For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुनिया का सबसे अद्भुत

पति पत्नी के बीच अमर प्रेम का स्मारक

विश्व के तथाकथित आश्चर्यों में से एक

जहा दफ़न है दो आत्माएं

जिसे बनवाया था

मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ ने 

अपने बेमिसाल पत्नी प्रेम के आडम्बर में

या फिर अपने वैभव की झूठी शान में

जो उसके बेटे ने ही ख़त्म की   

उन्हें कैद में डालकर

 

ताजमहल

जिसे खुद शाहजहाँ ने नहीं बनाया

उसे गढा था

उस युग के बेमिसाल वास्तुकारों ने

स्तब्ध किया था दुनिया को

अपने हुनर से, श्रम से, कला से

और पाया था बदले में    

अपने बादशाह से 

खुद के कटे हाथ

बतौर पारिश्रमिक या पुरस्कार

नहीं जानता आज इतिहास 

वे हुनरमंद कौन थे

याद

किया जाता है तो सिर्फ

शाहजहाँ को

इसलिए नहीं कि उसने कटवाए थे 

अपने ही स्मारक निर्माता के

हुनरमंद हाथ

बल्कि इसलिए कि  

वह एक बादशाह था अजीमुश्शान

उसने बनवाया था

एक हंसी ताजमहल

जहां सन्नाटे में रोती है दो कब्रें

किसका भला हुआ ऐसी वास्तु रचना से 

यह एक प्रश्न है 

 

पर वह

नहीं था बादशाह

नहीं बनवा सकता था

वह कोई हसीं ताजमहल

किन्तु उसे भी मोहब्बत थी

बेपनाह अपनी पत्नी से

प्यारी फगुनिया से

 

नहीं

बचा सका था जिसकी वह जान

दूर था हॉस्पिटल 

बहुत उसके गाँव से 

हालांकि वास्तव में बहुत दूर नहीं था

पर गाँव का पहाड़ 

रोकता था रास्ता हॉस्पिटल जाने का

घूमकर बहुत बहुत घूमकर

पड़ता था जाना

दूर---- बहुत दूर ---  बहुत बहुत दूर

 

नहीं बचा पाया वह

पत्नी को मरने से

पर अब न मरे कोई फिर उस ढंग से

चिकित्सा के अभाव में

उस अद्रि व्यवधान से

या फिर मृत पत्नी की आत्मा की

शान्ति हेतु 

उसने संकल्प किया

साँचा और दृढ

उस दशरथ मांझी ने

और तोड़ डाला

दुर्गम पहाड़ को स्वयं अकेले

सर्वथा अकेले  

खडा था हिमालय सा अडिग जो

अचल व्यवधान सा 

गहलौर गाँव में

 

बीस वर्ष तपकर

अपनी सनक में धुर पागलपन में 

उसने बनाया एक सहज रास्ता 

वजीरगंज सेक्टर तक

अपने उस गाँव से

और कर दी बौनी

दूरी पचपन किलोमीटर की 

पंद्रह किलोमीटर में

पहले उड़ाते थे उसका मजाक जो

ताने कसे थे जिन्होंने उसके प्रयास पर 

किया था कभी

उसका विद्रूप उपहास

नत हैं सिर उनके आज शर्म से

ग्लानि से और पाश्चात्ताप से 

क्योंकि नहीं पहचान पाए वह

अपने ही बीच पले-बढे

उस देवदूत को

जिसने किया उनका जीवन

सरल और सपाट

कदाचित आसान  

तोड़कर

भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा 

के नियमों को

सिर्फ इसलिए कि

उसने किया था एक मूक वादा

अपने पत्नी की दहकती चिता पर

जिसे करता था वह

बेपनाह प्यार

 

शाहजहाँ

नहीं था वह

शहंशाह भी नहीं 

मालिके हिन्द नहीं

ताजदार भी नहीं 

अदना इंसान था मामूली बेगैरत

जिसने किये जाया 

अपने जीवन के अनमोल

बीस वर्ष 

अपनी उस खब्त में

जिससे बना वह रास्ता

आमजन के लिए

 

जाहिर है

उसने नहीं बनाया ताजमहल

नहीं रचा विश्व का आश्चर्य कोई 

पर वह पथ जो बना गया

पहाड़ की छाती भेदकर 

ऐसा स्मारक है

जिस पर शर्मिंदा होंगे 

जाने कितने ताजमहल 

जिस पर कुर्बान होंगी

हजारों हजार सल्तनतें

अश-अश करेंगे लख-लख शाहजहाँ

दुआ करेंगे तमाम ताजेदार हिन्द  

क्योंकि इस स्मारक ने

नहीं काटे निर्दोष हाथ

और नहीं बना कभी श्मशान सा  

यह तो बना है खून से, पसीने से

अनवरत श्रम से

एक पागल प्रेमी के

जिससे मिली आम लोगों को राहत 

उस मंजिल के लिए

जो कभी दूर और दुर्गम थी

 

नीव में उस पथ के

दफ़न है खामोश

अमर प्रेम

दशरथ मांझी का

अपनी प्यारी पत्नी के लिए

जो थी उसकी नूरजहाँ 

जिसे करता था वह

बेइंतेहा प्यार

उसकी अपनी फगुनिया     

(मौलिक् / अप्रकाशित )

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 24, 2017 at 1:31pm

वाह, क्या ही सुन्दर रचना है ... आनन्द आ गया। साहिर जी की याद भी आ गई।

आपको बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2017 at 8:23pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , क्या बात है .. आपकी इस रचना ने अजीम शायर स्व. साहिर की याद दिला दी ...

ताज तेरे लिये इक मजहर ए उल्फत ही सही

तुझको इस वादी ए रंगी से अक़ीदत ही सही
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे ...   बड़ी नज़्म है .... आपकी कविता के ही भाव में ... आपको हार्दिक बधाइयाँ बेहतरीन कविता के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2017 at 7:09pm

वाह्ह्हह्ह वाह्ह्हह्ह बहुत ही सुंदर प्रस्तुति सोचने को मजबूर करती किसका प्रेम बड़ा था माझी एक साधारण आदमी था मगर उसका प्यार और उसका कर्म एक बादशाह  शाह्जहाँ से बड़ा था ढेरों बधाई आद० डॉ.गोपाल भाई जी इस शानदार प्रस्तुति पर .पोस्ट पर देर से आने का खेद है |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 3, 2017 at 10:07pm

. आदरणीय समर कबीर जी , आपकी टीप मेरे लिए सदैव बड़ा मायने रखती है . मैं इस प्रस्तुति को लेकर आशंकित था पर अब आश्वस्त हुआ हूँ . . सादर

Comment by Samar kabeer on April 3, 2017 at 3:01pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत सुंदर और हक़ीक़त से क़रीब कविता लिखी आपने,शाहजहाँ और दशरथ मांझी का ख़ूब मवाज़न किया आपने,एक ने अपनी दौलत और बादशाहत के ज़ोम में अपने प्यार को दुनिया के सामने रखा,दूसरे ने अपनी मिहनत और कौशल के बल बूते पर दुनिया को एक ऐसा तोहफ़ा दिया जो दूसरों की जान बचाने और कई काम आ रहा है,ताज महल सिर्फ़ देखने की चीज़ है उससे मानव जाति को कोई लाभ नहीं हो रहा,बहुत ख़ूब वाह, जितनी तारीफ़ की जाये इस प्रस्तुति की कम होगी,इस बहुमूल्य प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि कविता ने बहुत ज़ियादा विस्तार ले लिया है,जो पाठक को पढ़ने में दिक़्क़त हो सकती है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service