संशोधित
2122 1122 1122 112/22
मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले
यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले
आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ
बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले
अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं
पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले
चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल
ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले
दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर…
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Added by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2016 at 2:30pm —
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212 212 212 212
वो बहुत खुश है ‘उल्लू’ बनाकर मुझे
और तस्कीं है अहसाँ जताकर मुझे
करते हो फल की उम्मीद ऐ जान तुम*
रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे
कोयले की दहकती हुई आँच पर
रख दिया काँटों में से उठाकर मुझे
अपने अह्सान के बोझ को लादकर
मार तो डाला आखिर बचाकर मुझे
रोज़ बेचैनियाँ ही मिलीं रू-ब-रू
खुद को सारे जहाँ से छुपाकर मुझे
तस्कीं- संतोष
*फल की उम्मीद करते हो नादान तुम
साथ इच्छाओं के यूँ दबाकर…
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Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2016 at 4:00pm —
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2122 2122 212
डूबता हूँ रोज़ मैं तिनके लिये
जिंदा हूँ यूँ जाने किस दिन के लिये
साँसें तो भरपूर दी अल्लाह ने
पर हिसाब इनके भी गिन-गिन के लिये
ज़िन्दगी से रोज़ पल चुनता रहा
पर नहीं दो पल भी जामिन के लिये
ये ख़याल आये न मुझको आख़िरश
उम्र भर मरता रहा किनके लिये
हाल तक वो पूछने आये नहीं
इक तरफ़ रख दी क़लम जिनके लिये
-मौलिक, अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on May 11, 2016 at 8:57pm —
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221 2121 1221 212
उस रोज़ हाल मुझसे बताया नहीं गया
और उसके बाद रंज छुपाया नहीं गया
जो दर्द से नजात दिला सकता था मुझे
वो लफ़्ज़ अपने होंठों पे लाया नहीं गया
अश्कों की रोशनाई में लम्हे डुबो-डुबो
दिल के वरक़ पे लिक्खा मिटाया नहीं गया
तू तो ग़लत न था ये जहाँ सरगिराँ सही
सर किसलिये बता कि उठाया नहीं गया
इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा
मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया
(रोशनाई- इंक; सरगिराँ- नाखुश)
मौलिक व…
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Added by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2016 at 1:00pm —
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2122 2122 212
वो जो तेरे काम का होता नहीं
उससे तेरा वास्ता होता नहीं
राह कोई गर मिली होती मुझे
अपने अंदर गुम हुआ होता नहीं
अपने लोगों में रहा होता जो मै
तो सरे महफ़िल लुटा होता नहीं
लग रहा है हादसों को देखकर
यूँ ही कोई हादसा होता नहीं
खुद पे काबू रखना मुझको आ गया
रात भर अब ‘जागना’ होता नहीं
चन्द शर्तों से बँधा है आदमी
अब कोई दिल से जुड़ा होता नहीं
वो सफ़र है ज़िन्दगी जिसमें ‘शकूर’
वापसी का…
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Added by शिज्जु "शकूर" on April 19, 2016 at 9:36am —
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2122 2122 2122 212
नातवाँ जिस्म और ये बिखरे हुये पर देखिये
उड़ने वाले इक परिन्दे का मुकद्दर देखिये
बीज मैंने बो दिया है हसरतों के खेत में
मुझको कब होती है फ़स्ले गुल मयस्सर देखिये
किस तरफ़ ले जा रहा है आपको ये रास्ता
रुकिये थोड़ा, और नज़रों को घुमाकर देखिये
दिल हुआ जाता है मेरा आइने सा पुरख़ुलूस
फूल मिलते हैं मुझे या कोई पत्थर देखिये
दूसरों में ऐब कोई ढूँढते हैं आप गर
मशविरा है मेरा पहले अपने अंदर देखिये
ये…
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Added by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 7:00am —
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2122 1212 112/22
वक्त का अब हिसाब कौन रखे
अपनी आँखों में आब कौन रखे
वक्त आखिर गुज़र ही जायेगा
सो तबीअत ख़राब कौन रखे
जब मुअय्यन नहीं कि कल क्या हो
तो भला इज़्तिराब कौन रखे
जब हर इक नक़्श तेरा किस्सा है
साथ अपने क़िताब कौन रखे
मुस्कुराने के हैं सबब लाखों
रुख पे अपने नक़ाब कौन रखे
सच से क्यों हो गुरेज़-पा कोई
थाली में आफ़ताब कौन रखे
फूट ही जाना है रवाँ होकर
सत्ह-ए-दिल पर हुबाब कौन…
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Added by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2016 at 3:30pm —
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212 1222 212
बरसों बाद भी देखो, इक जगह पड़े हो तुम
संग की तरह बेहिस, सख़्त हो गये हो तुम
जन्म तो लिया था पर, गाह जी नहीं पाये
अपनी लाश का कब से, बोझ ढो रहे हो तुम
ऐसे छटपटाओ मत, और डूब जाओगे
दलदली जगह है ये जिस जगह खड़े हो तुम
बेकराँ समंदर है, और लहरें तूफ़ानी
थोड़ी देर ठहरो तो, ज़िद पे क्यों अड़े हो तुम
हर बयान पर मेरा, इख़्तिलाफ़ करते हो
दिल में अपने क्या-क्या भ्रम, पाल के रखे हो तुम
शहर की हवाओं के, हर…
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Added by शिज्जु "शकूर" on February 29, 2016 at 8:00am —
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2122 1212 22/112
आग की रस्मो-राह पानी से
खूब निकली ख़बर कहानी से
शहर का शहर जल गया साहिब
बोलिए किसकी मेह्रबानी से
बात कुछ और है, वगरना इश्क़!
