For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-61

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 61 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह खुदा -ए सुखन मीर तकी मीर की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया"

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

फेलुन  फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा 

(बह्र: मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ)
रदीफ़ :- किया 
काफिया :- आम (शाम, काम , नाम, तमाम आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 जुलाई शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11791

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ० राजेश बहन इस  सुन्दर ग़ज़ल के   लिए बहुत बहुत बधाई

आ० लक्ष्मण धामी जी दिल से बहुत- बहुत आभार आपका| आज ओबिओ पर आपको बहुत दिन  बाद देखा ..

बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,ग़ज़ल आपने अच्छी कही है,लेकिन मतला कुछ और तवज्जो चाहता है ,बह्र देख लीजियेगा ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

आ० समीर भाई जी ,आपने सही कहा मतले के उला में ही शब्द छूट गया था गलती से पोस्ट करते हुए --इसे यूँ पढ़िए 

बोला दिल हर-दम तुमने ही मुझको अबस बदनाम किया

आपको ग़ज़ल के हर शेर पर दाद के लिए दिल से आभार भाई जी |

//बोला दिल हर-दम तुमने मुझको अबस बदनाम किया
इजहार-ए-मुहब्बत की खातिर नैनों ने गुपचुप काम किया// मिसरा-ए-ऊला की तक़्तीह दोबारा कर लें।   

//दिल देकर तुझको क्या पाया  खुद का चैन तमाम किया
रात जगी तारे गिन-गिन जब दुनिया ने आराम किया// हुस्न-ए-मत्ला भी उम्दा हुआ है।   

//भीगे जाने कितने मौसम बिन तेरे इन अश्कों से
रात को रो रो सुबह किया,या दिन को ज्यों त्यों शाम किया// ग़ज़लियत से भरपूर यह गिरह कमाल की हुई है।   

//तल्खी झूठे वादों की सब भूल गई मैं इक पल में
सारे शिकवे धो बैठी जब उसने आज सलाम किया// क्या मासूम अंदाज़ है - वाह।

//नींद खुली तो तब ही जानी हमने उसकी मजबूरी
उसकी पाक़ मुहब्बत पर क्यूँ ‘राज’ ख्याले-खाम किया// अच्छा मक़्ता हुआ है।
 
//तेरी तहरीरों में अपना सीता नाम हुआ न हुआ
अपने जीवन के बर्खों में हमने तुमको राम किया // शेअर के भाव गज़ब के हैं, मगर तक़ाबुल-ए-रदीफैन रह ही गया मोहतरमा !

आ० योगराज जी,ग़ज़ल पर आपकी पुनः उपस्थिति और दाद अभिभूत एवं कृतज्ञ कर गई मतले के उला में पोस्ट करते वक़्त  गलती  ही  छूट गया था आदरणीय इसको बाद में संकलन में एड करवा लूँगी|

अंतिम शेर में तकाबुल-ए -रदीफैन होना मेरी बहुत बड़ी मजबूरी थी उला में  असमंजसता का भाव लाने हेतु  हुआ न हुआ मुझे अवश्य लाना था  इसके वशीभूत ये रखना पड़ा |

आपका तहे दिल से बहुत- बहुत आभार सादर . 

आदरणीया राजेश दीदी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं

 

बोला दिल हर-दम तुमने ही मुझको अबस बदनाम किया

इजहार-ए-मुहब्बत की खातिर नैनों ने गुपचुप काम किया........... बढ़िया मतला

 

दिल देकर तुझको क्या पाया  खुद का चैन तमाम किया

रात जगी तारे गिन-गिन जब दुनिया ने आराम किया........वाह वाह बढ़िया शेर .

 

भीगे जाने कितने मौसम बिन तेरे इन अश्कों से

रात को रो रो सुबह किया,या दिन को ज्यों त्यों शाम किया........... क्या शानदार गिरह लगाईं है वाह वाह

 

तल्खी झूठे वादों की सब भूल गई मैं इक पल में

सारे शिकवे धो बैठी जब उसने आज सलाम किया......... कितना प्यारा और मासूमियत भरा शेर हुआ है वाह वाह .... बधाई दीदी

 

नींद खुली तो तब ही जानी हमने उसकी मजबूरी... नींद खुली तब ही तो हमने जानी उसकी मजबूरी

उसकी पाक़ मुहब्बत पर क्यूँ ‘राज’ ख्याले-खाम किया............बहुत उम्दा

 

तेरी तहरीरों में अपना सीता नाम हुआ न हुआ

अपने जीवन के बर्खों में हमने तुमको राम किया......... बहुत शानदार

 

इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबुलें दीदी

सादर 

मिथिलेश भैया ,आपकी विस्तृत समीक्षा का ही इन्तजार था आपकी शेर दर देश समीक्षा कलम में नव ऊर्जा का संचार  करती हैं 

लिखना सफल हो जाता है दिल से बहुत- बहुत आभा व्यक्त करती हूँ 

मेरे कहे के अनुमोदन हेतु आभार आ राजेश दीदी 

तल्खी झूठे वादों की सब भूल गई मैं इक पल में
सारे शिकवे धो बैठी जब उसने आज सलाम किया
वाह ! ऐसे उदारमना का ज़वाब नहीं !
उम्दा ग़ज़ल केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारीजी..
 
वैसे, ’अबस’ जैसा शब्द आपकी ग़ज़ल में टाटिया पैबन्द लगता है, जी. और, पेनल्टीमेट शेर को आपने मक्ता की तरह प्रयुक्त किया है. ऐसा क्यों ? या, ऐसा भीहो सकता है ? या, ऐसा अनजाने बस हो गया है ?

वाह ! ऐसे उदारमना का ज़वाब नहीं !---हम उदार मना ही नहीं बहुत मासूम भी हैं आदरणीय :-)))

पेनल्टीमेट शेर को आपने मक्ता की तरह प्रयुक्त किया है. ऐसा क्यों ? ---देखो न अब मासूम होने के कारण हम आपकी ये बात समझे नहीं ...मकते वाला शेर अंतिम होना चाहिए था ये तो गलती हुई है मुआफ़ कीजिये यदि आपका इशारा इसी तरफ है तो .

आपको ग़ज़ल पसंद आयी मेरा लिखना सफल हुआ आदरणीय इस उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभार व्यक्त करती हूँ |

जी आदारणीया राजेश कुमारीजी, मेरा यही कहना है कि अपना नाम या तख़ल्लुस आखिरी शेर में कहने की परिपाटी रही है.
आपके अश’आर वाकई अच्छे होते हैं. और उस ’सलाम’ वाले शेर का तो ज़वाब ही नहीं.
एक बार पुनः बधाई और शुभकामनाएँ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
14 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service