For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिज्जु "शकूर"'s Blog (133)

पटरियाँ

रूपमाला छंद पर एक छोटा सा प्रयास

हैं अचल पर चल रही हैं, पटरियाँ पुरजोर
दौड़ती हैं साथ महि के, ये क्षितिज की ओर
अनवरत चलना यही तो, जिन्दगी का नाम
दो कदम के बीच ही बस, है इन्हें आराम

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 8:30am — 8 Comments

एक तरही ग़ज़ल

 2122 1212 22

झूठ ही बन गया है आँचल क्या

धूप लगने लगी है अफ़्ज़ल क्या                         (अफ़्ज़ल –भला)

 

अक्ल की बंद खिड़कियाँ खोलो

टाट लगने लगा है मखमल क्या

 

जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज

दिल में कायम रहेगा ये कल क्या

 

किस्से कुछ और थे हकीकत और

ये रवायात बदलीं पल-पल क्या

 

छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर

मच उठी दिल में कोई हलचल क्या

 

फर्ज़ अपना भुला दिया…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 23, 2015 at 10:16pm — 14 Comments

ग़ज़ल- कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये

2122- 1212- 1212- 22 /112

कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये

क्या पता दिलफ़रेब बन के ग़मग़ुसार आये

 

मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन

पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये

 

ज़ीस्त गुज़री ख़मोशियों के दरमियान मगर

ये हुआ वक़्ते मर्ग लोग बेशुमार आये

 

दिल नज़ारा ए रंगो गुल को कब से तरसे है

ऐ खुशी काश तू मिसाले नौबहार आये

 

कौन सा दह्र है ये कौन सी जगह है जहाँ

दूर तक बस नज़र गुबार ही गुबार…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 14, 2015 at 9:02am — 33 Comments

पाँच दोहे

 

नये साल की ये सुबह, सुन कोयल का गान ।

मन में ऊर्जा भर गई, तन में आई जान ।।

 

सर्द हवा की ले छुअन, मुख से निकले भाप।

भला-भला सा लग रहा, अंगारों का ताप।।

 

समय वक्र की ऊर्ध्व गति, अधो उम्र की चाल।

जीवन जो है हाथ में, गड्ढे में ना डाल।।

 

बीत गया जो वर्ष तो, देखें ना लाचार।

अपने सपनों को मिले, एक नया आधार।।

 

मोहक आँखों को लगे, एक सुहाना दृश्य।

पीछे क्या सौंदर्य के, हो मालूम…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 12:30pm — 18 Comments

ग़ज़ल- मक़बूलियत अदीब की है उनके काम से

221 2121 1221 212

लिखता हूँ हर्फ़-हर्फ़ मैं जो तेरे नाम से

जज़्बात, दर्द, अश्क़ के हर एहतमाम से

 

क्या हो गया जो कोई उन्हें जानता नहीं

मक़बूलियत अदीब की है उनके काम से

 

मिल ही गया मुकाम उसे आखिरश कहीं

बेजा भटक रहा था मुसाफिर जो शाम से

 

शाइस्तगी न बज़्म में थी कोई मस्लहत

टकरा रहे थे लोग जहाँ जाम, जाम से

 

गुरबत बिकी थी लाख टके में मगर “शकूर”

गुरबत फ़रोश जी न सका एहतराम…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2014 at 9:57am — 9 Comments

घर- लघुकथा

मजदूरों की बस्ती में दो कँपकँपाती हुई आवाज़ें

“सुना है घर वापसी के 5 लाख दे रहे हैं”

“हाँ भाई मैं भी सुना”

“हम तो घर में ही रहते हैं, कुछ हमें भी दे देते”

-मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:56pm — 24 Comments

है तेरे वास्ते वफ़ा मेरी- ग़ज़ल

2122 1212 22/112

तू मुहब्बत न आजमा मेरी

है तेरे वास्ते वफ़ा मेरी

 

यूँ कहे पर न जा ज़माने के

गाह चौखट तलक तो आ मेरी

 

अश्क़ चाहें निकलना आँखों से

रोकती है उन्हें अना मेरी

 

कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का

खुद मैं कातिब हयात का मेरी

 

रेत में दफ़्न हो गया कतरा

जो ज़बीं से अभी गिरा मेरी

 

ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले

फिर वही करते हैं दवा मेरी

 

हर सफर में उदास राहों…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 9:00am — 20 Comments

