आदरणीय साथिओ,
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बहुत सुंदर रचना विषय पर, एक चलचित्र जैसा सब आँखों के सामने घूम गया| पंच लाइन बढ़िया है, बधाई आपको
मुहतरम जनाब विनय कुमार साहिब, लघुकथा में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया -
मुहतरम जनाब सतविंदर कुमार साहिब, लघुकथा में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया -
बहुत अच्छी लघुकथा है आ० तस्दीक अहमद खान जी, लेकिन रचना में नाटकीयता कुछ ज्यादा ही हो गई हैI बहरहाल, इस सद्प्रयास हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारेंI
मुहतरम जनाब योगराज साहिब, लघुकथा में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया -
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , लघुकथा में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया -
'' दो घंटे बाद अचानक '' सही है ---सादर
आसमान पर रात का मुसाफिर चाँद ज़मीन पर अंधेरी राहों के मुसाफिरों के कारनामों को हैरत से देख कर मन ही मन मुस्करा रहा था -------
.आ० तस्दीक भाई इस काव्यमय पंक्ति का क्या आशय है . लुटेरे का कारनामा सफल नहीं हुआ , कारनामा कंडक्टर और ड्राइवर का सफल हुआ पर ये तो अंधेरी रात के मुसाफिर नहीं थे तो चाँद आखिर किस पर मुस्कराया .
मुहतरम जनाब गोपाल नारायण साहिब , कंडक्टर , ड्राइवर , लुटेरा , बस के यात्री , यह सब रात में सफर
कर रहे थे , यह अँधेरी रात के मुसाफिर नहीं थे तो क्या दिन के थे? --आप ही बताइए
अच्छी रचना हुई है आदरणीय तस्दीक साहब | बधाई स्वीकारें |
मुहतरमा कल्पना साहिबा , लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
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