For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-163

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 163 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा 'जान एलिया' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

"मैंने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया"
मुफ़तइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़तइलुन मुफ़ाइलुन
2112 1212 2112 1212

बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन मतव्वी मख़्बून
नोट:-इस बह्र के दूसरे और चौथे रुक्न में एक साकिन(यानी अतिरिक्त लघु) लेने की इजाज़त है ।

रदीफ़ --नहीं किया

काफिया :-अलिफ़ का (आ स्वर) वफ़ा,गिला,क्या,कहा,जुदा आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 26 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 जनवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 1324

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब आज़ी तमाम साहिब किन्हीं कारणों से आपकी प्रस्तुति पर दोबारा हाज़िर नहीं हो सका हूँ, बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें।

तू ने हमारे वास्ते कार ए वफ़ा नहीं किया

हम ने भी तेरे इश्क़ में ख़ुद को फ़ना नहीं किया

वो जो ग़रीब मर गया उसके मरज़ के वास्ते

चारगरी गिराँ थी सो कोई ख़ुदा नहीं किया

तू भी मरीज़ ए इश्क़ था मैं भी मरीज़ ए इश्क़ हूँ

अपने मरज़ के वास्ते तू ने भी क्या नहीं किया

चारागर और भी थे पर दिल को तेरी तलाश थी

दिल ने किसी पे ए'तिबार तेरे सिवा नहीं किया

अपने सिवाए मेरी जाँ अपने ख़राब-हाल में

सच है किसी भी शख़्स का मैं ने बुरा नहीं किया

जब्र हो या की दर्द ओ ग़म चाह ए नजात ठीक है

चाह ए नजात ने मगर किसको ख़फ़ा नहीं किया

तुमने तो दोस्ती में भी हमको दग़ा दी जान ए जाँ

हमने तो दुश्मनी में भी तर्क ए वफ़ा नहीं किया

सारे अमीर बच गए अपने रुसूख़ से मगर

यार ए गरीब को किसी जज ने रिहा नहीं किया

जीने का इंतज़ाम था तेरा नशा मिरे लिए

तेरे नशे के बाद फिर कोई नशा नहीं किया

मरने के बाद भी ये दिल तेरे नशे में चूर था

तेरा नशे में ज़िक्र तक पर ब-ख़ुदा नहीं किया

हो के तबाह आ गयी हमको 'तमाम' शाइरी

हमने सुख़न के वास्ते वैसे तो क्या नहीं किया

गिरह-

तू ने भी एक इक नफ़स ले के उधर खर्च की

"मैं ने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया"

ग़ज़ल

——-

कड़वी लगी बहुत मुझे, किंतु गिला नहीं किया

मेरे भले की बात थी, सुन के हवा नहीं किया

इश्क़ में चोट खा के भी, गीत ख़ुशी के ही बुने

दर्द भरे तरानों को, मैंने दवा नहीं किया

इतना तो सेठ ने दिया, भूखा मरे न कामगार

उसकी चपातियों को पर, मालपुआ नहीं किया

आ के शराबख़ाने में, भूला जफ़ा को उसकी मैं

कैसे संभल रहा है वो, जिसने नशा नहीं किया

उसने बुरा किया न कुछ, पर ये बुरा लगा मुझे

लफ़्ज़ों को मेरे हक़ में क्यों, उसने दुआ नहीं किया

कमियाँ बस उस को ही दिखें औरों की बात बात में

जिसने कि आईने के रू ख़ुद को खड़ा नहीं किया

जाने न किसके बारे में, ऐसा कहा था ‘जॉन’ ने

”मैंने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया”

उसका कहा सदा किया, कर न सका बस एक बार

एक समान हो गया, सारा किया नहीं किया

#मौलिक व अप्रकाशित

आ. अजय जी 
.
अच्छी ग़ज़ल हुई है..

इतना तो सेठ ने दिया, भूखा मरे न कामगार..... भूखा में मात्रा गिराकर सार्थक शब्द भूख बन रहा है .. भूख मरे हो रहा है. देखिएगा.

उसकी चपातियों को पर, मालपुआ नहीं किया... किसने?? कर्ता अस्पष्ट है.. बारीक़ बात है लेकिन आप का ध्यानाकर्षण आवश्यक लगा 
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

जी आ ग़ज़ल अच्छी हुई बधाई स्वीकार करें

बाकि गुणीजनों की रॉय काबिल ए गौर है

दवा शब्द तो स्त्रीलिंग है क्या क़ाफ़िया में रख सकते हैं इसे? 