आतंकवाद (लघुकथा)

“अब्बास ये आतंकवादी दीन और ईमान की बात करते हैं, आतंकवादियों का कोई दीन कोई मजहब होता है क्या? बंदूक के ज़ोर पर आतंक फैलाकर कौन सा दीन कायम करना चाहते हैं ?“

अब्बास टी वी की तरफ इशारा करते हुये- “ये बंदूकवाले आतंकवादी खुद मारते और मरते हैं पर कुछ आतंकवादी सिर्फ ज़ुबान चला कर आतंक फैलाते हैं, खुद नहीं मरते मारते ये काम दूसरों से करवाते हैं, दीनो ईमान इनका भी नहीं होता।”

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on December 18, 2014 at 9:00am — 20 Comments

ग़ज़ल- ग़म खुशी में मुब्तला है

2122  2122

ये भी जीने की अदा है

ग़म खुशी में मुब्तला है

 

रात भी है चाँद भी और

चाँदनी की ये रिदा है

 

नेस्त हो जाएगा इक दिन

रेत पर जो घर बना है

 

हादसों के दरमियाँ इक

ज़िन्दगी का सिलसिला है

 

मखमली सा लम्स तेरा

सर्द जैसे ये सबा है

 

तुझमें है यूँ अक्स मेरा

तू कि जैसे आइना है

 

मैं नहीं तन्हा सफ़र में

साथ अपनो की दुआ है

 

छोर पर नाकामियों…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 10:15pm — 23 Comments

दायरा- अतुकांत

एक गमले में रोपा गया पौधा

उसका दायरा क्या है

बस वो गमला

जब तक वो गमले में है

कभी वृक्ष नहीं बन सकता

उस पौधे की जड़ों को

गमले से बाहर आना होगा

 

परिन्दों को उड़ना हो

तो उनकी सीमा क्या है

कोई नहीं

असीम आकाश फैला हुआ है

उन्हें अपने पर खोलने होंगे

 

हमें जीना हो तो

पूरी कायनात पड़ी है

हमें

ख़्वाहिशों को परवाज़ देना होगा

सपनो को

उम्मीदों का आकाश देना…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on November 18, 2014 at 9:44pm — 11 Comments

ग़ज़ल

2122 1122 22

खुद से यूँ आप वफ़ा कर चलिये

गाह सच को न छुपा कर चलिये

 

मैं इबादत में करूँ सजदे आप

दैर पर शीश नवा कर चलिये

 

दिल में भर जाये सड़न ही न कहीं

नफ़रतें दिल से हटा कर चलिये

 

चलिये महका के ज़माने भर को

प्यार का फूल खिला कर चलिये

 

कीजिये अम्न की कोशिश यों भी

हक़ में इंसाँ के दुआ कर चलिये

 

क्यूँ रहे हुस्न ही पर्दे में जनाब

आप भी नज़रें झुका कर…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on October 26, 2014 at 8:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल

1222- 1222- 1222

मुनव्वर शाम के रंगीं नज़ारों में

नुमायाँ फूल हों जैसे बहारों में

 

कहीं कम हो न जाये बज़्म की रौनक

लगा दो कुछ दिये भी चाँद तारों में

 

फ़रोग़े शम्अ महफिल में लगे है यूँ

झलकता हुस्न हो जैसे हज़ारों में

 

लकीरें धूप की झाँके दरीचे से

सवेरा छुप के बैठा है दरारों में

 

न जाने रंग कितने रोज़ भर जाये

ये नूरे शम्स झीलों कोहसारों में

 

हवा के सामने शिद्दत से जलती…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on October 18, 2014 at 8:59am — 12 Comments

शुरूआत

जीते जी जिन्दगी खत्म नहीं होती

सिर्फ एक अध्याय खत्म होता है

जब तक एक भी साँस है

हौसले हैं

तब तक रास्ते हैं

कहीं भी, किसी पल

किसी भी मोड़ पर

नई शुरूआत हो सकती है

 

मिटा देता है वक्त गुज़रते-गुज़रते

पुरानी लिखावट को

और एक कोरा पन्ना छोड़ जाता है

आते-आते

वही वक्त एक और मौका देता है

कि उसी कोरे पन्ने पर

फिर अपनी ज़िन्दगी लिखें

फिर शुरूआत करें

 

(मौलिक व…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on October 14, 2014 at 9:33pm — 12 Comments

