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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-43

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 43 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का तरही मिसरा साहिर लुधियानवी की ग़ज़ल से लिया गया है| मिसरे के अंत में "जाउंगा" आया है यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि महिलाओं अर्थात शायराओं को "जाऊंगी" करने की छूट है है| पेश है मिसरा-ए -तरह

 

"ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा/जाऊंगी"

2122 1122 1122 22

फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन

( बहरे रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- जाऊंगा
काफिया :- अल (निकल, बदल, संभल आदि)
नोट: इस बह्र में पहले रुक्न को 2122 की जगह 1122 और अंतिम रुक्न को 22 की जगह 112 करने की छूट जायज़ है|

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जनवरी दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 26 जनवरी दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 जनवरी दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीया वंदना जी ..कमाल की ग़ज़ल . आपकी हर ग़ज़ल की तरह शानदार ..सभी शेर बेहद पसंद आये ..आपको ढेरों बधाई २६ जनवरी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..सादर 

आदरणीय डॉ .आशुतोष जी बहुत बहुत शुक्रिया आपको भी बहुत२ शुभकामनायें 

आदरणीया वन्दना जी अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये|

आदरणीय मंच कृपया निम्नलिखित शेरों को  

****

पुरकशिश है तेरी कोशिश तो मगर बेजा क्यूँ

चाहने भर से तेरे रंग में ढल जाऊँगी

आग के दरिया भी गुजरे हैं मुझे छूकर पर

मैं नहीं मोम की गुडिया जो यूँ गल जाऊँगी

**

इस प्रकार परिवर्तित कर दीजिये 

पुरकशिश है तेरी कोशिश तो मगर बेजा ही  

क्यूँ तेरे तयशुदा साँचे में मैं ढल जाऊँगी 

तथा -

आग के दरिया भी गुजरे हैं मुझे छूकर पर
मैं नहीं मोम की गुडिया जो पिघल जाऊँगी 

सादर निवेदित 

प्रिय वन्दना जी शानदार ग़ज़ल कही है सभी अशआर पसंद आये बहुत खूब मेरी दिली दाद कबूलें. 

रेत से हेत मेरा मैं तो सँभल जाऊँगी

तपते सहरा से भी बेख़ौफ़ निकल जाऊँगी ............वाह !

ग़ज़ल –

तुझको ऐ ज़िन्दगी इक रोज़ मैं छल जाऊँगा |
मौत का हाथ पकड़ लूँगा निकल जाऊँगा|

सख्त हालात ने पत्थर सा बनाया है मुझे,
प्यार का जज़्बा दिखाओ तो पिघल जाऊँगा |

सोने चाँदी के हजारों से न सींचो मुझको ,
मैं ग़रीबों की दुआओं से ही पल जाऊँगा |

बंद मुट्ठी का ये भ्रम आप बनाए रक्खो
और कुछ रोज़ उम्मीदों से बहल जाऊँगा |

लुत्फ़े आगाज़े सफ़र में हूँ तू आगाह न कर ,
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊँगा|

मुझसे टकरा के लहर ने जो कहा है सागर ,
मैं अगर तुझको बता दूँ तो बदल जाऊँगा |

लानतें भेजने वालों से मुझे कहना है,
है दुआ माँ की मेरे साथ मैं पल जाऊँगा|

शह्र की रोशनी आँखों में चुभा करती है,
जेह्न से गाँव मिटा दूँ तो मैं जल जाऊँगा |

बदले बदले हैं मेरे गाँव के रस्ते लेकिन ,
थाम यादों की वो पगडंडियाँ चल जाऊँगा |

बस इसी सोच में महबूब को देखा ही नहीं ,
गौर से देख लूँ उनको तो मचल जाऊँगा |

मत सुना चाँद सितारों की कहानी मुझको ,
कोई बच्चा तो नहीं हूँ जो बहल जाऊँगा |

* मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरनीय अभुनव भाई , लाजवाब ग़ज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

तुझको ऐ ज़िन्दगी इक रोज़ मैं छल जाऊँगा |
मौत का हाथ पकड़ लूँगा निकल जाऊँगा|

बदले बदले हैं मेरे गाँव के रस्ते लेकिन ,
थाम यादों की वो पगडंडियाँ चल जाऊँगा |  बहुत खूब भाई अविनव , बहुत बहुत बधाई ॥

वाह वाह हर शेर जिंदाबाद 

बदले बदले हैं मेरे गाँव के रस्ते लेकिन ,
थाम यादों की वो पगडंडियाँ चल जाऊँगा |..ek alag sa...abhinaw!

sunder gazal 

वाह, वाह!! हर शेर शानदार! तारीफ को शब्द ही नहीं। बहुत बहुत बधाई आपको

आदरणीय अभिनव अरुण भाई जी वाह वाह वाह एक एक अशआर मोती की मानिंद बने हुए है मतले तो ने बस लूट लिया बेहतरीन शानदार धारदार हासिले ग़ज़ल सभी अशआरों पर ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं. वाह

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