For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा स्वर्गीय ज़हीर कुर्रेशी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है।
तरही मिसरा है:
‘’लोग अपनी सोच का विस्तार भी करते रहे।‘’
बह्र है फ़ायलातुन् फ़ायलातुन् फ़ायलातुन् फ़ायलुन् अर्थात्

2122 2122 2122 212
रदीफ़ है ‘’भी करते रहे’’ और
क़ाफ़िया है ‘’आर’’
क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं स्वीकार, लाचार, अंधियार, बौछार, वार, आदि....
उदाहरण के रूप में, ज़हीर साहब की मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।
ज़हीर साहब की मूल ग़ज़ल यह है:
‘’स्वप्न देखे, स्वप्न को साकार भी करते रहे
लोग सपनों से निरंतर प्यार भी करते रहे!
उसने जैसे ही छुआ तो देह की वीणा के तार,
सिहरनों के रूप में झंकार भी करते रहे।
अम्न के मुद्दे पे हर भाषण में ‘फोकस’ भी किया
किंतु, पैने युद्ध के हथियार भी करते रहे!
मैंने देखा है कि गांवों से शहर आने के बाद
लोग अपनी सोच का विस्तार भी करते रहे।
जिंदगी भर याद रखते हैं जिन्हें मालिक-मकान
काम कुछ ऐसे किराएदार भी करते रहे।
दांत खाने के अलग थे और दिखाने के अलग
लोग हाथी की तरह व्यवहार भी करते रहे!’’

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 24 मई दिन शनिवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मई दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 मई दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

तिलक राज कपूर

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Facebook

Views: 1982

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

ग़़ज़ल पर संभावित प्रश्नों को विचार में लेते हुए मेरे विचार प्रस्तुत हैं। 

खुद ही अपनी ज़िन्दगी दुश्वार भी करते रहे

दोस्तों से गैर सा व्यवहार भी करते रहे। 

मत्ले के शेर की दृष्टि से इस तरही की रदीफ़ बहुत कठिन है। कारण यह है दोनों पंक्तियों में परस्पर संबंध भी होना आवश्यक है और 'भी' के साथ 'करते रहे' की रदीफ़ का निर्वाह भी। आपने मत्ले के शेर में इसे जिस रूप में लिया है उसे दोनों पंक्तियों में अपराध-बोध  की स्वीकृति माना जा सकता है। 

धर्म-संकट से बचाना था उन्हें तो यूँ किया 

हम तड़पते भी रहे इन्कार भी करते रहे। इस शेर में 'भी' का निर्वाह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 

बह्स में रिश्ते बिगाड़े सो बिगाड़े तुम मगर (इक निर्रथक सी बहस संबंध सारे ले गयी)

खुद को ज़ह्नी तौर पर बीमार भी करते रहे (और अपनी सोच हम बीमार भी करते रहे)

इस शेर में बहस को बह्स लिखने पर प्रश्न उठाये जा सकते हैं अत: 'बहस' को प्रचलित रूप में रखने के लिये उसका स्थान परिवर्तन आवश्यक है। 

 

लोग तो लड़ते रहे इक दूसरे से आए दिन (चालबाजी में फ़ँसे दिन रात के इक युद्ध में)

और लड़ाने वालों का उद्धार भी करते रहे (चालबाजों का सदा उद्धार भी करते रहे)

 

गर्म था अफवाह का बाज़ार और कुछ नासमझ (गर्म था बाज़ार जब अफवाह का, कुछ नासमझ)

डीलरों के झूठ का विस्तार भी करते रहे (झूठ के व्यापार का विस्तार भी करते रहे)

 

उम्र की चादर में अनुभव के सितारे टांककर 

"लोग अपनी सोच का विस्तार भी करते रहे"। शानदार गिरह हुई। 

ग़़ज़ल अपने आप में परिपूर्ण थी, फिर भी कुछ सुझाव इस उदाहरण की दृष्टि से प्रस्तुत किये हैं कि शेर में मंजाई की संभावना बनी ही रहती है। 

