा तुमको कैसे कहें.

टूटे हुए दिल की है ये सदा.

जफा करने वाले सदा खुश रहें.

मगर बेवफा तुमको कैसे कहें.

मापतपुरी की यही एक ख्वाहिश.

किसी मोड़ पे वो ना फिर से मिलें.

मगर बेवफा तुमको कैसे कहें.

गीतकार- सतीश… Continue

Added by satish mapatpuri on June 21, 2010 at 4:01pm — 5 Comments

भारतीय कुत्ते

भारत
कुत्तों के भौकने की
इधर -उधर सूघने की
एक अच्छी जगह ॥

गाहे -बगाहे
समय -कुसमय
चोर देखकर भौकना
और कभी -कभी
बिना चोर देखे
तेजी से भौकना ॥

गज़ब चरित्र है इनका ...
साधारण जनता
इनकी मानसिकता नहीं समझ सकते ॥

कुत्तों की सर्वोच्च संस्था
कहती है .....
भौकने की यह प्रवृति
परिपक्वता को दर्शाता है ॥

Added by baban pandey on June 21, 2010 at 1:59pm — 4 Comments

हमार जीवन

माँ - जब हम पैदा भईनी

हम त कुछ न जानत रहनी

कि डायबिटीज भी कुछ होखेला

आ एकरा से जीवन में कुछ फरक परेला

हम त ईहे जानत रहनी कि

अइसही होखत होई - खूब भूख लगत होई -

अइसहीं होखत होई - कबो खूब घुमरी आवत होई

हाथ - पैर झनझनात होई - चश्मा लगवले पर ठीक लऊकत होई I



हमरा खातिर त ई दुनिया

तबो अइसने रहे - सामान्य

हमरा खातिर ई दुनिया

आजो अइसने बा - सामान्य

बाकिर हमार - ना - तहार दुनिया बदल गईल

तब तूं खूब रोवलू

जब तहरा के बतावल गईल… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 21, 2010 at 11:46am — 6 Comments

घर

घर
प्यार औ अपनत्व
जब दीवारों की
छत बन जाता है
वो मकान
घर कहलाता है
रजनी छाबरा

Added by rajni chhabra on June 21, 2010 at 10:55am — 3 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service