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स्वतंत्र रूप में यह लघुकथा काफ़ी हद तक सफल है. लेकिन इसे धरोहर विषय के साथ जोड़ने का ज़बरदस्ती प्रयास किया गया है. मुझे निम्नलिखित दो पंक्तियों का आशय भी समझ में नही आया,
सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। रचना पटल पर त्वरित उपस्थिति व मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। धरोहरों का ज़िक्र देश की पहचानों व विरासतों के इशारों में किया गया है।
/जयकारे/ से आशय दुनिया में हमारे देश की धरोहरों/विरासतों की प्रशंसा से, गौरव से है। यह शब्द प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
/भंडारे, प्रीति-भोज और मुफ्तखोरी के रोने से आपकी मुराद क्या है?/... यहां रोने से आशय वर्तमान परिस्थितियों में बुरी तरह बाधित होना है वाइरस महामारी नियंत्रण व्यवस्था के मद्देनज़र। पाठक इन्हें आपत्तिजनक अर्थों में यदि लेते हैं, तो बाद में इन शब्दों को बदला जा सकता है। लॉकडाउन की वज़ह से हमारी संस्कृति, हमारे पर्यटन स्थल, हमारे भाईचारे में अप्रत्याशित ब्रेक लगा है, लोग मिस कर रहे हैं सब कुछ... यही बात उभारी गई है दुश्मन वाइरस की व्यंग्यात्मक/कटाक्षपूर्ण शैली में। इस प्रकार मेरे विचार से यह विषयांतर्गत है। कृपया और अधिक मार्गदर्शन प्रदान करें कि हम क्या हटायें या बदलेंं, यदि आवश्यक हो? क्या यह लघुकथा दायरे में नहीं है? मानवेतर लघुकथा नहीं है?
▼ Reply
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, हार्दिक बधाई इस मानवेतर लघुकथा के लिए।
सादर नमस्कार। रचना पटल पर समय देकर मुझे यूं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया भाई सतविंदर राणा साहिब।
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