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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Blog (216)

ऐडवर्स रिपोर्ट(लघु कथा )

 मैं पहुंचा ही था कि मुझे अपने घर से दो अजनबी लड़के निकलते हुए दिखाई दिए. इससे पहले कि मैं उनकी बाबत कुछ जान पाता. वे बाईक पर बैठकर रफ्फूचक्कर हो गये.

दरवाजे पर बेटा खडा था. मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो उसने बताया कि डोमेस्टिक गैस सर्विस’ से आये थे .यह वही गैस सर्विस थी जहां से मेरे घर एल पी जी सिलिंडर आता है.

‘क्यूँ आये थे ?’- मैंने यूँ ही पूंछ लिया.

‘अपना गैस स्टोव चेक करने आये थे ?’

‘ स्टोव-------मगर क्यों ?’ मैं हैरत में पड़ गया –‘ जब चूल्हा…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 7:09pm — 6 Comments

द्वितीय

 ट्रेन के चलते ही एक तरुण दैनिक यात्री  द्वितीय श्रेणी के स्लीपर क्लास में दाखिल  हुआ. आरक्षित श्रेणी के यात्री अधिकांशतः अपनी बर्थ पर अधपसरे हुए थे . एक बर्थ के कोने पर खाली जगह देखकर वह बैठने जा ही रहा था कि उस पर बैठे अधेड़ व्यक्ति ने गुर्राकर कहा –‘आगे बढ़ो,…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 6, 2017 at 8:54pm — 2 Comments

गजल

221   221   212

वह दौर था जो गुजर गया

था इक नशा जो उतर गया

 

देखा था उसने फरेब से

दिल आशिकाना सिहर गया

 

मुफलिस समझ के जनाब वो 

पहचानने से मुकर गया

 

जिस पर भरोसा किया बहुत

वह यार जाने किधर गया

 

जब साथ था तो कमाल था

अब जिन्दगी का हुनर गया

 

इक ठेस ही थी लगी मुझे  

मैं कांच सा था बिखर गया

 

जिस नाग ने था डसा मुझे

मैंने सुना है कि मर…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 7, 2017 at 9:19pm — 10 Comments

शाहजहाँ नहीं था वह

दुनिया का सबसे अद्भुत

पति पत्नी के बीच अमर प्रेम का स्मारक

विश्व के तथाकथित आश्चर्यों में से एक

जहा दफ़न है दो आत्माएं

जिसे बनवाया था

मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ ने 

अपने बेमिसाल पत्नी प्रेम के आडम्बर में

या फिर अपने वैभव की झूठी शान में

जो उसके बेटे ने ही ख़त्म की   

उन्हें कैद में डालकर

 

ताजमहल

जिसे खुद शाहजहाँ ने नहीं बनाया

उसे गढा था

उस युग के बेमिसाल वास्तुकारों ने

स्तब्ध किया था दुनिया…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2017 at 8:54pm — 5 Comments

धारा के विपरीत (लघु कथा )

दूर से ढोल मजीरे की ताल पर हुरियारों की आवाज आ रही थी – ‘अवध माँ  राना भयो मरदाना कि हाँ--- हाँ -----राना भयो मरदाना ‘

हाथ में पिचकारी लिए एक युवक ने किसी वृद्ध से पूंछा – ये राना कौन है ? कौनो बड़े हुरियार थे का जो इनके नाम की होरी गाई जा रही है.’

बुजुर्ग ने आश्चर्य से युवक की और देखा और कहा –‘तुम का पढ़े हो, तुम्हे अपने बैसवारे का इतिहास भी नहीं मालूम. अरे राना यहीं शंकरपुर के ताल्लुकेदार थे, जिन्होंने सन सत्तावन की क्रान्ति में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और आखिर तक…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 14, 2017 at 9:12pm — No Comments

गजल //// और फहर और फहर

 2112   2112   2112   2112

रात ढली मुझे पिला और जहर और जहर

इश्क ही ढाता है सदा और कहर और कहर

                      

गाँव से भी दूर हुयी सुरमई माटी की गमक

दीखता हर ओर जिला और शहर और शहर

 

मौसम अब यार मुझे खुशनुमा लगते है सभी

दिल में उठती है लहर और लहर और लहर

 

रात ये बचपन की बड़ी सादगी में बीत गयी

अब है जवानी की सहर और सहर और सहर 

 

जोश में सागर तू मचल आज है पूनम की कला  

बीच लहर चाँद खिला…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 16, 2017 at 10:16pm — 7 Comments

गजल

 221 2121 1221 212

 

बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ 

अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ

 

आँखों में बंद था कभी सागर शराब का  

वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ

 

महफिल थी जम गयी उनके खयाल की  

था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ

 

उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में

नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ   

 

कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत

होना था जो अंजाम वो अंजाम तो…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 8:39pm — 13 Comments

गजल //// हैसियत सरकार रखते हैं

 1222 1222 1222 1222

           

कहो तो घोल दें मिसरी ये हम अधिकार रखते हैं  

सिराओं में जहर भर दे वो हम फुफकार रखते हैं

 

बहुत से बेशरम आते हैं छुप –छुप कर हमारे घर  

उन्ही के दम से हम भी हैसियत सरकार रखते हैं

 

दिखाते है हमें वे शान-शौकत से झनक अपनी

तो उनसे कम नहीं घुँघरू की हम झनकार रखते हैं  

 

छिपे होते है आस्तीनों में अक्सर सांप जहरीले

इधर हम बज्म में उनसे बड़े फनकार रखते…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 7, 2017 at 8:13pm — 12 Comments

गजल/// मगर आप गंगा नहाने लगे

122 122 122 12

     

कि जब आप उनके कहाने लगे

मुझे सारे वादे बहाने लगे

 

किया चाक दिल था हमारा अभी            

महल ख्वाब का क्यूँ ढहाने लगे

 

यकीं था मुझ्र भूल जाओगे अब   

गमे याद तुम तो तहाने लगे

 

कहा था अगम एक सागर हूँ मैं

गजब है कि सागर थहाने लगे

 

चिता ठीक से जल न पाई अभी

मगर आप गंगा नहाने लगे

(मौलिक/अप्रकाशित)

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 2, 2017 at 8:00pm — 8 Comments

गजल /// गीत पहले प्यार के मधु छंद सा

 2122  2122  212

       

गीत पहले प्यार के मधु छंद सा

नीरजा के झर रहे मकरंद सा 

 

नाव पर संगीत मांझी का मुखर

लोक को देता सुनायी मंद सा

 

है वही ब्रज और गोकुल की गली 

नहीं दिखता किन्तु नंदन-नंद सा

 

छुप गया जो बांस के पीछे वहाँ    

बादलों की ओट में है चंद सा  

 

है मृगी बेचैन, व्याकुल भीत भी

बीहड़ों में कुछ दिखा है फंद सा

 

देवता सब हो गए है कैद अब…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 25, 2017 at 8:00pm — 5 Comments

गजल /// बहरे मीर

 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2  

झिलमिल तारों सा सपनो के अम्बर में रहते हो क्यों ?

मलयानिल की मधु धारा सा मानस में बहते हो क्यों?

 

रेशम सी शर्मीली आँखे गाथा कहती है मन की

निर्ममता के अभिनय क्षण में अंतर्गत चहते हो क्यों?

 

अंतस में भावों की गंगा यदि पावन है पूजा सी

तो संकल्पों की वर्षा हो फिर पीड़ा सहते हो क्यों?

 

वृन्दावन की वीथी में तुमने ही झिटकी थी बाहें

फिर उन बाँहों को मंदिर की शाला में गहते हो…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2017 at 8:30pm — 21 Comments

हुआ है धमाका/// गजल

122 122 122 122

 

सियासत के जरिये हुआ है धमाका

जुबां बंद करिये हुआ है धमाका

 

किसे फ़िक्र है अब लहू फिर बहेगा  

कि वहशत बजरिये हुआ है धमाका

 

कहाँ शांति रहती है सरहद पे यारों

ज़रा आँख भरिये हुआ है धमाका

 

है जाना जरूरी चले जाइयेगा

तनिक तो ठहरिये हुआ है धमाका

 

बड़ी देर से आप चश्मेकफस में 

कि आहिस्ता ढरिये हुआ है धमाका

 

नहीं खून का खेल गर खेल सकते

तो…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2017 at 8:58pm — 13 Comments

गजल

2122    1212   22  

 

श्याम तेरी अलक में खो जाऊं

एक न्यारे खलक में खो जाऊं

 

नेह से आँख जो हुयी बोझिल

बंद तेरी पलक में खो जाऊं

 

तू अँधेरे में काश दिख जाये 

और मैं उस झलक में खो जाऊं

 

रूप ऐसा कि थे सभी पागल

मैं उसी छवि-छलक में खो जाऊं

 

है सुना वह तेरा ठिकाना है  

तो चलूँ उस फलक में खो जाऊं

 

 (मौलिक /अप्रकाशित…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 8:00pm — 13 Comments

कैसे-कैसे मरहम ?

