For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-103 सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

आदरणीय सदस्यगण 103वें तरही मुशायरे का संकलन प्रस्तुत है| बेबहर शेर कटे हुए हैं, और जिन मिसरों में कोई न कोई ऐब है वह इटैलिक हैं|

______________________________________________________________________________

ASHFAQ ALI 


जब दर्दे दिल दिया है दवाएँ मुझे न दो।
अब और ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो।।

लह्ज़ा भी जम न जाए कहीं बर्फ की तरह।
दामन से इतनी सर्द हवाएँ मुझे न दो।।

इक बार हो गया चलो दो बार हो गया।
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"।।

नेताजी अब तो बख्श दो भगवान के लिए।
गुरबत है इतनी खेत में गाएँ मुझे न दो।।

तन ढ़कने को दो चादरें मिल जायें ऐ खुदा।
मन रखने को शफ़्फ़ाफ़ क़बाएँ मुझे न दो।।

जा तो रहे हो छोड़ कर तन्हा मगर ऐ दोस्त।
तकलीफ़ दिल को दें वो सजाएँ मुझे न दो।।

लिखता रहूँ ग़ज़ल मैं सलीक़े से ऐ खुदा।
पढ़ने को गैरों जैसी अदाएँ मुझे न दो।।

''गुलशन''में हर तरफ हों मुहब्बत की बारिशें।
नफ़रत की काली काली घटाएँ मुझे न दो।।

______________________________________________________________________________

Mahendra Kumar 


साँसों की गर्म गर्म हवाएँ मुझे न दो
मैं दूर जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो

मैं जानता हूँ आसमाँ में कुछ नहीं रखा
ले कर ख़ुदा का नाम दुआएँ मुझे न दो

तुम क्या करोगे ख़ून से हाथों को रंग के
बस यूँ करो कि मेरी दवाएँ मुझे न दो

मैं मानता हूँ ज़ुर्म था तुमको यूँ चाहना
पर बार बार इसकी सज़ाएँ मुझे न दो

जो यादों की रिदाएँ नहीं पास में तो क्या
मैं शब को ओढ़ लूँगा क़बाएँ मुझे न दो

आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी
सहरा हूँ अब मैं अपनी घटाएँ मुझे न दो

किस्सा ही ख़त्म कर दो मेरी जान ले के तुम
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"

हाँ ये ज़रूर है कि मुहब्बत से अब है चिढ़
पर कब कहा मैंने कि जफ़ाएँ मुझे न दो

जब तक जिया मैं तुमने मुझे नफ़रतें ही दीं
अब मर गया हूँ तो ये वफ़ाएँ मुझे न दो

_________________________________________________________________________________

Samar kabeer


लिल्लाह अब तो ऐसी सज़ाएँ मुझे न दो
जो ख़्वाब सारी रात जगाएँ मुझे न दो

कहती है शाइरी, मैं अदब की असास हूँ
मुँहज़ोर जाहिलों की सभाएँ मुझे न दो

कह तो दिया था मैंने कि जिद्दत पसंद हूँ
बूढ़ी रवायतों की क़बाएँ मुझे न दो

इतने सितम हुए हैं यहाँ इसकी आड़ में
हर शख़्स कह रहा है वफ़ाएँ मुझे न दो

बढ़ने लगेगा यूँ तो मरज़ और भी मेरा
मैं हूँ मरीज़-ए-इश्क़ दवाएँ मुझे न दो

'एहमद फ़राज़' जी का ये मिसरा भी ख़ूब है
"हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो"

