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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-49

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 49 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हिन्दुस्तान के मशहूर शायर जनाब इब्राहिम 'अश्क' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह

 

"ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे"

22 112 22 112 22 112 22 22

फेलुन  फेलुन  फेलुन  फेलुन  फेलुन  फेलुन  फेलुन  फेलुन

22     22     22       22      22       22      22      22 

(बह्रे मुतदारिक की मुजाहिफ सूरत)

रदीफ़ :- कह देंगे 
काफिया :- आनी (कहानी, निशानी, ज़बानी, पुरानी आदि )
विशेष : जैसा कि तरही मिसरा देखने से ज्ञात होता है, उल्लिखित बहर में 22 को 112 या 211 अथवा 121 करने की  छूट है . 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जुलाई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 26 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 जुलाई दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

धन्यवाद आ अविनाश जी ..इस विस्तृत टिप्पणी के लिए 

हों साथ अगरचे हम और तुम, हर शेर मुकम्मल हो जाए,
तुम मिसरा-ए-ऊला कह देना, हम मिसरा-ए-सानी कह देंगे...........वाह ! बहुत गजब !

आदरणीय निलेश जी सादर, बहुत उम्दा गजल हुई है मतला मक्ता या  गिरह का शेर सभी अशआर कमाल है.भरपूर दाद कुबुलें. सादर.

शुक्रिया आ अशोक जी 

आदरणीय नीलेश जी 

बहुत ही शानदर ग़ज़ल हुई है..

हर शेर पुरअसर है......बस वाह ! वाह! वाह! 

हर शेर पर अलग-अलग  से विशेष दाद पेश है 

क़ुबूल फरमाएं 

शुक्रिया आ. डॉ प्राची जी 

उम्दा गजल हुई है | विशेषतः -

तुम लाख छुपाना चाहोगे, पर सामने सच आ जाएगा, 
बस आँख मिलाकर हम तुम में कितना है पानी कह देंगे.-  क्या बात है | क्या आँख मिलाने भर से जान जायंगे सामने वाला कितने पानी में है | वाह ! लाजवाब अस"आर हुआ है | बधाई हो दाद कबूले श्री निलेश shevgaonkar जी | पुच्च्ला भी अच्छा व्यंग है  

शुक्रिया आ. लक्ष्मण प्रसाद जी 

//हों साथ अगरचे हम और तुम, हर शेर मुकम्मल हो जाए,
तुम मिसरा-ए-ऊला कह देना, हम मिसरा-ए-सानी कह देंगे.//

आय हाय हाय, सभी अशआर एक ओर और यह शेर एक ओर, गज़ब भाई गज़ब, बधाई इस खुबसूरत ख्यालात पर.
प्रस्तुत ग़ज़ल हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय निलेश नूर जी।

शुक्रिया आ. गणेश जी बाग़ी सर ..

 उस्तादों से उत्साह मिले तो आप की मिहनत और बढ़ जाती है 

कुछ दूर हमारे साथ चलो, हर बात पुरानी कह देंगे,
कुछ भी न कहेंगे होंठो से, आँखों की जुबानी कह देंगे … 
 
जो राजे हुनर सीखा तुमसे, वो आज तुम्ही पर खोलेंगे, 
ख़ामोश रहेंगे और तुम्हे हम अपनी कहानी कह देंगे
 
जीवन यूँ तनहा बीता है, कुछ खास नहीं बतलाने को,
जिस शाम तुम्हारा संग मिला, वो शाम सुहानी कह देंगे,
 
हम कहने पर जब आएंगे, कुछ राज नहीं रह पायेगा,
होती है कैसे चाहत में, बरबाद जवानी कह देंगे,
 
इश्क में लुट मिट जाओगे, तुम लाख लहू भी रो लोगे,
दुनिया वाले लेकिन इसको, बस सादा पानी कह देंगे, 
Maulik..... 

बढ़िया ग़ज़ल हुई है आ० हरजीत जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है.

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