परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 49 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हिन्दुस्तान के मशहूर शायर जनाब इब्राहिम 'अश्क' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह
"ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे"
22 112 22 112 22 112 22 22
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
22 22 22 22 22 22 22 22
(बह्रे मुतदारिक की मुजाहिफ सूरत)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जुलाई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 26 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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धन्यवाद आ अविनाश जी ..इस विस्तृत टिप्पणी के लिए
हों साथ अगरचे हम और तुम, हर शेर मुकम्मल हो जाए,
तुम मिसरा-ए-ऊला कह देना, हम मिसरा-ए-सानी कह देंगे...........वाह ! बहुत गजब !
आदरणीय निलेश जी सादर, बहुत उम्दा गजल हुई है मतला मक्ता या गिरह का शेर सभी अशआर कमाल है.भरपूर दाद कुबुलें. सादर.
शुक्रिया आ अशोक जी
आदरणीय नीलेश जी
बहुत ही शानदर ग़ज़ल हुई है..
हर शेर पुरअसर है......बस वाह ! वाह! वाह!
हर शेर पर अलग-अलग से विशेष दाद पेश है
क़ुबूल फरमाएं
शुक्रिया आ. डॉ प्राची जी
उम्दा गजल हुई है | विशेषतः -
तुम लाख छुपाना चाहोगे, पर सामने सच आ जाएगा,
बस आँख मिलाकर हम तुम में कितना है पानी कह देंगे.- क्या बात है | क्या आँख मिलाने भर से जान जायंगे सामने वाला कितने पानी में है | वाह ! लाजवाब अस"आर हुआ है | बधाई हो दाद कबूले श्री निलेश shevgaonkar जी | पुच्च्ला भी अच्छा व्यंग है
शुक्रिया आ. लक्ष्मण प्रसाद जी
//हों साथ अगरचे हम और तुम, हर शेर मुकम्मल हो जाए,
तुम मिसरा-ए-ऊला कह देना, हम मिसरा-ए-सानी कह देंगे.//
शुक्रिया आ. गणेश जी बाग़ी सर ..
उस्तादों से उत्साह मिले तो आप की मिहनत और बढ़ जाती है
बढ़िया ग़ज़ल हुई है आ० हरजीत जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है.
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