आदरणीय तिलकराज जी,

मंच पर वाद-विवाद या अन्यथा बकवाद से परे एक दूसरे के कहे पर होती सार्थक चर्चा ही ’सीखने-सिखाने’ की प्रक्रिया को आधार देती है. यह पारस्परिक व्यवहार वर्षों से कहीं पीछे छूट गया था. आपने इस मंच पर उस सार्थक व्यवहार को पुनर्जीवित किया है 

गजल के अश’आर के कहन के दृष्टिकोण पर नए-नए विन्यास प्रस्तुत करना किसी तार्किक अभ्यासी के लिए नए आयामों से परिचित कराने के बराबर है. अब जो रचनाकार कहन और प्रस्तुतीकरण के लिहाज से नियत हो चुके हैं, उनको इस व्यवहार से बहुत लाभ तो नहीं होगा. लेकिन जो रचनाकार अपने शब्द, अपनी भाषा और अपने कहन को शाब्दिक करने के क्रम में उनके विभिन्न विन्यासों की नई-नई बुनावट देखना, समझना चाहते हैं, उनके लिए ओबीओ का मंच पाठशाला ही है. 

शिज्जू भाई की इस सुगढ़ प्रस्तुति पर आपने जिस आत्मीयता से नए-नए कथ्य-विन्यास प्रस्तुत किये हैं, वह इस विधा को लेकर आपकी प्रौढ़ समझ हमारे समक्ष ला रहा है. आपके प्रयासों, सुझावों और गजल समझने के विवेक का यह मंच सादर स्वागत करता है. 

जय-जय 

आदरणीय सौरभ भाई,

ग़ज़ल पर चर्चा होती हैं तो सामान्यत: अरूज़ के दोष तक सीमित रह जाती हैं। मेरा मानना है कि वाक्य-रचना के जो  नियम गद्य पर लागू होते हैं वही पद्य में भी यथावत् लागू होते हैं।  उनका पालन न होने पर वाक्य भिन्न अर्थ भी ले सकते हैं और प्रवाह तो सामान्यत: प्रभावित होता ही है।  ग़ज़ल का मूल संगीत में होने के कारण प्रवाह विशेष रूप से महत्वपूर्ण हाे जाता है। बहुत से शेर सामान्य रूप से स्वीकार्य होते हुए भी आज मेरे विचार निस्संकोच इसी सोच से रखे गये हैं। इसे समझते हुए उन विचारों को सभी के द्वारा सहजता से लिया गया, यह सभी के सम्माननीय व्यक्तित्व का परिचायक है। 

आपने इस उद्देश्य के निहितार्थ को स्पष्ट किया इसके लिये धन्यवाद। 

यही तो रचनाधर्मिता है. न कि मात्र रचनाकर्म. 

आपके कहे का स्वागत है.

शुभातिशुभ

आदरणीय तिलकराज कपूर सर,

ग़ज़ल आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया, वाकई ग़ज़ल में सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। जितना मांजा जाए उतना ही निखरकर आती है। यहाँ मैंने बहस को उर्दू के मूल स्वरूप में लिया है। आपका सुझाव भी बहुत अच्छा है, लेकिन मैं अब इसका स्वरूप बदलकर इस्तेमाल करूँ तो शायद उचित नहीं होगा।

सादर

आदरणीय शकूर जी नमस्कार 

बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए 

गिरह ज़बर्दस्त है 

गुणीजनों की टिप्पणियों से भी सीखने को मिलता है हमें 

सादर 

आदरणीया ऋचा जी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया

आदरणीय शिज्जू भाई बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाई , गिरह का शेर अच्छा लगा , आपको बधाई 

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय दयाराम जी, ग़ज़ल को वक्त देने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया

आ. भाई शिज्जू जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"उस दफ़्तर में ये अविनाश है कौन? यह संकेत स्पष्ट नहीं हो सका। चपरासी है या बाबू? स्नेहा तो…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"डिलेवरी बॉय  मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
10 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service