दूर है चाँद बंदगी हो क्या
दिल की बस्ती में रौशनी हो क्या
और के ख्वाब को न आने दिये
ख्वाब में ऐसी नौकरी हो क्या
मुड़के देखा हमें न जाते हुये
तल्ख़ इससे भी बेरुखी हो क्या
ज़ख्म देकर तो खुश हुये उस दिन
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
गा तो सकता था मैं भी तेरी ग़ज़ल
यूँ कभीं मेरी धुन सुनीं हो क्या
साथ सदियों तलक दे सकता था मैं
दो कदम साथ तुम चली हो क्या
सोचकर क्यूँ ये रात ढलती रही
तुम हमें भी यूँ सोचती हो क्या
ख़त मेरे सामनें जलाये फ़क़त
और तेरी ये दिल्लगी हो क्या
बन तो सकता था मैं भी यूँ तेरा ‘रवि’
चादनीं तुम मेरी बनीं हो क्या
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मौलिक और अप्रकाशित-अतेन्द्र कुमार सिंह'रवि'
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Comment
आदरनीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम .....हमें आपके प्रतिक्रिया की निरंतर प्रतीक्षा रहती है ....आपके सुझाव और मार्गदर्शन से ही यह हमारा प्रयास संभव हो सका है और आगे भी आपके आशीर्वाद की कामना करते हैं .....आपको हमारी गज़ल पसंद आई ...सहृदय धन्यवाद आपको
आदरणीया प्राची दीदी आपको हमारी गज़ल पसंद आई हम आपके आभारी हैं ....सहृदय धन्यवाद आपको
आदरणीय बैद्यनाथ जी आपने हमारी गज़ल के जिस शेर को पसंद किया और सराहना की ...आभार सहित बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय नीरज जी आपको हमारी गज़ल पसंद आई ....आपको सहृदय धन्यवाद
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपके सुझाव पर हम गौर करेंगे .....आपको गज़ल पसंद आई ...आपको बहुत बहुत धन्यवाद
मुड़के देखा हमें न जाते हुये
तल्ख़ इससे भी बेरुखी हो क्या ... .... वाह !
बहुत खूब !!
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० अतेन्द्र जी
आदरणीया राजेश कुमारी जीने बहुत ही सम्यक सुझाव दिए हैं , उनपर अवश्य ही गौर फरमाएं
शुभकामनाएं
बहुत ही दिलकश शेर
बन तो सकता था मैं भी यूँ तेरा ‘रवि’
चादनीं तुम मेरी बनीं हो क्या....वाह ..बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..
साथ सदियों तलक दे सकता था मैं
दो कदम साथ तुम चली हो क्या... क्या कहने ..
दूर है चाँद बंदगी हो क्या
दिल की बस्ती में रौशनी हो क्या ------वाह्ह्ह सुन्दर मतला
और के ख्वाब को न आने दिये-----आने दिया---- कर लीजिये ख़्वाब एक वचन है तो दिया आएगा
ख्वाब में ऐसी नौकरी हो क्या
साथ सदियों तलक दे सकता था मैं----इसकी बह्र एक बार जांच लें ----दे की मात्रा मेरे ख्याल से यहाँ नहीं गिरा सकते और शब्द भी अधिक लग रहे हैं -----साथ सदियों तलक मैं दे सकता ---करके देखिये बात बन जायेगी
सुन्दर ग़ज़ल हुई अतेन्द्र जी बहुत -बहुत बधाई
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