दर्द भरे तरानों को मैंने दवा नहीं किया

ग़ज़ल पर आने और उपयोगी विश्लेषण के लिए आभार नीलेश जी। भूखा को भूख पढ़ने वाला क्या नियम है। मात्रा गिराने के नियमों को देखता हूँ  एक बार। यदि अन्य जानकार भी मार्गदर्शन करें तो आभारी रहूँगा।

//उसकी चपातियों को पर, मालपुआ नहीं किया... किसने?? कर्ता अस्पष्ट है।          ये तो स्पष्ट है। सेठ ने इतना तो दिया कि रोटी मिले। पर इतना नहीं कि रोटी की जगह मालपुआ खा ले। यानि कम मज़दूरी

आ. अजय जी

मात्रा पतन में और अलिफ वस्ल में ऐसी मान्यता है कि यदि मात्रा गिरा कर कोई सार्थक शब्द बन रहा हो तो उससे बचना चाहिए।

बात रोटी को मालपुआ करने की प्रतीत हो रही है। शेर कहन में पूरा खुला हुआ हो तो उतना बेहतर बनता है।

आदरणीय नीलेश जी, आप बता रहें हैं तो नियम तो ये होगा। पर सख़्ती से पालन होते हुए कभी देखा नहीं और न आज से पहले किसी ने इस बात का ज़िक्र किया।

आना, जाना, लगाना ऐसे शब्द है जिन्हें शायद हर शायर ने बहुत बार मात्रा गिरा कर प्रयोग किया होगा जबकि इनका रूप आन, जान और लगान अपने आप में पूर्ण शब्द है।

तो इस पर और जानकारी मिलने तक मैं प्रतीक्षा करूँगा। आपने इतने महत्वपूर्ण बिंदु को सामने रखा उसके लिए आभार

आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी आदाब

ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें।

कड़वी लगी बहुत मुझे, फिर भी गिला नहीं किया

मेरे भले की बात थी, सुन के हवा नहीं किया

आ के शराबख़ाने में, भूला जफ़ा को उसकी मैं

कैसे सँभल रहा है वो, जिसने नशा नहीं किया

सानी अच्छा है इसके लिए बिहतर उला सोचें 

उसका कहा सदा किया, कर न सका बस एक बार

एक समान हो गया, सारा किया नहीं किया

भाव अच्छा है कि एक बार काम नहीं करो तो पिछले किए गए 

सभी कार्य शून्य हो जाते हैं। इस भाव को और बिहतर तरीक़े से 

कहने का प्रयास करें   #शुभकामनाएँ

उपयोगी इसलाह के लिए आभार अमित भाई। आपके सभी सुझाव अनुकरणीय हैं।

बहुत धन्यवाद

आदरणीय अजय जी नमस्कार

ख़ूब ग़ज़ल हुई है अच्छे अश'आर हुए बधाई स्वीकार कीजिये

गुणीजनों की टिप्पणियाँ हमेशा ज्ञानवर्धक होती हैं हम सभी को इनसे सीखने को मिलता है आभार सभी का

सादर

आदरणीय अजय जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, शेष गुणीजन कह ही चुके हैं। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - उस के नाम पे धोखे खाते रहते हो
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
4 hours ago
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
14 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"  कृपया  दूसरे बंद की अंतिम पंक्ति 'रहे एडियाँ घीस' को "करें जाप…"
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"पनघट छूटा गांव का, नौंक- झौंक उल्लास।पनिहारिन गाली मधुर, होली भांग झकास।। (7).....ग्राम्य जीवन की…"
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"    गीत   छत पर खेती हो रही खेतों में हैं घर   धनवर्षा से गाँव के, सूख गये…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-166
"गांव शहर और ज़िन्दगीः दोहे धीमे-धीमे चल रही, ज़िन्दगी अभी गांव। सुबह रही थी खेत में, शाम चली है…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...
"आदाब, उस्ताद-ए-मुहतरम, आपका ये ख़िराज-ए-तहसीन क़ुबूल फ़रमा लेना मेरे लिए बाइस-ए-शरफ़ और मसर्रत है,…"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service