कहती है आज हमसे "समर" मादरे वतन
लुथड़ी हुई लहू में रिदाएँ मुझे न दो

_____________________________________________________________________________

नादिर ख़ान 


मै बेख़ता हूँ ऐसी सज़ाएँ मुझे न दो

मेरी वफ़ा के बदले जफ़ाएँ मुझे न दो

जुल्मों सितम की ऐसी खताएँ मुझे न दो

झूटी मुहब्बतों की क़बाएँ मुझे न दो

मै तो मुहब्बतों का तलबगार हूँ मियाँ

दिल से न दे सको वो दुआएँ मुझे न दो

मै ख़ूब जानता हूँ जो दिल में फ़रेब है

तुम अपनी दिलफ़रेब अदाएँ मुझे न दो

मेरी रगों में अब तो बग़ावत का जोश है

तुम अपने सब्र की ये दवाएँ मुझे न दो

कहकर गये हैं बात जनाबे फ़राज़ ये

हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

नादिर बिठा के पलकों पे रक्खा जिन्हें सदा

वो कह गये हैं अपनी बलाएँ मुझे न दो

_____________________________________________________________________________

Mohd Nayab 


मुजरिम नहीं हैं कैसे बताएँ मुझे न दो।

जो दे रहे हैं आप सज़ाएँ मुझे न दो।।

हैं मुस्तहक़ बहुत से बहन भाई और भी।

माँ इतनी सारी आप दुआएँ मुझे न दो।।

गाओ खुशी के गीत है छब्बीस जनवरी।

जमहूरियत की आप बलाएँ मुझे न दो।।

घर को संवारने में फ़क़त आप ही नहीं।

ये और बात है कि दुआएँ मुझे न दो।।

जाना है रूठ कर तो चले जाओ एक बार।

''हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो''।।

जलता रहूँ मैं रौशनी के वास्ते मगर।

मुफ़्लिश का मैं दिया हूँ हवाएँ मुझे न दो।।

उल्फ़त अगर है मुझसे तो शिकवा करें जनाब।

नफ़रत अगर है दिल में बलाएँ मुझे न दो।।

पत्थर था आप ने मुझे "नायाब" कर दिया।

अब और इतनी सारी दुआएँ मुझे न दो।।

_________________________________________________________________________________

Asif zaidi


अपनों से जीतने की दुआएं मुझे न दो,
ऐसे दिये जो आग लगाएं मुझे न दो।

छूलूं में आसमां नहीं मेरा गुमान ये,
छोटा सा हूं परिन्द हवाएं मुझे न दो।

बेठो क़रीब आके कहो दिल की बात फिर,
हर बार दूर जाके सदाएं मुझे न दो।

रिश्ता ग़मों से मेरा हमेशा से है रहा,
ख़ुशियों भरी ये अपनी रिदाएं मुझे न दो।

देने को कुछ भी दो मुझे सब है क़ुबूल पर,
बे-जुर्म बे-ख़ता यह सज़ाएं मुझे न दो।

साया हूं मैं तुम्हारा रखो यह ख़याल भी,
ऐसी निशानियां जो रुलाएं मुझे न दो।

दुश्मन को भाई कहते हो आसिफ़ कहो मगर,
उसको जो दे रहे हो दवाएं मुझे न दो।

_______________________________________________________________________________

Naveen Mani Tripathi

इतनी मेरे करम की सिलाएँ मुझे न दो ।।
जलता चराग हूँ मैं हवाएं मुझे न दो ।।

कर दे न मुझको ख़ाक कहीं तिश्नगी की आग ।
अब तो मुहब्बतों की दुआएं मुझे न दो ।।

जीना मुहाल कर दे यहां खुशबुओं का दौर ।

घुट जाए दम मेरा वो फ़जाएँ मुझे न दो ।।

यूँ ही तमाम फर्ज अधूरे हैं अब तलक ।
सर पर अभी से और बलाएँ मुझे न दो ।।

पूछा करो कसूर कभी अपनी रूह से ।
गर बेगुनाह हूँ तो सजाएं मुझे न दो ।।

इतना भी कम नहीं कि तग़ाफ़ुल में जी रहा ।
तुम महफिलों में अपनी जफाएँ मुझे न दो ।।

तुम इश्तिहार खूब छपाओगे कर्ज का ।
नीलाम हो न जाऊं वफ़ाएँ मुझे न दो ।।

कुछ तो शरारतें थीं तुम्हारी अदा की यार ।
मुज़रिम बना के सारी खताएँ मुझे न दो ।।

गर बेसबब ही रूठ के जाना तुम्हें है तो ।
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो ।।

मैं खुश हूँ आ के आज तो हिज्रे दयार में ।
बीमारे ग़म की यार दवाएं मुझे न दो ।।

________________________________________________________________________________

शिज्जु "शकूर"


