आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीया जानकी वाही जी, अद्भुत ! ऐसे सार्थक प्रयासों से आयोजनों की गरिमा और महत्ता दोनों बढ़ती है. बहुत ही सार्थक प्रयास हुआ है जो आपकी लेखिनी गंभीरता का स्वयं बखान है. इंगितों को जिस कमाल से आपने साधने का प्रयास किया है वह मुग्ध कर रहा है. आपकी प्रस्तुति पर हृदय से बधाइयाँ.
जानकी जी आपने इस बार प्रतिकात्मक रचना लिख कर मुझे २-३ बार पढने को मजबूर कर दिया.रचना वास्तव मे सार्थक बनी है."खासकर एक अरब की भीड़ का चरित्र, सबका साया।जो देखता सुनता सब है पर गूँगा है।" हम सभी सायस बस यही करते रहते है.रचनाकार को वस्तव मे इस विसंगति को निकाल सबके सामने परोसना ही सार्थक रचना कर्म है. बधाई आपको इस प्रयास के लिये
देश को खोखला करती कितनी भी घटनाएँ घटे हम मूक दर्शक ही रहते हैं अंतरात्मा जगाना चाहती है किन्तु किमकर्तव्यविमूढ़ बना रहता है लघु कथा के माध्यम से सही नसीहत डी है ऐसे लोगों को .बहुत बहुत बधाई जानकी वाही जी
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गजब की रचना का सृजन हुआ है आदरणीया जानकी जी, सच है कई बार ज्ञान भूखा ही आँखें बंद कर देता है| सादर बधाई आपको इस बहुत अच्छे सृजन के लिये|