For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

पिछले 78 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79 

विषय - "छाँव/छाया"

आयोजन की अवधि- 12 मई 2017, दिन शुक्रवार से 13 मई 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु,  एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 12 मई 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 10011

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब मिथिलेश जी ऐसी ग़ज़ल कहना चाहते हैं :-

जाने क्या ये सूरज खाकर आता है
अब तो छाया में भी तन झुलसाता है

कम पड़ती है अब तो छाया बरगद की
हर दुपहर में मेला सा लग जाता है


कम होती है आवा जाही अब पथ पर
सारा दिन ये सूरज आँख दिखाता है

ये बच्चे कब किसकी मानें हैं बातें
इनसे तो ये सूरज भी घबराता है

मिल जाये तो नहीं छूटती है छाया
अब तक का अनुभव तो ये बतलाता है

व्रक्ष काट कर बहुधा ये मानव ही अब
निज सुख में हर दिन ही आग लगाता है

हरे व्रक्ष और मूल्य उस छाया का है
मानव तप कर भी ये समझ न पाता है ।
----

आदरणीय समर कबीर साहब सादर, बहुत त्वरित आपने यह सुंदर बदलाव कर दिया है. आपका हृदयातल से आभार. सादर.

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपको रचना प्रदत्त विषय पर सार्थक लगी मेरा रचनाकर्म सफल हुआ. आपके कहे अनुसार मैं अवश्य ही एक 'फा' और लगाकर अपनी इस गजल में कुछ बदलाव करने का प्रयास करूंगा. आपकी सराहना और सुझाव के लिए हृदयातल से आभार. सादर.

प्रदत्त विषय पर बहुत सुन्दर रचना,हार्दिक बधाई आदरणीय अशोक जी

प्रस्तुति को सराहने के लिए अतिशय आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी. सादर.

आदरणीय अशोक रक्ताले जी सादर 

    ग़ज़ल की विधा के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं रखता किन्तु आपका प्रयास काबिले तारीफ़ है सादर बधाई निवेदित है 

आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अनमोल है. आपका हृदयातल से आभार. सादर.

वृक्ष काटकर बहुधा ये मानव ही

निज सुख में हरदिन आग लगाता है | - सही कहरहे है  आप साहब हमारे दुखों का कारण हम स्वयम ही है 

 

हरे वृक्ष और मूल्य उस छाया का

मानव तपकर भी समझ न पाता है | - वाह ! प्रदत्त विषय पर अति सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई 

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर, प्रस्तुति पर विस्तृत प्रतिक्रिया देकर रचना को मान देने के लिए आपका हृदयातल से आभार. सादर.

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले सर,सुन्दर विषयानुरूप गजल के लिए हार्दिक बधाई!

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, प्रस्तुत गजल पर आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार. सादर.

पृच्छाया
.............
धरती का तीन चौथाई भाग पानी में डूबा है,
फिर भी हम बूंद बूंद पानी को तरसते हैं ?
धरती पर हर वर्ष प्रचुर खाद्यान्न उत्पन्न होता है,
फिर भी लाखों लोग भूखों मरते हैं ?
पृथ्वी की सभी वस्तुएं सभी की सम्मिलित सम्पदा है,
फिर भी कुछ लोग उस पर एकाधिकार जता दूसरों को जीने से वंचित रखते हैं ?
सामाजिक असमानता और भिन्नता की चक्की में ,
महिलाएं और बच्चे ही पिसते हैं ?
दिग्भ्रमित युवावर्ग कामान्ध मृगजल में डूब
खोता जा रहा है पारिवारिक नैतिक मूल्य ?
. . . ऐसे ही अनेक,
लम्बे समय से संचित,
बार बार परेशान करते, एक एक प्रश्न जुड़ते,
विशाल पृच्छाया बन गए।


इन प्रश्नवाणों को रोज पैना करते सोचता
कि जब कभी तुम मिलोगे मेरे प्रियतम ! तो
एक साथ प्रहार कर तुम्हें बेचैन कर दूंगा ।
छक्के छुड़ा दूंगा, तुम्हारी हेकड़ी भुला दूंगा,
और नहीं , तो पसीने से तर तो जरूर ही कर दूंगा।
परसों,
मैंने तुम्हें ललकारा !
नृत्य करती जिव्हा की कमान पर तानकर इन्हीं शरों को ।
पर , तुमने सामना ही नहीं किया,
तुम नहीं आए ? लगा, डर गए ?
दिनरात की प्रतीक्षा के बाद
कल,
मैंने तुम्हें पराजित घोषित कर दिया।


आज, फिर
जब मैं इनकी कुशाग्रता देखकर क्षुब्ध हुआ, तब
एक अनोखी लहर ने
तुम्हारी, कृपाच्छादित सीमा में अचानक
धकेल दिया।
ए मेरे अभिन्न ! यह कैसा सम्मोहन?
मैं अपने को ही भूल गया,
वहाॅं थे, तो केवल तुम और केवल तुम !
तीक्ष्ण प्रश्न.तीरों से भरा तूणीर भी लुप्त हो गया !
प्रश्नाघात करने को सदा आतुर
थिरकती जिव्हा भी मौन !
अब !
क्या ? किससे ? क्यों ? प्रश्न करे कौन ?

मौलिक और अप्रकाशित

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
8 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
8 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
8 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service