चाही न थीं जो मैंने दुआएँ मुझे न दो
कुछ कम नहीं हैं और बलाएँ मुझे न दो

खोलोगे खिड़कियाँ तो बढ़ेगी घुटन मेरी
रहने दो इनको यूँ ही, हवाएँ मुझे न दो

आए हो तुम क़रीब इसी रोग के सबब
बीमार ही भला हूँ, दवाएँ मुझे न दो

जी चाहता है खोया रहूँ अपने आप में
इतना करम करो कि सदाएँ मुझे न दो

क़ाबिल नहीं है मेरा बदन जो ये ढो सके
अपनी मुहब्बतों की क़बाएँ मुझे न दो

या मेरे ख़्वाब दे दो या लौटाओ मेरी नींद
ये इल्तिजा है और सज़ाएँ मुझे न दो

अहसास होता है कि अभी जान बाकी है
अच्छी है बेख़ुदी ये दवाएँ मुझे न दो

रास आया लम्स ठंडी हवाओं का इस क़दर
मंज़ूर है ये कर्ब रिदाएँ मुझे न दो

यूँ लड़खड़ाने लगते हैं मेरे कदम 'शकूर'
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

_______________________________________________________________________________

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो,
और बिन बुलाई सारी बलाएँ मुझे न दो।

मर्ज़ी तुम्हारी दो या वफ़ाएँ मुझे न दो,
पर बद-गुमानी कर ये सज़ाएँ मुझे न दो।

सुलगा हुआ तो पहले से भड़काओ और क्यों,
नफ़रत की कम से कम तो हवाएँ मुझे न दो।

वाइज़ रहो भी चुप जरा, बीमार-ए-इश्क़ हूँ,
कड़वी नसीहतों की दवाएँ मुझे न दो।

तुम ही बता दो झेलने अब और कितने ग़म,
ये रोज रोज इतनी जफ़ाएँ मुझे न दो।

तुम दूर मुझ से जाओ भले ही खुशी खुशी,
पर दुख भरी ये काली निशाएँ मुझे न दो।

करता 'नमन' 'फ़राज़' को जिसने कहा है ये,
*हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो।*

________________________________________________________________________________

सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' 


मुझ पर करम करो ये सज़ाएँ मुझे न दो
बुझता हुआ दिया हूँ, हवाएँ मुझे न दो।।

हर शख़्स की सदा है यही आज देश में
दहशत भरी हुई ये फ़ज़ाएँ मुझे न दो।।

मुझको तवील उम्र मिले इस जहान में
ये इल्तिजा है ऐसी दुआएँ मुझे न दो।।

परहेज़ ख्वाहिशों से हमेशा रहा मेरा
तारों भरी हसीन क़बाएँ मुझे न दो।।

कहते मिले 'फ़राज़' हसीनों से बारहा
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"।।

आएगा रास कल ये मेरा वह्म है मगर
इस वह्म की जनाब दवाएँ मुझे न दो।।

_______________________________________________________________________________

anjali gupta 


है इश्क़ इक मरज़ तो दवाएं मुझे न दो
मैं ठीक हो न जाऊं दुआएं मुझे न दो (1)

चलती रहेंगी सांसें है चलना ही इनका काम
इस जुर्म पर जनाब सज़ाएं मुझे न दो (2)

बरसीं हैं अब्र बन के मेरी आँखें रात दिन
सहरा को सींचने की अदाएं मुझे न दो (3)

आई है मुश्किलों से लबों पे हँसी ज़रा
तुम फिर उदासियों की रिदाएं मुझे न दो (4)

जाना है मुझसे दूर तो जाओ सुनो मगर
हर बार दूर जाके सदाएं मुझे न दो 

अंजाम जिनका होगा 'सिफ़र' से जुदाई कल
उन क़ुरबतों की आज सज़ाएं मुझे न दो (6)

_________________________________________________________________________________

Tasdiq Ahmed Khan

चाहे वफ़ा के बदले वफाएँ मुझे न दो I
लेकिन ख़ताएँ करके सज़ाएँ मुझे न दो l

बुझता हुआ चराग हूँ मैं राहे इश्क़ में
अपनी फरेबी और हवाएँ मुझे न दो l

उनके बग़ैर ज़िंदगी किस काम की भला
जीने की ए अज़ीज़ों दुआएँ मुझे न दो l

आँखों को अश्क दिल को अलम और जिगर को दर्द
अपना बना के और अताएँ मुझे न दो l

वापस न आऊँगा मैं बहुत ज़ख्म खा लिए
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो l

