परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 87वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अमीर मीनाई साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ "
2122 1122 1122 112/22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फइलुन/फेलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )
१. पहला रुक्न फाइलातुनको फइलातुन अर्थात २१२२ को ११२२भी किया जा सकता है
२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है|
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 सितम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 सितम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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शुक्रिया मुहतरम, ख़लल तो बाईस है इज़हारे खल्क का, वरना क़बले पैदाइएशी ए क़ायनात हर शय मुकम्मिल तवाजुन में ही थी. ख़लल हर ईजादी तसव्वुर का पसे मंज़र है, एक अल्लाह, ख़ुदा, या ईश्वर ही हालते नापैद का तनहा शाहिद है, बाक़ी तक तो अफसूँ-ए-कुदरत की दस्तरसी है ही. ग़ज़लगोई भी इक ख़लल है, जुबां तो महज इक वसीला है.
शब ब खैर जनाबे मुहतरम. ख़ुदा हाफ़िज़. ईश्वर हमारा संरक्षक है.
अच्छी ग़ज़ल हुई है आपने इस दफह अर्थ दिए है जिसके लिए आपका शुक्रिया आपकी ग़ज़ल को कई बार पढना पड़ी तब जाकर थोड़ी थोड़ी समझ आई है | कहीं कहीं कुछ बाते भावों में समझ नहीं आई है | बहरहाल आपको बधाई |
आदरणीया कल्पना जी, आपका ह्रदय से आभार.
कुछ कठिन शब्दों की मीनिग पढनी पड़ी .कुछ शेर बहुत पसंद आये
जैसे ...
फ़ायदा क्या है लिखूँ हाल अलग से ख़त में
दिल में जो बात है क़ासिद से छिपा भी न सकूँ
हैं निहाँ इनमें मुहब्बत के हसीं कुछ मोती
अश्क़ आँखों में जो ठहरे हैं गिरा भी न सकूँ
अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद .
आदरणीया राजेश जी, आपकी हौसल अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर
आदरणीय दिनेश जी, आपकी सुखन नवाजी का ह्रदय से आभार. सादर
फ़ायदा क्या है लिखूँ हाल अलग से ख़त में
दिल में जो बात है क़ासिद से छिपा भी न सकूँ ...वाह!
अच्छी ग़ज़ल है आ. राज़ नवादवी जी, हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
फ़ायदा क्या है लिखूँ हाल अलग से ख़त में
दिल में जो बात है क़ासिद से छिपा भी न सकूँ
आशिक़ी में जो गदाई ने मुझे दौलत दी
गम की खैरात है इतनी कि लुटा भी न सकूँ
क्या कहने ..वाह वाह ...आदरणीय राज़ साहब कमाल के अशआर हुए हैं ...बहुत खूब ...मुबारकबाद|
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