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कुमार गौरव अजीतेन्दु's Blog – November 2013 Archive (3)

गीत - जी रही हैं दूरियाँ

भींगते तकियों से आँसू पी रही हैं दूरियाँ

मस्त हो नजदीकियों में जी रही हैं दूरियाँ

अनदिखी कितनी लकीरें खींच आँगन में खड़ीं

अनसुनेपन को बना बिस्तर दलानों में पड़ीं

बैठ फटती तल्खियों को सी रही हैं दूरियाँ

तोड़ देतीं फूल गर खिलता कभी एहसास का

कर रहीं रिश्तों के घर को महल जैसे ताश का

इन गुनाहों की सदा दोषी रही हैं दूरियाँ

प्यार में जब घुन लगा तो खोखलापन आ गया

भूतबँगले सा वहाँ भी खालीपन ही छा गया

ऐसे ही माहौल में…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 28, 2013 at 6:30pm — 11 Comments

ग़ज़ल - चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है

चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।

बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।

वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,

हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।

हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,

क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।

माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,

अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।

अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,

घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 10, 2013 at 9:30am — 28 Comments

ग़ज़ल - लोग हैं तैयार खुद की लाश ढोने के लिए

ख्वाब के मोती हकीकत में पिरोने के लिए।

लोग हैं तैयार खुद की लाश ढोने के लिए।

झोंपड़े में सो रहा मजदूर कितने चैन से,

है नहीं कुछ पास उसके क्योंकि खोने के लिए।

आसमां की वो खुली, लंबी उड़ानें छोड़कर,

क्यों तरसते हैं परिंदे कैद होने के लिए।

जिंदगी भर खून औरों का बहाते जो रहे,

जा रहे हैं तान सीना पाप धोने के लिए।

जगमगाते हैं दिखावे से शहर के सब मकान,

सादगी तो रह गई है मात्र कोने के लिए।

पुष्प सारे चल…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 2, 2013 at 12:25pm — 28 Comments

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