हर वक़्त जो दिखाएँ जफाओं का ही असर
मेरे हबीब ऎसी वफाएँ मुझे न दो l

ओ वक़्त के हकीम हूँ बीमारे इश्क़ मैं
दीदार ए यार चाहूँ दवाएँ मुझे न दो l

धोका दगा फरेब तो तुम ख़ूब दे चुके
अब और मुस्कुरा के बलाएं मुझे न दो l

ऎसे तो जा न पाऊँगा परदेस जाने मन
करके विदाअ आप सदाएं मुझे न दो l

महफिल में खुल न जाए कहीँ राज़ प्यार का
सब की नज़र इधर है निदाएँ मुझे न दो l

तस्दीक मनअ ग़म की लताफत से कब किया
कब मैं ने ये कहा है जफ़ाएँ मुझे न दो l

_________________________________________________________________________________

rajesh kumari


बुझता चिराग़ हूँ मैं हवाएँ मुझे न दो

झूठी सलामती की दुआएँ मुझे न दो

जीता रहा फ़रेब के साए में आज तक
जाते हुए तुम इतनी वफाएँ मुझे न दो

अब ओढ़ ली है़ ख़ाक मेरे ज़िस्म ने नई
पलकों की शबनमी ये रिदाएँ मुझे न दो

बेजान ज़िस्म पर न कोई होता है़ असर
अपनी जुबान से ये बलाएँ मुझे न दो

टूटा हुआ सा एक में गुलदान हूँ फ़कत
गुल ज़ाफ़रानी सब्ज़ कबाएँ मुझे न दो

आँसू नहीं पसंद मुझे पौंछ लीजिए
अब जाते जाते इतनी सज़ाएँ मुझे न दो

कहना नहीं पड़ेगा तुम्हें अब कभी सनम

हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो

_____________________________________________________________________________

Munavvar Ali 'taj' 


तीनों तलाक़ की ये दफ़ाएँ मुझे न दो

रहने दो यार और बलाएँ मुझे न दो

बेज़ार हो गई है ग़मों से मिरी खुशी

अब और ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो

अपनी जफ़ा का जश्न मनाओ ज़रूर तुम

लेकिन मिरी वफ़ा की सज़ाएँ मुझे न दो

गोया हुई अवाम से भारत की एकता

तुम इंतिशार वाली हवाएँ मुझे न दो

अहसास में समाके सताओ न इस तरह

"हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो"

ये कह रही है 'ताज' शिफ़ा हाथ जोड़ कर

नुक़्सान जो करें वो दवाएँ मुझे न दो

_________________________________________________________________________________

Md. anis sheikh


जो तिश्नगी को और बढाएं मुझे न दो

प्यासा ही ठीक हूँ ये घटाएँ मुझे न दो|

वैसे भी ज़िन्दगी में ग़मों का पहाड़ है

इश्क़ -ओ- वफ़ा की और वबाएँ मुझे न दो |

बच भी गया तो क़र्ज़ से कर लूंगा ख़ुदख़ुशी

इतनी ज़ियादा महँगी दवाएँ मुझे न दो |

चाहत की दिल में आग अगर फिर भड़क उठी

मुझसे न बुझ सकेगी, हवाएँ मुझे न दो |

तुमसे बिछड़ के लगता है लम्हा भी इक सदी

अब और ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो |

हौले से कान में कहो कुछ प्यार से कभी

हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो |

_________________________________________________________________________________

Surkhab Bashar

ये इश्क़ का मरज़ है दवाएँ मुझे न दो
ऐसा ही ठीक हूँ मैं दुआएँ मुझे न दो

दीदार एक बार भी उनका न कर सकूँ
लिल्लाह इतनी सख़्त सज़ाएँ मुझे न दो'

अपनों को जिस मक़ाम पे मैं भूलने लगूँ
इतनी बुलन्दियों की दुआएँ मुझे न दो

सच के बहुत से तमग़ै मेरे बाज़ुओं पे हैं
झूटों के सर की सारी बलाएँ मुझे न दो

'सुरख़ाब' दिल की बात कहो मेरे कान में
"हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो"