 अँधेरा हो गया था

मेले से लौटने में 

जब बैलगाड़ी के पहिये में

फंस गया था

मेरी बेटी का दुपट्टा

जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ

कसता गया

मेरी बेटी के गले में

और तब गया सबका ध्यान 

जब घुटी -घुटी सी चीख

निकली उसके मुख से

हठात बैलों की लगाम

खींची गाडीवान ने

और बैल पैर उठाकर 

पीछे की और धसके

 

पहिये में फंसे दुपट्टे को

आहिस्ता से निकाल कर 

छुड़ाया गया उसका गला

उस काल-फंद…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:20pm — 17 Comments

सोचने के लिये बाध्य

 गाँव में था

एक भवानी का चौतरा

कच्ची माटी का बना   

जिसके पार्श्व में लहराता था ताल

जिसके किनारे था एक देवी विग्रह

छोटा सा

 

चबूतरे को फोड़कर बीच से

निकला था कभी एक वट वृक्ष  

जो विशाल था अब इतना

कि आच्छादित करता था

पूरे चबूतरे को

साथ ही देवी विग्रह को भी

अपने प्रशस्त पत्तों की

घनीभूत छाया से

और लटकते थे

इसकी शाखाओं से अरुणिम फल

 

फूटते थे

शत-शत प्राप-जड़…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2016 at 10:00pm — 7 Comments

मुझ पर भी गिरी है एक बिजली

 

आकाश से

गिरती है बिजली

और एक हरा भरा पेड़

अचानक बदल जाता है

एक काले ठूंठ में

भीतर तक

 

किसी काम नहीं आती

वह जली लकड़ी

सिवाय सुलगने के

धुवां छोड़ने के 

अपने अंतिम सांस तक

और रह जाता है एक

अलिखित शिलालेख

ध्वंस का इतिहास समेटे

मौन स्तब्ध उदास जड़

निर्जीव

 

हमारे पूर्वज

लीपते थे गोबर से

माटी के घर

और उसकी दीवारें

क्योंकि वह मानते…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2016 at 6:09pm — 4 Comments

ओ मेरे आकाश !

ओ मेरे आकाश !

पिता थे तुम

असीम अपरिमाप

सितारों की पहुँच से भी दूर

और मैं पर्वत की भाँति बौना

अपने उठान का अभिमान लिए

तब नहीं जानता था

यह फर्क

जब तुम मेरे पास थे

अनंत विस्तार लिए

भले ही

आज बन जाऊं मैं ऊंचा

चोमोलुंगमा

यानि कि सागरमाथा

दुनियां का सर्वोच्च हिमशिखर

एवरेस्ट ---

 

ओ मेरे आकाश !

 सदा ही रहोगे तुम

अनंत ऊँचाइयों पर

ऊंचे और उन्नत

कई-कई…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 7:30pm — 10 Comments

नमक का विधाता

सात नदियाँ मिलती हैं

गुजरात के कच्छ में

समुद्र से

 

उस स्थल पर

जिसे ‘रण’ कहते है

और जहां सबसे खारा होता है 

समुद्र का पानी

नमक बनाने के लिए

जिसे हम लवण भी कहते है

और इसी से बनता है

एक मोहक शब्द

लावण्य

जो प्रकट करता है

मनुष्य के जीवन और उसके रंगों में

नमक की महत्ता, उपादेयता और स्वाद

 

पर

कभी किसी ने सोचा है गोर्की की भाँति

कि किस संत्रास में जीते है

नमक…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 8:00pm — 7 Comments

गजल (बह्रे मीर )

  2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2

इंसानी फितरत के जलवे दिन ये कैसे आये हैं

सन्नाटा गलियों में छाया संगीनों के साये हैं

 

चप्पे-चप्पे पर दिखता है आतुर सैनिक का पहरा

धरती की रक्षा करने की शत-शत कसमे खाये हैं

 

कुछ तो अजगुत कहता है यह सघन सुरक्षा का घेरा

क्या फिर से तारामंडल में घन संकट के छाये हैं

 

पोथी लेकर भोली बाला घूम रही वीराने में

अक्षर ने शब्दों से मिल कर गीत सुहाने गाये हैं  

 

खौल रहा है खून वतन…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 19, 2016 at 7:27pm — 4 Comments

आज भी रोती है वह नदी

रात के सन्नाटे में

कहते हैं

आज भी रोती है वह नदी

 

जिन्होंने भारत में

पूर्व से पश्चिम की ओर

ऊंचाइयों पर

पथरीले कगारों के बीच से

बहती उस एक मात्र पावन चिर-कुमारिका

नदी का आर्तनाद कभी सुना है

 

जिन्होंने की है कभी उसकी

दारुण परिक्रमा

जो विश्व में

केवल इसी एक नदी की होती है ,

हुयी है और आगे होगी भी

 

वे विश्वास से कहते है -

‘इस नदी में नहीं सुनायी देती

रात में…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2016 at 8:00pm — 11 Comments

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