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हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये

ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये

 

जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये

 

आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो

मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये

 

चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की

वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये

 

जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक

कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये

 

सूरत बदल गई कि निगाहें मेरी “शकूर”

आईने देख कर मुझे अंजान बन गये

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:45pm

आदरणीय करुण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:44pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:43pm

आदरणीय खुर्शीद जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया

Comment by Santlal Karun on September 27, 2014 at 8:27pm

आदरणीय शिज्जु शकूर जी,

सारगर्भित ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ --

"जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये"

Comment by vijay nikore on September 27, 2014 at 1:36pm

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by khursheed khairadi on September 27, 2014 at 12:50pm

जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये

बदकिस्मती से आज निगहबान  बन गये

आदरणीय शकूर साहब उम्दा अशहार हुये हैं ,सादर अभिनन्दन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:17am

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका हार्दिक आभार मेह्र का वज्न होगा 21
चम2 के2 तो1 मेह्र21 बन2 ग1ये1 जो2 आ2स1 मा2न1 की2
सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:14am

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:13am

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2014 at 6:12am

आदरणीय़ डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार

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