आदरणीय साथिओ,
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विषयानुरूप बहुत ही अच्छी और प्रेरणादायक कथा पर बहुत बहुत बधाई आ० ओम प्रकाश जी.
बहुत ही अच्छा सन्देश देती हुई रचना के सृजन हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी सर| मेरे अनुसार रचना में में "रिश्तेदार" कहने की आवश्यकता नहीं महसूस हो रही और //मनचले का हाथ अपने गाल पर चला गया// इसके बाद की पंक्तियाँ ना भीन तो भी रचना का प्रभाव उतना ही रह रहा है| सादर विचारार्थ,
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी।बेहतरीन लघुकथा।
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, आपने प्रदत्त विषय पर एक बहुत अच्छी लघुकथा लिखी है| कथा में सामाजिक सन्देश भी है| लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण देकर उन्हें सशक्त बनाने के प्रयास को महल्ले वाले गलत समझ लिए| ऐसा सचमुच हो रहा है| सार्थक लघुकथा के लिए साधुवाद|
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नई बहू के बनाए भजियों के स्वाद की संतुष्टि , रिजवी साहब के दाढ़ी के आंखिरी बाल तक तिर आई थी I
“सकीना बिटिया को भेजो भई, नेग तो बनता है I और एक कप चाय और पिलवा दो I’’ दोनों पैर टेबल पर रख ,सर सोफे पर पीछे टिका दिया उन्होंने I
“ये क्या किया आपने ! सारा तेल पेपर पर लसेड़ दिया I” पत्नी पीछे खड़ी थी I
“भजियों का ज्यादा तेल पेपर में दबा कर थोड़ा कम कर लिया, और क्या I हम तो पढ़ चुके हैं सुबह ही दोनों पेपर I तुम्हें पढना था क्या ?” मुस्कुराते हुए कह तो गए रिज़वी साहब, पर पत्नी के चेहरे के बदले भाव देख सकपका गए I
“ हम भी पढेंगे ज़रूर , पर फिलहाल सकीना बिटिया के लिए कह रहे हैं I घर का काम निबटा कर वो रोज़ पेपर पढ़ती है I” पत्नी के भावों का अनुमोदन, टेबल पर रखे उर्दू के अखबार ने भी कर दिया फड़फड़ा कर I
“ओहो..अच्छा !” सोफे पर अब संभल कर बैठ गए रिज़वी साहब I पल भर चुप्पी के बाद, पत्नी से आँखें चुराते हुए पैरों से सोफे के नीचे रखी चप्पलें टटोलने लगे I
“ कहाँ जा रहे हैं ?”
“सामने चाय की गुमटी में भी आता है हिंदी का पेपर I फुरसतिये दिन भर चाटते रहते हैं I अभी ले आता हूँ I”
‘’ अब्बू , चाय चढ़ा दी है I” पर्दे के पीछे हलचल हुई I
“ पहले तुम्हारा पेपर ले आऊँ , फिर आकर पीता हूँ चाय I बस ये गया और आया I” उठते हुए उनकी नज़र पेपर की सलवटों में छिपे एकमात्र भजिये पर पड़ गई I उसे उठाकर पास खड़ी पत्नी के मुहँ में ढूंस दिया उन्होंनेI
शुक्रिया में लिपटी एक कोमल मुस्कान पर्दे के पीछे से निकल कर कमरे में तैर गई I
मौलिक व् अप्रकाशित
हाँ...दाढ़ी का आखिरी बाल कौनसा होता है यह मैं भी जानना चाहूँगा..हा हा हा// ये सिर्फ संतुष्टि दर्शाने के लिए अतिश्योक्ति वाले भाव हैं , रचना पसंद कर उत्साहवर्धन करती टिपण्णी के लिए हार्दिक आभार सुनील जी
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