For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(१) रंक जले राजा जले, कौन सका है भाग |
सबके अंदर खौलती, एक क्षुधा की आग ||

(२) ज्वाल क्षुधा में वो भरी, कहीं न ऐसा ताप |
जल के जिसमें आदमी, कर जाता है पाप ||

(३) भूख बड़ी बलवान है, ना लेने दे चैन |
दौड़ें सब इसके लिए, दिन हो चाहे रैन ||

(४) जो नहिं होती भूख तो, सच कहता हूँ मीत |
निर्भय नर जीता यहाँ, नहिं होता भयभीत ||

(५) भूखा मन कमजोर है, बेबस औ लाचार |
भूल चले कर्तव्य को, याद नहीं अधिकार ||

(६) भूख दिखाए वो घड़ी, देती वो संताप |
माता बेचे पूत को, गरदन काटे भ्रात ||

(७) भूख लगाए वो अनल, फूँके सब की लाज |
चौराहों पर बेटियाँ, बेच रहीं तन आज ||

(८) भूख दबाए साँच को, बुलवाती है झूठ |
इसका मारा आदमी, खुद से जाता रूठ ||

(९) छीन मिटाए भूख जो, कहलाता है चोर |
नैना ताके सामने, मन देखे चहुँओर ||

(१०) भूख कहे याचक बने, लेवे खुद को मार |
राह निहारे आस में, कौन करे उपकार ||

(११) भूख कराए चाकरी, खाए कोड़े चाम |
सिर पर मैला बोझ के, दिलवाए कम दाम ||

Views: 2060

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 27, 2012 at 1:52pm

आदरणीय रक्ताले सर......सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.......

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 25, 2012 at 11:13pm

भूख कराए चाकरी, खाए कोड़े चाम |
सिर पर मैला बोझ के, दिलवाए कम दाम ||

बहुत सुन्दर दोहे कुछ कुछ तो अति उत्तम, बधाई.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 24, 2012 at 11:16am

आदरणीय कुशवाहा सर......सराहना के लिए आपका दिल से आभार........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 24, 2012 at 11:15am

आदरणीय अग्रज अम्बरीश जी, दोहे पसंद करने के लिए तथा दोहे के सम्बन्ध में एक और मूल्यवान तकनीकी जानकारी देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........स्नेह बनाए रखियेगा.......

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 24, 2012 at 10:06am

मरता क्या न करता.

बहुत सुन्दर दोहे के माध्यम से विचारों का सम्प्रेषण. बधाई.  स्नेही कुमार जी, सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 24, 2012 at 9:07am

//जो नहिं होती भूख तो, सच कहता हूँ मीत |
निर्भय नर जीता यहाँ, नहिं होता भयभीत ||

भूख कराए चाकरी, खाए कोड़े चाम |
सिर पर मैला बोझ के, दिलवाए कम दाम ||//

सुन्दर दोहे सब रचे, भाव भूख की मार.

बहुत बधाई लीजिए, गौरव, अनुज, कुमार ..

//भूख बड़ी बलवान है, ना लेने दे चैन |//     विद्वानों के अनुसार दोहे में 'ना' शब्द से बचना चाहिए ...इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं

भूख बड़ी बलवान है, लेने दे नहिं चैन.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 24, 2012 at 7:13am
आदरणीया रेखा जी, प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार।
Comment by Rekha Joshi on August 23, 2012 at 11:40am

 भूख कराए चाकरी, खाए कोड़े चाम |
सिर पर मैला बोझ के, दिलवाए कम दाम ||,भूख पर सुंदर दोहे रचे है आपने गौरव जी ,बधाई 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 23, 2012 at 10:54am

स्वागत है प्रिय मित्रवर संदीप पटेल जी.....आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 23, 2012 at 10:52am

धन्यवाद बंधुवर नवल किशोर सोनी जी......आपका हार्दिक स्वागत है......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service