चलो कि ज़िन्दगी को दें हम एक नाम नया -ग़ज़ल

1212 1122 1212 112/22

सफर ये राहगुज़र और ये मुकाम नया

हयात देती है अक्सर मुझे यूँ काम नया

 

अगर नसीब से बच पाये तो गनीमत है

यहाँ हर एक कदम पर है एक दाम नया         (दाम=जाल)

 

न जी सके अभी तक चलिये कोई बात नहीं                                               

करें अब के कोई जीने का एहतमाम नया

 

ये ज़िन्दगी हो फ़ना रोज़ और रोज़ शुरू

ग़ुरूबे शम्स हो तो चाँद निकले शाम नया

 

बहुत हुये गमे दौराँ की…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on October 12, 2014 at 10:22am — 12 Comments

मजदूर

ये गाथा मजदूर की, जिसके नाना रूप।

पत्थर तोड़े हाथ से, बारिश हो या धूप।।

 

कड़ी धूप में पिस रही, रोटी की ले आस।

पानी की दो घूँट से, बुझा रही है प्यास।।

 

सर पर ईंटें पीठ पर, लादे अपना लाल।

मानवता कुछ ढूँढती, लेकर कई सवाल।।

 

वे भी जन इस देश के, करते हैं निर्माण।

पर खुद जीने के लिये, झोंके अपने प्राण।।

 

उनको हो सबकी तरह, जीने का अधिकार।

उनके कर्मठ हाथ हैं, विकास का आधार

-मौलिक व…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:04am — 10 Comments

हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये

ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये

 

जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये

 

आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो

मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये

 

चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की

वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये

 

जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक

कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये

 

सूरत बदल गई…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on September 25, 2014 at 7:54am — 20 Comments

ज़िन्दगी के साथ चल कर देखिये-ग़ज़ल

2122/ 2122/ 212

घर से बाहर तो निकल कर देखिये

ज़िन्दगी के साथ चल कर देखिये

 

आपको अंधा न कर दे वो चमक

शम्स को थोड़ा सँभल कर देखिये

 

आजमाया है मुझे ही अब तलक

इक दफा खुद को बदल कर देखिये

 

चार सू बस आप ही होंगे जनाब

शम्अ की मानिन्द जल कर देखिये

 

आसमाँ के है मुकाबिल हस्ती क्या

देखना हो तो उछल कर देखिये

 

तर्क़े ताल्लुक तो बहुत आसान है

कालिबे निस्बत में ढल कर…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on August 23, 2014 at 7:00pm — 17 Comments

दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में-ग़ज़ल

221 2121 1221 212

जाने पड़ा हुआ है तू किसके खुमार में

दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में

 

मैं नाम लौहे दिल पे यूँ लिखता गया तेरा

इसके सिवा रहा नहीं कुछ इख़्तियार में

 

वो कारवाने वक्त गुज़र…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on August 17, 2014 at 2:00pm — 12 Comments

मुझको तन्हाई अक्सर बुलाती रही- ग़ज़ल

212/ 212/ 212/ 212

मुझको तन्हाई अक्सर बुलाती रही

बारहा पास आकर सताती रही

 

क्या कहूँ आँसुओं का सबब मैं तुझे

तल्खी तेरी ज़बाँ की रुलाती रही

 

रात भर मैं हवा के मुकाबिल खड़ा

लौ जलाता रहा वो बुझाती रही            

 

आइना अक्स मेरा बदलता रहा

ज़िन्दगी खुद से मुझको छुपाती रही

 

मैं न समझा कभी सच यही था मगर

ये ख़िज़ाँ राह मेरी बनाती रही   

 

बादबाँ खुल गये चल पड़ी नाव भी

मेरी…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2014 at 11:55pm — 23 Comments

बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं-ग़ज़ल

1222/ 1222/ 1222

बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं

जले लौ तो उसे खुद ही हवा दूँ मैं

 

उदासी का सबब गर पूछ लें मुझसे

अज़ीयत के निशाँ उनको दिखा दूँ मैं

 

कभी सागर कभी सहरा कभी जंगल

यूँ क्या-क्या बेख़याली में बना दूँ मैं

 

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं     

 

तुम्हारी कुर्बतों के छाँटकर लम्हे

किताबों का हर इक पन्ना सजा दूँ मैं

 

इन आँखों से…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2014 at 11:00am — 16 Comments

Monthly Archives

2023

2020

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
22 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service