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धन्यवाद नीता जी
आभार सर आपका .कथा का सारा मर्म यही तो है. पुन: शुक्रिया
आदरणीय नयना आरती जी आप ने भावनात्मक रूप ले एक गहन रचना रची है. बहुत खूब.
आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी आप रचना पर आए.मेरी रचना का कमजोर पक्ष भी इंगित करते तो मेरी सिखने की कडी मे एक कडी और जुड जाती.
आभार ज्योत्सना जी
लघुकथा अच्छी हुई है आ० नयना जी, सन्देश भी सार्थक दे रही है I किन्तु शिल्प की दृष्टि से रचना महज़ किस्सा-गोई होकर रह गई है I इसमें सभी कुछ आप ने ही कह दिया, पात्रों और परिस्थतियों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा I ऊपर से रचना प्रस्तुति में ज़िग-ज़ैग फोर्मेटिंग और शब्दों के मध्य अनावश्यक गैप से सम्प्रेषण भी हल्का हो रहा है I बहरहाल, प्रतिभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें I
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बचपन से गाँव की चिरपरिचित बुराइयों को देखती आ रही वह अब सयानी हो चुकी थी और सब कुछ समझने लगी थी. अपने ही गाँव के सारे पुरुषों को हमेशा दिन मे बड के पेड के निचले चबुतरे पर 'तीन-पत्ती’ खेलते देखा था या फिर शाम होते ही शराब के नशे मे धुत्त .. सोचती क्या यही है यह पुरुष ?
जबकि उसके गाँव की स्त्रियाँ भोर होते ही घर का काम निपटा खेतो की ओर चल देती । शाम तक खेतों में निराई-गुडाई के साथ-साथ मजदूरी करती नही थकती थी। आख़िर पापी पेट का सवाल था। वह बडी असमंजस में थी जब देखती और सुनती की साँझ ढले घर आने पर थके शरीर पर पिल पड़ते सबके मरद ...
ये देख उसका तो सारा तन-बदन अंगार की तरह जल उठाता था। उसके मन पर गहरा प्रभाव छोड़ चुकी थी यह रोज की हक़ीकत। बस अब उसने ठान ली थी की उसका बस चले तो सब कुछ बदलने की ... पर कैसे ?
बहुत सोच समझकर उसने गाँव की स्त्रियों को इकट्ठा कर इस पर चर्चा की और सबकी राय जानी। इसके बाद सहमति से पहले अवैध शराब की बिक्री पर रोक के लिए पंचायत पर धरना दिया। घर-घर जाकर पुरुषों को समझाईश .. कुछ की समझ में आया कुछ निरे खूसट निकले
सब महिलाओ ने सर्वसम्मति से "नशा मुक्ति" और" जुआ बंदी" का अभियान चलाया।
अब उसकी संकल्प शक्ति रंग दिखाने लगी थी और जल्द ही गाँव की हर स्त्री का साथ उसे मिलने लगा - वह सबका दिल जीतने में कामयाब रही थी और फिर वह दिन आ गया जब--
सगुन बाई सर्वसम्मति से ग्राम पंचायत छाईकुआं की सरपंच चुन ली गई।
उसका सपना अब सच होने वाला था उसकी आँस जाग उठी, वह खुश थी अपने गाँव की स्त्रियों के मनोबल को देखकर। उसने सरपंच की हैसियत से बचपन से हृदय में बिधे कोलाहल को समाप्त करने की घोषणा की ---
"शराब पीता या जुआँ खेलता गाँव का कोई भी पुरुष नजर आयेगा या पकड़ा जायेगा तो उसके जूते-टोपी उतार उसे गाँव की सीमा के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा "
आज उसका पहला साक्षात्कार था कोई विदेशी पत्रकार गाँव में आई हुई थी .. गाँव टौरियाँ की किस्मत अब दुनिया देखने वाली थी !
काश पूरा हिन्दुस्तान भी इसी तरह बेहतर हो--क्या हो पाएगा ऐसा?
"निश्चित हो सकेगा । इसी तरह की दृढ संकल्प शक्ति के साथ।"
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