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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-117

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-117 

विषय - "रोटी"

आयोजन अवधि- 11 जुलाई 2020, दिन शनिवार से 12 जुलाई 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 जुलाई 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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ई. गणेश जी बाग़ी 
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हार्दिक आभार आदरणीय सतविंद्र जी।

आदरणीय नीलम दीक्षित जी, बहुत सुंदर दोहा सृजन के लिए बधाई।

प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय मैठाणी जी।

हाइकू
सघन पीर
दस जन खाते हैं
एक कमाता

सेदोका
चिथड़े जूते
थिगड़े कपड़ों में
तप्त दोपहरी में
भूख मिटाने
फाबड़ा तसला ले
चल पड़ा अकेले

तांका
बोझिल मन
दर्द पलायन का
निहत्था हुआ
हताशा संग लिए
विपदा से जूझता

चोका
वक्त के आगे
निर्बल बन गया
डर निराशा
घर करती जाती
मजबूरी हैं
गांव लौट जाने की
फटेहाल वो
बोझ लादे सर पे
विपदाओं का
सामना करता वो
थके मन से
आगे बढ़ता जाता
बेबश हैं वो
भूख कैसे मिटाये
चूल्हा जलाने
काम कहां से पांए
आस बांधती
उम्मीद को जगाती
अंधियारा छटेगां।

मौलिक व अप्रकाशित हैं 

आ. बबीता बहन । प्रदत्त विषय पर उत्तम हाइकू हुए है। हार्दिक बधाई ।

अच्छे छन्द कहे आदरण्या बबिता गुप्ता जी, हार्दिक बधाई

दूसरी प्रस्तुति(गजल)


१२२२/१२२२/१२२२/१२२२


रही उम्मीद में  जिन के  बसी  दो जून की रोटी
अभी तक उनसे करती है ठगी दो जून की रोटी।१।
**
सुना गठरी में बँध आये कहीं पर रेल से कट के
नगर आये कमाने  जो  कभी  दो जून की रोटी।२।
**
बनाया नित्य धनिकों ने उसे चरणों की दासी पर
रही निर्धन के  सपनों  में  बसी दो जून की रोटी।३।
**
सजन अन्धेर नगरी में टके की बात बे-मतलब
बड़ा मुश्किल जुटाना है अभी दो जून की रोटी।४।
**
वनों में जा नहीं सकते नहीं है गैस को धन भी
पकेगी किस तरह सोचो अभी दो जून की रोटी।५।
**
किसी का मान लुटता है कोई अभिमान करता है
जगत में  जान  से  महँगी  रही  दो जून की रोटी।६।
**
मिली जिन को नहीं  रोटी  हुए वो भूख से दुहरे 
रहे खुश वो जिन्हें मिलती रही दो जून की रोटी।७।
**
बनाते ज्वार मक्के  जौ  चने  गेहूँ की रोटी सब
बनी राणा को लेकिन घास भी दो जून की रोटी।८।
**
कोई कूड़े में  खोजे  है  बुझाने  पेट  की ज्वाला
किसी ने कह के बासी फेंक दी दो जून की रोटी।९।
**
धनी हो चोर या  निर्धन  सभी  की  कामना में ये
बताओ किस को लगती है बुरी दो जून की रोटी।।

मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय धामी जी उम्दा अशआर कहे हैं, दिली मुबारकबाद

आ. भाई सतविन्द्र जी, गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

अति सुंदर एवं मार्मिक गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।

आ. भाई दयाराम जी, गजल पर उपस्थिति व प्रशंसा के लिए सादर आभार।

रोटी
राम के नाम पे
माँगी हुई रोटी
भोले भालों से
चुराई हुई रोटी

लाठी के ज़ोर पे
छीनी हुई रोटी
मीठी है खुद की
कमाई हुई रोटी ।

गरम गरम
सेंकी हुई रोटी
अच्छी भली
फेकी हुई रोटी
प्यारी है
रात की
बचाई हुई रोटी।

महलों मे मख्खन
लगाई हुई रोटी
होटल की प्लेट में
सजाई हुई रोटी
अच्छी है
माई के हाथ की
बनाई हुई रोटी ।

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