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Atendra Kumar Singh "Ravi"'s Blog – July 2011 Archive (3)

ग़ज़ल

             ग़ज़ल 



लगती है बाज़ार गुज़रते हैं आदमीं 

हर रोज़ बिकने खड़े होते हैं आदमीं 



उठते हैं हर सुबह जाने क्या सोचकर 

इस पेट के आगे पर झुकते  हैं आदमीं 



तपती दोपहरी में जब लगती है प्यास 

बुझे ए कैसे यही सोचते हैं आदमीं …



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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 24, 2011 at 9:47am — 2 Comments

"व्यथा"

                    "व्यथा" 
ज़िन्दगी के सफ़र में ऐसा क्या ये हुआ 
ये कदम थे रुके मेरे, वक़्त चलता रहा 
जाने रूठा है मुझसे मेरा आईना …
Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 1:46pm — 2 Comments

चल रहा आदमी

        "चल रहा आदमी"

वक़्त  के हासिए पर लटक रहा आदमी

कभी इधर, कभी उधर चल रहा आदमी
 
जाने क्या बात है उनके दिलों में 
 चेहरों पे नकाब ले चल रहा आदमी 
उठतीं हैं हिलोरें समुन्दर में…
Continue

Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 11:24am — 3 Comments

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