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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-103 सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

आदरणीय सदस्यगण 103वें तरही मुशायरे का संकलन प्रस्तुत है| बेबहर शेर कटे हुए हैं, और जिन मिसरों में कोई न कोई ऐब है वह इटैलिक हैं|

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ASHFAQ ALI 


जब दर्दे दिल दिया है दवाएँ मुझे न दो।
अब और ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो।।

लह्ज़ा भी जम न जाए कहीं बर्फ की तरह।
दामन से इतनी सर्द हवाएँ मुझे न दो।।

इक बार हो गया चलो दो बार हो गया।
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"।।

नेताजी अब तो बख्श दो भगवान के लिए।
गुरबत है इतनी खेत में गाएँ मुझे न दो।।

तन ढ़कने को दो चादरें मिल जायें ऐ खुदा।
मन रखने को शफ़्फ़ाफ़ क़बाएँ मुझे न दो।।

जा तो रहे हो छोड़ कर तन्हा मगर ऐ दोस्त।
तकलीफ़ दिल को दें वो सजाएँ मुझे न दो।।

लिखता रहूँ ग़ज़ल मैं सलीक़े से ऐ खुदा।
पढ़ने को गैरों जैसी अदाएँ मुझे न दो।।

''गुलशन''में हर तरफ हों मुहब्बत की बारिशें।
नफ़रत की काली काली घटाएँ मुझे न दो।।

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Mahendra Kumar 


साँसों की गर्म गर्म हवाएँ मुझे न दो
मैं दूर जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो

मैं जानता हूँ आसमाँ में कुछ नहीं रखा
ले कर ख़ुदा का नाम दुआएँ मुझे न दो

तुम क्या करोगे ख़ून से हाथों को रंग के
बस यूँ करो कि मेरी दवाएँ मुझे न दो

मैं मानता हूँ ज़ुर्म था तुमको यूँ चाहना
पर बार बार इसकी सज़ाएँ मुझे न दो

जो यादों की रिदाएँ नहीं पास में तो क्या
मैं शब को ओढ़ लूँगा क़बाएँ मुझे न दो

आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी
सहरा हूँ अब मैं अपनी घटाएँ मुझे न दो

किस्सा ही ख़त्म कर दो मेरी जान ले के तुम
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"

हाँ ये ज़रूर है कि मुहब्बत से अब है चिढ़
पर कब कहा मैंने कि जफ़ाएँ मुझे न दो

जब तक जिया मैं तुमने मुझे नफ़रतें ही दीं
अब मर गया हूँ तो ये वफ़ाएँ मुझे न दो

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Samar kabeer


लिल्लाह अब तो ऐसी सज़ाएँ मुझे न दो
जो ख़्वाब सारी रात जगाएँ मुझे न दो

कहती है शाइरी, मैं अदब की असास हूँ
मुँहज़ोर जाहिलों की सभाएँ मुझे न दो

कह तो दिया था मैंने कि जिद्दत पसंद हूँ
बूढ़ी रवायतों की क़बाएँ मुझे न दो

इतने सितम हुए हैं यहाँ इसकी आड़ में
हर शख़्स कह रहा है वफ़ाएँ मुझे न दो

बढ़ने लगेगा यूँ तो मरज़ और भी मेरा
मैं हूँ मरीज़-ए-इश्क़ दवाएँ मुझे न दो

'एहमद फ़राज़' जी का ये मिसरा भी ख़ूब है
"हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो"

