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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-124

विषय - "प्रेम बिना जग सूना"

आयोजन अवधि- 13 फरवरी 2021, दिन शनिवार से 14 फरवरी 2021, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 13 फरवरी 2021, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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           ग़ज़ल

है प्रेम गर दवा भली वो अच्छी तनहाई भी

दुआ खुदा या तेरी आशिक़ी भी तनहाई भी

की मसहलत वो जिन्दगी सचाई तनहाई भी

जिए हैं दिल से जिन्दगी कमाई तनहाई भी

तराशे जो भी बुत कभी मैंने रुलाया ही

मगर ये तय रहा मज़ा रिहाई तनहाई भी

हुआ करे कोई राजा हमें मज़ा वो जीस्त थी  

रुहानी इश्क़ हो गया कहानी तनहाई भी 

बड़ा ये रास्ता सच्चा नहीं कोई बेगाना

है राबता ये दिल से दिलका राही तनहाई भी

लगी वो दिल बुझाते थे मरे हैं गर जिए तो

रहा वो खूब जलवा अपना साथी तनहाई भी

वो खेल जिन्दगी 'चेतन' रुलाए भी हमको

बिना मुहब्बत वो लेकिन चुभी सी तनहाई भी

मौलिक एवम् अप्रकाशित

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय भाई, लक्ष्मण सिंह मुसाफ़िर, नमस्कार, ग़ज़ल को आपकी अनुशंसा प्राप्त हुई, प्रोत्साहन मिला ! साधुवाद स्वीकार करें , इति !

आदरणीय प्रदत्त विषय पर अच्छा प्रयास है।बधाई स्वीकार करें। आदरणीय,मतले के ऊला में वो की बजाय तो अधिक अच्छा लग रहा है। हुस्न-ए-मतला में आई की बंदिश हो गई है। सादर

प्रेम समझदार हो गया है

अतुकान्त कविता

प्रेम

यूँ ही पा लिया था

नन्हे,मासूम,खिलखिलाते, बचपन में

जहाँ अपने,पराये,जात,धर्म

था सबमें एक समान

बेलौस हँसी लिए

धीरे धीरे,बढ़ने लगा प्रेम

खेलने लगा प्रकृति, साथियों संग

पढ़ने लगा किताबें

पहुंच गया यौवन की दहलीज

समझने प्रेम हार,प्रेम पाश में अंतर

संगीतमय प्रेम

दबने लगा रिश्तों के बोझ तले

बस...बदल लिए 

समर्पण, अभिव्यक्ति के मायने

हो गया गिरगिट सा

बन गया शोर

हो गया मुखर,स्वार्थी

अपना ली भोग्य संस्कृति

कल का भोला प्रेम 

आज सियासी, मौसमी

समझदार हो गया

हाँ..आज प्रेम बदल गया है

बहुत प्रेक्टिकल हो गया है

***

मौलिक व अप्रकाशित

आ. रचना बहन, सादर अभिवादन । प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर' भाई नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए आभार।

!! प्रेम बिना जग सूना सूना !! 

प्रेम बिना जग सूना सूना

कह गये संत फकीर

ओ यारा, प्रेम है रांझा हीर

ओ यारा, प्रेम है रांझा हीर 

ओ यारा, प्रेम है रांझा हीर

देखे न राजा रंक न देखे

तोड़े सब जंजीर

ओ यारा.... 

गालिब हो या मोमिन हो या

बुल्ले शाह या मीर

ओ यारा .... 

प्रेम ने विष को अमृत कीन्हा

कीन्हा मन ततहीर

ओ यारा..... 

प्रेम ही पूजा मंदिर मस्ज़िद

कह गये दास कबीर

ओ यारा..... 

प्रेम है गंगा जमुना संगम

प्रेम है ज़मज़म नीर

ओ यारा..... 

प्रेम ही मरहम है सांसों का

प्रेम है बहता समीर

ओ यारा..... 

जोड़े दिलों को तोड़ दे सरहद

पिघला दे शमशीर

ओ यारा......

प्रेम मिटा दे दिलों से नफ़रत

प्रेम सिखा दे धीर

ओ यारा...... 

प्रेम दिवाना प्रेम ही मांगे

मांगे ना जागीर

ओ यारा...... 

प्रेम से देखा जिसने जग को

बदल ही दी तस्वीर

ओ यारा.......

प्रेम की बाजी जीते अनाड़ी

हार गये हैं वज़ीर

ओ यारा........ 

प्रेम है राधा प्रेम है मोहन

प्रेम है रंग अबीर

ओ यारा........

बात भी यूँ तो कोई नहीं है

बात भी है गंभीर

ओ यारा......

(मौलिक व अप्रकाशित) 

✍  आज़ी तमाम......... 

आ. भाई आज़ी तमाम जी, प्रदत्त विषय को उकेरने का सार्थक प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई ।

सादर प्रणाम मुसाफिर सर

दिल से शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए

धन्यवाद

आदरणीय आज़ी तमाम जी प्रदत्त विषय पर अच्छा गीत लिखा। बधाई स्वीकार करें।

बेहद ही शुक्रगुज़ार है दिल

इस हौसला अफ़ज़ाई का

शुक्रिया रचना जी

सादर प्रणाम आपको

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