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अद्भुत , अकल्पनीय ढेरों बधाई .
आपके द्वारा कहे गए ये चार शब्द चार सौ शब्दों की प्रतिक्रिया पर भारी है।मैं अभिभूत हुई हूँ पाकर इसे। शत -शत नमन आपको आदरणीय डा गोपाल नारायण जी।
सर्वप्रथम बधाई आपको फीता काटने के लिए और वो भी इतने लाजवाब ढंग से , संकल्प चीज़ ही ऐसी है ,साथ रखो तो दुनियादारी जीने नहीं देती और छोड़ दो तो मन कचोटता है ,शानदार रचना आदरणीया ढेरों बधाई प्रेषित हैं आपको
संकल्प चीज़ ही ऐसी है ,साथ रखो तो दुनियादारी जीने नहीं देती और छोड़ दो तो मन कचोटता है -----सही सार लिया है आपने कथा का। बहुत मुश्किल है भावनाओं को जब्त करके रहना इस वैश्वीकरण के दौर में। आपकी सराहना पाकर मैं अभिभूत हुई हूँ आदरणीया प्रतिभा जी । सदा यु ही स्नेह बनाये रखियेगा। आप सबके स्नेहतले बहुत कुछ सीखना है मुझे। सादर नमन।
राजनीति !!! बेहद खूबसूरत तरीके से इसके सबसे गंदे पहलु को उजागर किया है आपने आदरणीय कान्ता जी ! सादर
कथा पसंदगी के लिए हृदयतल से आभार आपको आदरणीय सुधीर जी।
बातों बातों में बड़ी बात कही गयी हैं आदरणीया कांता जी, एक अलग कलेवर के साथ अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई इस शानदार आगाज के लिए.
आप जैसे लघुकथा के महारथी से ये सुनना किसी ऑस्कर पाने से काम नहीं है मेरे लिए आदरणीय गणेश जी'बागी' जी।
सादर अभिनन्दन आपका ! __/\__/\__/\__
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बेहतरीन प्रस्तुति!एक आम आदमी का सच और ईमानदारी के प्रति संकल्प का संघर्ष एक चर्म पर जाकर भौतिकवाद के आगे टूट ही जाता है!
आपको कथा पसंद आई। अच्छा लगा। सदा मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आभार आपको आदरणीय तेजवीर जी। __/\__/\__/\__
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