_________________________________________________________________________________

दिगंबर नासवा

हुस्नो-शबाब जो भी लुटाएँ, मुझे न दो

शायद किसी के काम ये आएँ मुझे न दो

चिट्ठी हो मेल, ट्वीट, संदेसा, सलाम हो

मोबाइलों पे फोन लगाएँ, मुझे न दो

खेलें वो खेल इश्क का, पर दर्द हो मुझे

उनका है ये गुनाह, सज़ाएँ मुझे न दो

खुद मैं नहीं हूँ असल तो मुद्दा है अँधेरा

जलने के बाद तेज़ हवाएँ मुझे न दो

जिस्मानी दर्द और नहीं सह सकूंगा में

हमदर्द हो मेरे तो दवाएँ मुझे न दो

सुख चैन से कटें, जो कटें ज़िन्दगी के दिन

लम्बी हो ज़िंदगी ये दुआएँ मुझे न दो

विश्वास उठ न जाए कहीं सादगी से फिर

छुप छुप के खौफनाक अदाएँ मुझे न दो

गम ज़िन्दगी में और हैं इस इश्क के सिवा

“हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो”

वादा है खुद का खुद से न पीने का उम्र भर

छू कर लबों से जाम जो लाएँ, मुझे न दो

_________________________________________________________________________________

क़मर जौनपुरी

मैं आब से घिरा हूँ घटाएँ मुझे न दो
मैं दर्द में हूँ और बलाएँ मुझे न दो

मैं जम गया हूँ बर्फ़ से एहसास के तले
अब मौत की ये सर्द हवाएँ मुझे न दो

उसकी जफ़ा की राह में बीमार हूँ पड़ा
फ़ाके में हूँ वफ़ा की ग़िज़ाएँ मुझे न दो

अब थक चुका हूँ दौड़ लगाते मेरे सनम
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"

अब रास आ गया है मुझे जश्ने तीरगी
मिल जाये चाँदनी ये दुआएँ मुझे न दो

ये ज़ख़्म मेरे दिल का निशानी है प्यार की
भर जाए ज़ख़्म ऐसी दुआएँ मुझे न दो

____________________________________________________________________________

मोहन बेगोवाल

ये जिंदगी अदा तो अदाएँ मुझे न दो।
जब खाक उड़ चुकी तो घटाएँ मुझे न दो।

जब तक यकीन साथ हवाएँ मुझे न दो।
हो दूर दिल आवाज़ तो सदाएँ मुझे न दो।

रिशता बना मिरा नहीं लगता कभी तिरा,
जिन हारता रहा वो सजाएँ मुझे न दो।

जब रोग़ ही तिरा दिया लगता नहीं मिरा,
तू उस दुआ न कर ये दवाएँ मुझे न दो।

किस पास हम रहें कैसे कहते बता तुझे,
ऐ। जिंदगी ज़रा सी वफ़ाएँ मुझे न दो।

दुनिया तलाश जब ये करती है सोच कर,
कैसे कहूँ कभी ये जफाएँ मुझे न दो।

आवाज़ दिल सुनी नहीं देते रहे सदा,
“हर बार दूर जा कि सदाएँ मुझे न दो।“

जब जीत कर यहाँ मुझे हारा मिला है वो,
अब देखना कभी ये दुआएँ मुझे न दो।

______________________________________________________________________________

Ravi Shukla

बुझता हुआ दिया हूँ, हवाएँ मुझे न दो,
हो दोस्त गर मेरे तो बलाएँ मुझे न दो।

मुश्किल बहुत है अब तो पलटना मेरा "फ़राज़"
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो।

सारे निशान वक़्त ने दिल से मिटा दिए,
कुछ याद आए ऐसी दुआएँ मुझे न दो।

अहसान ज़िन्दगी का उठाया न जाएगा,
आती है मौत आए दवाएँ मुझे न दो।

उनको अता हो आब सराबों में जो रहे,
सहरा की तिश्नगी हूँ घटाएँ मुझे न दो।

तुमने फरेब दे के दिए रंज बेशुमार,
रुसवाइयों की अब तो कबाएँ मुझे न दो।

_________________________________________________________________________________

Dr Manju Kachhawa

बीमार हूँ मगर ये दवाएँ मुझे न दो
उम्र ए तवील की यूँ दुआएँ मुझे न दो

आदत सी हो गयी है जफ़ाओं की दोस्तो
ये इल्तिजा है तुमसे वफ़ाएँ मुझे न दो

मुझसे ख़ता हुई थी तो करते शिकायतें
ख़ामोश रह के ऐसे सज़ाएँ मुझे न दो

दामन छुड़ा के जाते हो ,जाओ,मगर सुनो
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"

