आदरणीय साथिओ,
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संदेशात्मक बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय शेख सरजी ।
रचना के मर्म को समझते हुए अनुमोदन और मुझे हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
सजगता
'बजट का किसी को  फायदा हुआ हो या नहीं, हम किसानों की तो नैय्या पार लग गई.'
'सही बात कहत हो बङे भैय्या,दो वक्त की चाय का तो इंतजाम हो गया.'
'और नही तो का.सुबह-शाम की बहू की चिक-चिक भी नहीं सुननी पङेगी.'
'वो सब ठीक हैं, पर इसमें झंझट फसेगा,' तकलीफ भरी लम्बी सांस खीचते हुये बङे भैय्या माथा पकङ लिए.
'जमा रूपया पर दोनों बेटा करेंगे, हाथ कितना लगेगा?'
'जामे का मुश्किल.खेती का हिस्सा बांट कर दो,लगे हाथ उनका भी कुछ भला हो जावेगा.'
'बेटा तो धन्धा करत.....'
'तुम तो लकीर के फकीर बनत हो.बहुओं के नाम तो हो सकत हैं कि नहीं?'
'हाँ....हाँ ....सही कहत हो......'दोनों आपस में गुठियाते हुये अपने-अपने घर की ओर खुशी-खुशी जा रहे थे,रोज-रोज के कलह को मिटाने का रास्ता जो मिल गया था।
मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। गोष्ठी का आग़ाज़ करने और बढ़िया प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
कुछ टंकण-त्रुटियां रह गईं हैं। कहीं-कहीं स्पष्टता कम लग रही है।
सही दिशा निर्देशन के लिए सधन्यबाद, आदरणीय शेख सरजी ।
आदरणीया बबीता जी , बढ़िया प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।
सधन्यबाद, आदरणीया अनीता दी।
इस लघुकथा में आपने कहना क्या चाहा है आ० बबिता गुप्ता जी? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आया.
लघुकथा में थोङा सा पुट व्यंगात्मक, सरकारी योजनाओं पर है।सधन्यबाद आदरणीय योगराज सरजी।
मुह तरमा बबिता साहिबा, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
सधन्यबाद, आदरणीय तासिक सरजी ।
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