वो भी इक मुद्दई-ए-जानी से?
ध्यान मुद्दों से क्यों भटकने लगा
ये न उम्मीद थी जवानी से
दिख रहा है असर उपेक्षा का
रंग धूसर हुआ है धानी से
तेरी बातों के हैं कई मतलब
मा’ने क्या निकले तरज़ुमानी से
मीडिया जैसे चल रही है ‘शकूर’
बस हरे और जाफ़रानी…
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Added by शिज्जु "शकूर" on January 21, 2016 at 11:13pm —
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फ़ैज़ साहब की ज़मीन पर एक कोशिश
221 2121 1221 212
गुमनामियों में खो गये कुछ लोग हार के
कुछ आ गये वरक़ पे फ़साना-निगार के
सपने तमाम पलकों से मैंने उतार के
लौटा दिये हयात को लम्हे उधार के
बेचैनियाँ मिली मुझे तेरी तलाश में
तुझको ही खो दिया तेरी आर्ज़ू में हार के
काँटों के चुभते ही मैं हक़ीकत में आ गया
खुश था मुग़ालतों की वो घड़ियाँ गुज़ार के
अपनी जबाँ से जिसने जलाई हैं निस्बतें
मा’ने बता रहे हैं वही इन्कि़सार…
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Added by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:19pm —
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2122 1212 112/22
हो शुरू जंगे-मुस्तहब कोई
लाये इक इन्किलाब अब कोई
यूँ अदब के बदल गये मा’ने
होता है रोज़ बे-अदब कोई
आज ग़ारतगरों के कहने पर
शह्र फूँके है बे-सबब कोई
लफ़्ज़ तेरे, तेरा तवाफ़ करें
सीख-ले बोलने का ढब कोई
आग फिरका-परस्ती की ऐ दोस्त
और भड़के बुझाये जब कोई
जब उलझ जाये बात बातों में
इक सिरा ढूँढ लेना तब कोई
सूरते-हाल पूछिये न ‘शकूर’
रोज़ नाज़िल हो इक ग़ज़ब कोई
-मौलिक व…
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Added by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2015 at 12:57pm —
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212 212 212 212
आये उश्शाक़ खुद को लिये दार पर
सर झुकाये हयात आई इसरार पर
ओस की बूंद सा चाँद ढलता हुआ
खूब है सुब्ह के सुर्ख़ रुखसार पर
माह अफ़्लाक़ पर जल उठे हैं कई
नूर उछला है उनका शबे तार पर
मारने हक़ हज़ारों खड़े हैं यहाँ
और मक़्तूल तलवार की धार पर
अपनी नाकामियों का ख़मोशी के साथ
रख दिया उसने इल्ज़ाम अगयार पर
कौन अपना नुमाइंदा है मुल्क में
फूल है तो कहीं हाथ दस्तार पर
ढूँढ ही लेते हैं राह…
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Added by शिज्जु "शकूर" on November 3, 2015 at 9:26am —
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1222 1222 1222 122
कभी अपने फ़लक़ से तुम ज़रा नीचे उतरकर
चले आओ हक़ीक़त की ज़मीनों से गुज़रकर
ग़लत के मुख़्तलिफ़ चलना! अनोखी बात है क्या?
मुझे क्यों ऐ खुदा सब देखते हैं? यों ठहरकर!
अज़ाबो-कर्ब के मारों की नाउम्मीद आँखें
छलकती जा रही थीं एक के बाद एक भरकर
मेरे हाथ आई थी़ं कुछ कतरनें यादों की कल रात
गुज़रते वक्त ने जैसे रखा हो यूँ कुतरकर
नुमायाँ हो रही है मेरी हालत क्या सरेआम?