तारों में आ बसी तो समाअत भी छिन गयी

बहतर है अब यही कि सदाएँ मुझे न दो

कहती है राख में दबी चिंगारी ऐ 'अना'
आतिश से ख़ौफ़ खाओ हवाएँ मुझे न दो

________________________________________________________________________________

राज़ नवादवी 

चुभने लगीं हैं, अब तो शुआएँ मुझे न दो
शह्र-ए-ख़मोशां में हूँ, सदाएँ मुझे न दो //१

कहता था चर्ख़ देके दुहाई किसान की
बरसें नहीं जो जम के घटाएँ, मुझे न दो //२

कुहना है रोग दिल का गो, गुंज़ीर हो नया
हर बार नीली पीली दवाएँ मुझे न दो //३

दुनिया के शोरो गुल की है आदत मुझे लगी
दिल के सुकूत, अपनी निदाएँ मुझे न दो //४

उल्फ़त में टूटने से ही बनता है जब नसीब
तोड़ें नहीं जो दिल को ज़फाएँ, मुझे न दो //५

देदो किसी ग़रीबे मुहब्बत को ये मता
लौटा के फिरसे मेरी वफ़ाएँ मुझे न दो //६

भड़काती हैं हवास के शोलों को और भी
आँचल से निकली शोख़ हवाएँ मुझे न दो //७

लौटूँ भी कितनी बार यूँ वस्ते सफ़र से मैं

‘हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो’ //८

कहती थी राज़ सादा दिली हुस्ने यार से

दिल तोड़ने की अपनी अदाएँ मुझे न दो //९

_________________________________________________________________________________

Amit Kumar "Amit" 


बीमार इश्क का हूं, दबाएँ मुझे न दो।
मर जाउंगा कि और, दुआएं मुझे न दो।।१।।

बेखौफ बेवजह वो करता रहा खता।
उसकी नदानियों की सजाएं मुझे न दो।।२।।

टूटे हुऐ चराग को कैसे जलाओगे।
बेकार कोशिशें ये हवाएं मुझे ना दो।।३।।

घाटे तमाम इश्क के क्यों तुमने रख लिए।
हक मार के ये मेरे नफाएं मुझे न दो।।४।।

मेरी कसम है आप को इस तौर छोड़ के।
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो ।।५।।

क्योंकर 'अमित' जताते हो मुुुझ से युं बेरुखी।
मौसम बसन्त का ये खिजाएं मुझे न दो।।६।।

______________________________________________________________________________

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

कैसे कहूँ मैं और सजाएँ मुझे न दो
मानव भला नहीं मैं दुआएँ मुझे न दो।१।

हर ओर इसके नाम से मडराती मौत अब
तुम दान ऐसे वक्त में गाएँ मुझे न दो।२।

मूरख हूँ मेरा ज्ञान से रिस्ता नहीं तनिक
पढ़ने को वेद की ये ऋचाएँ मुझे न दो।३।

तरसा हूँ चाहे बूँद को मौसम हर इक मगर
सूखी फसल के बाद घटाएँ मुझे न दो।४।

कहना है जो भी कह दो यहीं पास बैठ के
''हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो''।५।

माना कि मुफलिसी से हुआ बेलिबास मैं

फूलों की तुम कतर के कबाएँ मुझे न दे।६।

मुझमें नहीं हुनर ये कि बुत में तराश दूँ
मैं शहर काँच का हूँ  शिलाएँ मुझे न दो ।७।

