अतिथि से गृहस्वामी बोला मेरे स्नेहपात्र;
आकांक्षा हमारी आप बार-बार आइए|
अतिथि ने अभिभूत कहा धन्य भाग्य मेरे;
इतनी ख़ुशी आपकी, कारण बताइए|
गृहस्वामी ने सुनाया, बड़ा अच्छा लगता है;
इतना तो निश्चित ही आप जान जाइए|
पर जो सुख मिलता है जाते देख आपको;
उस परमानंद से मुक्ति न दिलाइए||
Comment
पर जो सुख मिलता है जाते देख आपको;
उस परमानंद से मुक्ति न दिलाइए||
परमानंद mila padh k....कुमार गौरव अजीतेन्दु ji
आदरणीया राजेश जी, आपके द्वारा प्रशंसा पाकर बहुत उत्साहित हूँ...धन्यवाद....
बहुत सुन्दर रोचक घनाक्षरी
आदरणीया रेखा जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद......
गौरव जी ,अच्छी रचना पर बधाई |
प्रिय कुमार जी , सस्नेह
अच्छा लगता है आप का आना
दिल तोडता है आपका जाना
सुन्दर कविता आप ने सुनाई
परमानन्द मिला आपको बधाई
पर जो सुख मिलता है जाते देख आपको;
उस परमानंद से मुक्ति न दिलाइए||
कुमार गौरव जी ...भेद भरी ...और सुन्दर घनाक्षरी ....बधाई हो
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