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गीत - जी रही हैं दूरियाँ

भींगते तकियों से आँसू पी रही हैं दूरियाँ

मस्त हो नजदीकियों में जी रही हैं दूरियाँ

अनदिखी कितनी लकीरें खींच आँगन में खड़ीं
अनसुनेपन को बना बिस्तर दलानों में पड़ीं
बैठ फटती तल्खियों को सी रही हैं दूरियाँ

तोड़ देतीं फूल गर खिलता कभी एहसास का
कर रहीं रिश्तों के घर को महल जैसे ताश का
इन गुनाहों की सदा दोषी रही हैं दूरियाँ

प्यार में जब घुन लगा तो खोखलापन आ गया
भूतबँगले सा वहाँ भी खालीपन ही छा गया
ऐसे ही माहौल में जनती रही हैं दूरियाँ

बोझ कर संबंध को गर्माहटें भी हट गईं
जोड़नेवाली जमीनें खाइयों से पट गईं
देख हँस-हँस के मजा लेती रही हैं दूरियाँ

पार कर जाए कोई तन्हा मुसाफिर यत्न कर
ना लगे रस्ते में भी वीरानियों का कोई डर
इन लिहाजों से बड़ी टेढ़ी रही हैं दूरियाँ

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 7:52pm

एक सशक्त गीत, भाई अजीतेन्दु, जिसका यहाँ प्रस्तुत होना आपके रचनाकार की काव्य-प्रगति के सोपान पर चिह्न स्वरूप अंकित होना है.   हाँ, शिल्प पर एकांगी प्रयास हुआ है. इसके प्रति किन्तु मैं बहुत कुछ कहूँगा नहीं. निर्णय आपका... :-)))

ढेर सारी बधाई स्वीकारें और सदा खुश रहें. प्रयासरत रहें

शुभ-शुभ

Comment by vijay nikore on December 1, 2013 at 12:16pm

इस सुंदर रचना के लिए बधाई।

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 3:25pm

आदरणीय ,  !!!सुन्दर भाव पूर्ण गीत के लिये आपको बधाई !!!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 30, 2013 at 2:01pm

प्यार में जब घुन लगा तो खोखलापन आ गया
भूतबँगले सा वहाँ भी खालीपन ही छा गया
ऐसे ही माहौल में जनती रही हैं दूरियाँ

लाजवाब, क्‍या कहने हैं आदरणीय । लाख मुंडी घुमाउं फिर भी ऐसे सच्‍चे खयाल दिमाग में नहीं आएंगें, बहुत ही बढि़या,

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 30, 2013 at 9:16am

तोड़ देतीं फूल गर खिलता कभी एहसास का
कर रहीं रिश्तों के घर को महल जैसे ताश का
इन गुनाहों की सदा दोषी रही हैं दूरियाँ

कभी कभी अति संवेदनशीलता भी रिश्तों में दूरियां पैदा कर देती है, बेहद सुंदर भावपूर्ण रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय कुमार गौरव जी

Comment by annapurna bajpai on November 29, 2013 at 10:59pm

सुंदर गीत बहुत बधाई आपको आ0 कुमार गौरव जी । 

Comment by बृजेश नीरज on November 29, 2013 at 9:33pm

वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

भाई जी कभी हम लोगों को भी मार्गदर्शन दे दिया करिए.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 29, 2013 at 8:26pm

संवेदनहीनता और संवादहीनता निकटस्थ रिश्तों में भी दूरियों को कैसे जन्म देती है, पोषण देती है उसे बहत सुन्दरता से व्यक्त किया है 

मस्त हो नजदीकियों में जी रही हैं दूरियाँ.............बहुत सुन्दर 

इस संवेदनशील मर्मस्पर्शी गीत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई कुमार गौरव अजीतेंदु जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 7:26pm

अजितेंदु जी

आपका गीत ,आपकी भावनाए सब बेहद सुन्दर है i

शुभ शुभ  i

Comment by Meena Pathak on November 29, 2013 at 6:48pm

सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय !!

कृपया ध्यान दे...

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