2122 2122 1222 12
चल दिया है छोड़, क्या जुल्म ये काफी नहीं
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अब हमारी याद भी क्यूँ तुम्हें आती नहीं
चल दिया है छोड़,क्या जुल्म ये काफी नहीं //१//
तू हमारे दिल बसा , इसमें है कैसी खता
हो गया हमसे जुदा याद क्यूँ जाती नहीं //२//
वो हवायें वो फिजायें बुलाती हैं तुम्हें
आ तो जाओ फिर कोई बात यूँ भाती नहीं //३//
मुडके भी देखा नहीं तुम गये जाने कहाँ
होश मेरा ले लिया जान क्यूँ जाती नहीं //४//
मन तुझे तो सौप कर तन भी अर्पित कर दिया
रूह भी अर्पण तुझे अब तो कुछ बाकी नहीं //५//
जल रहा है दिल मेरा, रो रही अब आँख ये
सुन के ना आये कभीं ऐसा तू मांझी नहीं //६//
साथ देते 'रवि' ये आँसू तेरे दिन रात अब
आ ही जाते आँख से अब कोई नाही नहीं //७//
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मौलिक और अप्रकाशित -अतेन्द्र कुमार सिंह'रवि'
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नाही-कोई रोकने वाला,मना करने वाला
Comment
आदरणीय नीरज जी धन्यवाद आपको ...सादर
बहुत सुन्दर
मन तुझे तो सौप कर तन भी अर्पित कर दिया
रूह भी अर्पण तुझे अब तो कुछ बाकी नहीं .. क्या खूब कहा है ..
डॉ आशुतोष मिश्र जी और आदरणीय गिरिराज जी आप दोनों जन को सादर प्रणाम और बहुत बहुत धन्यवाद सराहने के लिए ....हम इसके हक़दार है भी कि नहीं पता नहीं .....पर हमारा ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ .....आप सब अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें ......आभार
आदरणीया मीना पाठक जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद...आपको हमारी ग़ज़ल पसंद आई.
आदरणीय अतेन्द्र भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है भाई , आपको हार्दिक बधाई !!!!
मन तुझे तो सौप कर तन भी अर्पित कर दिया
रूह भी अर्पण तुझे अब तो कुछ बाकी नहीं //५...इस बहतरीन रचना का ये शेर मुझे बेहद भाया ..सादर
बहुत सुन्दर गज़ल , बधाई आप को
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