For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 गाँव में था

एक भवानी का चौतरा

कच्ची माटी का बना   

जिसके पार्श्व में लहराता था ताल

जिसके किनारे था एक देवी विग्रह

छोटा सा

 

चबूतरे को फोड़कर बीच से

निकला था कभी एक वट वृक्ष  

जो विशाल था अब इतना

कि आच्छादित करता था

पूरे चबूतरे को

साथ ही देवी विग्रह को भी

अपने प्रशस्त पत्तों की

घनीभूत छाया से

और लटकते थे

इसकी शाखाओं से अरुणिम फल

 

फूटते थे

शत-शत प्राप-जड़ या वरोह

जिसके कारण ही वट वृक्ष

कहा जाता है -वरोरुह

और वह वरोह

होता है जमींदोज

बनाता है काष्ठ स्तम्भ

जिसके बीच तब झूलते थे

गाँव के लड़के पकड कर

लटके हुए वरोह को

माँ भवानी के चौतरे में झूला

  

ताल में उड़ते थे

जलपक्षी

सारस,  घोमरा,  शाह चकवा,

लालसर बत्तख  और बगुले

सुबह शाम होती थी

देवी विग्रह की पूजा

आती थी गाँव की औरते

जलाती थीं दिए, अगरबती और धूप   

गाती थी कुछ मीठे गीत

और होते थे कभी

चूड़ाकरण , कर्ण-वेध और उपनयन

सजते थे विग्रह

बजते थे ढोल

मचता था उत्सव

 

सालों-साल गाँव की पहचान रहा 

माँ का चबूतरा

फिर एक दिन बैठ गया बगुला

वट की फुनगी पर

की उसने बीट

माँ ने कहा- ‘गया यह वृक्ष’ 

बढ़ती गयी बगुलों की संख्या

भीजता रहा वट वृक्ष

अनवरत बीट से

सूखते-झड़ते गए पत्ते

कंकाल हो गया वरोरुह

वीरान हुआ माँ का चबूतरा  

रह गये केवल

ध्वंस के शेष, ध्वंसावशेष

 

बीती हुयी बात है

आँखों से देखी हुयी  

इसीलिये जो कुछ हुआ है आज

उससे हठात्

खड़े हो गए है मेरे कान

भले ही हो वह मेरा वहम

पर  

एक बगुले की बीट ने

अभी-अभी किया है अपवित्र

मेरे पिता की देह को

और मैं अकारण ही हो गया हूँ

किंकर्तव्यविमूढ़ 

कुछ सोचने के लिए बाध्य  .

अजगुत, अकल्पनीय

या फिर संभाव्य

 

(मौलिक /अप्रकाशित )

Views: 594

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 29, 2016 at 6:42am
आदरनीय डॉo गोपाल नारायण जी , सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई , सादर।
Comment by Samar kabeer on December 26, 2016 at 9:58am
मेरी ग़ज़ल तो तैयार थी लेकिन मजबूरी ऐसी थी कि मुशायरे में सहभागिता नहीं कर पाया,मेरी मजबूरी आप जान ही गये होंगे । वैसे आपकी ग़ज़ल मैंने सुन ली थी,बहुत उम्दा ग़ज़ल ,बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 3:08am

आदरणीय गोपाल सर, बढ़िया प्रस्तुति. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2016 at 6:06pm

आ० समीर कबीर साहिब , इस बार मुशायरे में आपको बहुत  मिस किया . इस कविता पर आपकी सदाशयता का आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2016 at 6:04pm

आ० महेंद्र जी , आभार .

Comment by Samar kabeer on December 25, 2016 at 2:58pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत पसंद आई आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mahendra Kumar on December 25, 2016 at 11:21am
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी, बहुत ही अच्छी वैचारिक कविता लिखी है आपने। मेरी तरफ से ढेरों बधाई। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service