______________________________________________________________________________

munish tanha 


इस जिन्दगी की और दुआएं मुझे न दो

रहने दो यार और सजाएं मुझे न दो

कितने सहे हैं जख्म मुझे खुद नहीं पता

अब रब के वास्ते ये बलाएं मुझे न दो

जलता हुआ चिराग मैं अपने मकान का

मुंहजोर वेलगाम हवाएं मुझे न दो

तुम पास आ के हाल सुना दो मुझे सनम

हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो

इस दर्दे दिल की बात को सुनता नहीं कोई

कहता फिरे वो सबसे जफ़ाएं मुझे न दो

तन्हा मिले न अब्र तो प्यासी हुई धरा

करती फिरे पुकार झूठी घटाएँ मुझे न दो

_____________________________________________________________________________

dandpani nahak 


ऐसी ख़बर वो फिर से न आएँ मुझे न दो
यारो दया करो ये सज़ाएँ मुझे न दो

बातूनी हो गया है बहुत झूठ सच है चुप
कहता है वो यही कि सदाएँ मुझे न दो

कर कर के इंतिज़ार बहुत थक चुका हूँ मैं
ऐसे में ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो

इस बार जो गया न कभी लौट पाउँगा

"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

कुछ रह्म तो करो कि मैं जनता हूँ देश की
अपने किये की आप सज़ाएँ मुझे न दो

_______________________________________________________________________________

अजय गुप्ता 


यादों को सब्ज़ करती हवाएँ मुझे न दो
अब ठूँठ ही भला हूँ फ़ज़ाएँ मुझे न दो

जब से तुम आई पास खिली मेरी ज़िंदगी
फिर बुझ न जाए रंग खलाएँ मुझे न दो

कहते हो मेरे साथ चलो जाम छोड़ कर
अपना बना के अपनी बलाएँ मुझे न दो

आगे बढूँ खुदाया मुझे दो वो हौंसला
पीछे न हटने देे वो अनाएँ मुझे न दो

हल्की सी किरण हो कि नज़र में रहे डगर
अँधा ही कर दें इतनी ज़ियाएँ मुझे न दो

इंसानियत दिखा के निभाता हूँ फ़र्ज़ ही
इस बात के लिए भी दुआएँ मुझे न दो

बर्बाद होते देख हज़ारों को इश्क़ में
कहने लगा ज़माना वफ़ाएँ मुझे न दो

इक बार तो क़रीब से भी कर लो गुफ़्तगू
**हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

______________________________________________________________________________

मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 1165

Reply to This

Replies to This Discussion

मुहतरम जनाब राणा प्रतापसिंह साहिब, ओ बी ओ ला इव तरही मुशायरा अंक - 103 के त्वरित संकलन और कामयाब निज़ामत के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं I 

आ. भाई राणा प्रताप जी, ओबीओ तरही मुशायरा अंक १०३ के संकलनके करण के लिए हार्दिक बधाई ।

साथ ही अनुरोध है कि मेरी प्रस्तुति के 6टे शेर की प्रथम पंक्ति को इस प्रकार करने की कृपा करें । सादर...

माना कि मुफलिसी से हुआ बेलिबास मैं

यथा निवेदित तथा संशोधित.

आद0 राणा प्रताप सिंह जी सादर अभिवादन। ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा 103 के त्वरित संकलन और उसमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सँग बधाई

जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,तरही मुशायरा अंक-103 के संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।

जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,

जनाब नादिर साहिब का ये मिसरा:-

'जुल्मों सितम की ऐसी खताएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब मो.नायाब की ग़ज़ल का ये मिसरा:-

'मुजरिम नहीं हैं कैसे बताएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी का ये मिसरा:-

'घुट जाए दम मेरा वो फ़जाएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब तस्दीक़ साहिब के इस शैर में शुतरगुरबा दोष है:-

'ओ वक़्त के हकीम हूँ बीमारे इश्क़ मैं
दीदार ए यार चाहूँ दवाएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब राज़ नवादवी जी का ये मिसरा:

'देदो किसी ग़रीबे मुहब्बत को ये मता'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब अमित जी का ये मिसरा:-

'बीमार इश्क का हूं, दबाएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब लक्ष्मण धामी जी का ये मिसरा:-

'मूरख हूँ मेरा ज्ञान से रिस्ता नहीं तनिक'

इटैलिक होना चाहिये ।

जनाब अजय गुप्ता जी का ये मिसरा:-

'हल्की सी किरण हो कि नज़र में रहे डगर'

लय में नहीं,काटना चाहिए ।

'ओ वक़्त के हकीम हूँ बीमारे इश्क़ मैं
दीदार ए यार चाहूँ दवाएँ मुझे न दो l

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service