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कुमार गौरव अजीतेन्दु's Blog – December 2012 Archive (4)

एक विचार

पंचमहाभूतों से निर्मित

मानव शरीर,

जिसके अंदर वास करती है

परमात्मा का अंश "आत्मा",

जो संचालित करती है

ब्रह्मांड में मानवजीवन को,

उसके आचार-विचार, व्यक्तित्व को,

रोकती है कुमार्ग पर जाने से,

ले जाती है सन्मार्ग की ओर,

उधर, जिधर मार्ग है मोक्ष का;

किन्तु मनुष्य पराभूत हुआ

अनित्य, क्षणभंगुर, सांसारिक

मोह के द्वारा, कर देता है उपेक्षा

ईश्वर के उस सनातन अंश की,

और निकल जाता है

अंधकार से भरे ऐसे मार्ग पर

जो समाप्त होता है

एक कभी न…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 18, 2012 at 7:00pm — 1 Comment

कुण्डलिया - भारतरत्न लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की पुण्यतिथि (१५ दिसंबर) पर विशेष

मोती-मोती जोड़ के, गूँथ नौलखा हार।
विश्वपटल पे रख दिया, भारत का आधार॥
भारत का आधार, भरा था जिसमें लोहा,
जय सरदार पटेल, सभी के मन को मोहा।
वापस लाये खींच, देश की गरिमा खोती,
सौ सालों में एक, मिलेगा ऐसा मोती॥

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 15, 2012 at 10:50am — 16 Comments

मयूर मन का

नील गगन में अम्बुद धवल,

स्नेहरूपी मोतियों समान बूँदों से सींचते

बलवान, योग्य आत्मजों सदृश

फलों से लदे छायादार विटपों से भरी,

उत्साही, सुगन्धित, रंग-बिरंगी पल्लवित

पुष्पों से सजी,

स्वर्ण सरीखी लताओं से जड़ित,

चटख हरे रंग की कामदार कालीन बिछी

धरती को;

मंगलगान गाती कोयलें बैठ डालियों पर,

प्रणय-निवेदनरत मृग युगल,

अमृतकलश सम दिखते सरोवर,

किलकारियों से वातावरण को गुंजायमान

करते खगवृन्द,

परियों जैसी उड़ती तितलियाँ;

ऐसे सुन्दर, मनमोहक, रम्य…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 12, 2012 at 11:30am — 12 Comments

दो सवैये

मदिरा सवैया

मोषक राज किये यतियों पर ये कहना अतिरंजन है।
कौन बचा दुनिया भर में कह दे उसका चित कंचन है।
शोषक भी सब शोषित भी सब मौसम का परिवर्तन है।
कारण है निजता चढ़ के सिर नाच रही कर गर्जन है॥

दुर्मिल सवैया

अवलंबन हो निज का तब जीवन ये सुख की रसधार लगे।
प्रभुवंदन से मन पावन हो तरणी भव के उसपार लगे।
धरती सम हो उर तो नित "मैं कुछ दूँ सबको" यह भाव जगे।
अनुशीलन है बसता जिसमें उसमें नव के प्रति चाव जगे॥

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 1, 2012 at 8:21am — 10 Comments

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