बताओ क्यों शफ़क़ का रंग दिखता है…
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Added by शिज्जु "शकूर" on October 21, 2015 at 10:46pm —
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2122 2122 2122 212
जब लिया इक दूसरे से हमने रुख़सत ले गये
अपने अपने हिस्से की हम लोग किस्मत ले गये
निस्बतों की अहमियत जो जानते थे लोग वो
याद अपनी दे गये हमसे मुहब्बत ले गये
ताक़ पर रिश्तों को रख जज़्बात बेच आये कहीं
आज तन्हा रह गये जो सिर्फ़ दौलत ले गये
अपनी वो मस्रूफ़ियत से एक लम्हा छोड़कर
पास बैठे दो घड़ी क्या मेरी फुरसत ले गये
वो हसद का एक शो’ला मेरे दिलमें डालकर
काम अपना कर दिया मेरी वजाहत ले गये
रोककर…
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Added by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 6:36am —
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12112 12112 12112 12112
पलट के फिर आयेंगी वो महक सबा वो सहर कभी न कभी
उदास न हो कि होगा हर इक दुआ का असर कभी न कभी
ये राह बहुत तवील सही, तू तन्हा ओ बेक़रार सही
मगर तुझे याद आयेगी ये घड़ी ये सफ़र कभी न कभी
यूँ हाथ के आबलों पे न जा, ज़बीं से टपकती बूंदें न देख
दिखेगा ज़रूर दुनिया को भी, तेरा ये हुनर कभी न कभी
पिघलने लगेंगे संगे-महक, तेरे तबो-ताब से किसी दिन
निकाल के लायेंगे यही पत्थरों से नहर कभी न कभी
फ़लक़ ये ज़मीन आबो हवा,…
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Added by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2015 at 5:22pm —
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22 22 22 22 22 22 2
नैतिकता की गिनती होती है सामानों में
व्यापार बना है अब रिश्ता हम इंसानों में
सिमट गई सारी दुनिया मोबाइल में लेकिन
बढ़ गई दूरी घर के बैठक औ’ दालानों में
छो़ड़ धरा उड़नेवालों याद रहे तुमको ये
शाख नहीं होती सुस्ताने को अस्मानों में
आकांक्षायें भूल गईं हैं रिश्तों को अब तो
स्वार्थ छुपा दिखता है लोगों की मुस्कानों में
मादा जिस्मों को तकती आवारा नज़रों को
धर्मों के रक्षक रक्खेंगे किन पैमानों…
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Added by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2015 at 12:52pm —
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1222 1222 12
मेरी भी दास्ताँ समझे कोई
मुझे इंसाँ यहाँ समझे कोई
मुहब्बत में तनाफ़ुर ढूँढ ले
मुझे फिर हमज़बाँ समझे कोई
दिखाता हूँ उजालों की तरफ़
ये कोशिश रायगाँ समझे कोई
मुझे भी दर्द होता है बहुत
तड़प मेरी कहाँ समझे कोई
जला के निकला हूँ इक शम्अ मैं
मगर आतिश-फिशाँ समझे कोई
(रायगाँ= व्यर्थ, आतिश-फिशाँ= ज्वालामुखी)
मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on September 6, 2015 at 2:47pm —
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2122 2122 2122 212
कौन कहता है कि मैं गिर के धुआँ हो जाऊँगा
मैं गिरा तो जानिये आबे रवाँ हो जाऊँगा
जब तलक ज़िंदा हूँ तेरी खैर है ऐ नामुराद
जी न पायेगा अगर मैं जाविदाँ हो जाऊँगा
इस ज़मीं के ख़ुल्द हो जाने की चर्चा आम है
ये न समझे कोई मैं भी हमज़बाँ हो जाऊँगा
ये क़लम मजबूरियों ने बाँधकर तो रख दिया
खुश न हो ये सोचकर मैं नातवाँ हो जाऊँगा
फ़ाइदा क्या रोकने से यूँ मेरी आवाज़ को
ख़ामुशी खुद बोल उठेगी चुप जहाँ हो…
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Added by शिज्जु "शकूर" on August 20, 2015 at 9:41pm —
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212 212 212 212
छन के रौजन से आती हुई रौशनी
ख़्वाब के कण उड़ाती हुई रौशनी
तीरगी से गुज़रती हुई फ़र्श पर
डर के पैकर बनाती हुई रौशनी
मैं किसी के तसव्वुर में खोया था और
आई दिल को जलाती हुई रौशनी
रात भर का जगा ग़म से बेज़ार दिल
और मुझको सताती हुई रौशनी
इस तग़ाफ़ुल से नाशाद हो मुझसे वो
रुठ के दूर जाती हुई रौशनी
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 9:01pm —
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1222/ 1222/ 1222
मेरे दिल में अजब सी बेकरारी है
अभी जीने की हसरत मुझमें बाकी है
मैं मेरी हसरतों के साथ तन्हा हूँ
किसे परवाह मेरी चाहतों की है
वो बरसेगा कि मुझ पर टूट जायेगा
अभी बादल मेरे सर पर उठा ही है
अचानक शह्र क्यों जलने लगा कहिये
शरारों को किसी ने तो हवा दी है
हक़ीकत ही कही थी मैंने तो ऐ दोस्त
ये देखो जान पर मेरी बन आई है
मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2015 at 4:26pm —
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