कहती है आज हमसे "समर" मादरे वतन
लुथड़ी हुई लहू में रिदाएँ मुझे न दो

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नादिर ख़ान 


मै बेख़ता हूँ ऐसी सज़ाएँ मुझे न दो

मेरी वफ़ा के बदले जफ़ाएँ मुझे न दो

जुल्मों सितम की ऐसी खताएँ मुझे न दो

झूटी मुहब्बतों की क़बाएँ मुझे न दो

मै तो मुहब्बतों का तलबगार हूँ मियाँ

दिल से न दे सको वो दुआएँ मुझे न दो

मै ख़ूब जानता हूँ जो दिल में फ़रेब है

तुम अपनी दिलफ़रेब अदाएँ मुझे न दो

मेरी रगों में अब तो बग़ावत का जोश है

तुम अपने सब्र की ये दवाएँ मुझे न दो

कहकर गये हैं बात जनाबे फ़राज़ ये

हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

नादिर बिठा के पलकों पे रक्खा जिन्हें सदा

वो कह गये हैं अपनी बलाएँ मुझे न दो

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Mohd Nayab 


मुजरिम नहीं हैं कैसे बताएँ मुझे न दो।

जो दे रहे हैं आप सज़ाएँ मुझे न दो।।

हैं मुस्तहक़ बहुत से बहन भाई और भी।

माँ इतनी सारी आप दुआएँ मुझे न दो।।

गाओ खुशी के गीत है छब्बीस जनवरी।

जमहूरियत की आप बलाएँ मुझे न दो।।

घर को संवारने में फ़क़त आप ही नहीं।

ये और बात है कि दुआएँ मुझे न दो।।

जाना है रूठ कर तो चले जाओ एक बार।

''हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो''।।

जलता रहूँ मैं रौशनी के वास्ते मगर।

मुफ़्लिश का मैं दिया हूँ हवाएँ मुझे न दो।।

उल्फ़त अगर है मुझसे तो शिकवा करें जनाब।

नफ़रत अगर है दिल में बलाएँ मुझे न दो।।

पत्थर था आप ने मुझे "नायाब" कर दिया।

अब और इतनी सारी दुआएँ मुझे न दो।।

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Asif zaidi


अपनों से जीतने की दुआएं मुझे न दो,
ऐसे दिये जो आग लगाएं मुझे न दो।

छूलूं में आसमां नहीं मेरा गुमान ये,
छोटा सा हूं परिन्द हवाएं मुझे न दो।

बेठो क़रीब आके कहो दिल की बात फिर,
हर बार दूर जाके सदाएं मुझे न दो।

रिश्ता ग़मों से मेरा हमेशा से है रहा,
ख़ुशियों भरी ये अपनी रिदाएं मुझे न दो।

देने को कुछ भी दो मुझे सब है क़ुबूल पर,
बे-जुर्म बे-ख़ता यह सज़ाएं मुझे न दो।

साया हूं मैं तुम्हारा रखो यह ख़याल भी,
ऐसी निशानियां जो रुलाएं मुझे न दो।

दुश्मन को भाई कहते हो आसिफ़ कहो मगर,
उसको जो दे रहे हो दवाएं मुझे न दो।

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Naveen Mani Tripathi

इतनी मेरे करम की सिलाएँ मुझे न दो ।।
जलता चराग हूँ मैं हवाएं मुझे न दो ।।

कर दे न मुझको ख़ाक कहीं तिश्नगी की आग ।
अब तो मुहब्बतों की दुआएं मुझे न दो ।।

जीना मुहाल कर दे यहां खुशबुओं का दौर ।

घुट जाए दम मेरा वो फ़जाएँ मुझे न दो ।।

यूँ ही तमाम फर्ज अधूरे हैं अब तलक ।
सर पर अभी से और बलाएँ मुझे न दो ।।

पूछा करो कसूर कभी अपनी रूह से ।
गर बेगुनाह हूँ तो सजाएं मुझे न दो ।।

इतना भी कम नहीं कि तग़ाफ़ुल में जी रहा ।
तुम महफिलों में अपनी जफाएँ मुझे न दो ।।

तुम इश्तिहार खूब छपाओगे कर्ज का ।
नीलाम हो न जाऊं वफ़ाएँ मुझे न दो ।।

कुछ तो शरारतें थीं तुम्हारी अदा की यार ।
मुज़रिम बना के सारी खताएँ मुझे न दो ।।

गर बेसबब ही रूठ के जाना तुम्हें है तो ।
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो ।।

मैं खुश हूँ आ के आज तो हिज्रे दयार में ।
बीमारे ग़म की यार दवाएं मुझे न दो ।।

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शिज्जु "शकूर"


चाही न थीं जो मैंने दुआएँ मुझे न दो
कुछ कम नहीं हैं और बलाएँ मुझे न दो

खोलोगे खिड़कियाँ तो बढ़ेगी घुटन मेरी
रहने दो इनको यूँ ही, हवाएँ मुझे न दो

आए हो तुम क़रीब इसी रोग के सबब
बीमार ही भला हूँ, दवाएँ मुझे न दो

जी चाहता है खोया रहूँ अपने आप में
इतना करम करो कि सदाएँ मुझे न दो

क़ाबिल नहीं है मेरा बदन जो ये ढो सके
अपनी मुहब्बतों की क़बाएँ मुझे न दो

या मेरे ख़्वाब दे दो या लौटाओ मेरी नींद
ये इल्तिजा है और सज़ाएँ मुझे न दो

अहसास होता है कि अभी जान बाकी है
अच्छी है बेख़ुदी ये दवाएँ मुझे न दो

रास आया लम्स ठंडी हवाओं का इस क़दर
मंज़ूर है ये कर्ब रिदाएँ मुझे न दो

यूँ लड़खड़ाने लगते हैं मेरे कदम 'शकूर'
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

जीने की इस जहाँ में दुआएँ मुझे न दो,
और बिन बुलाई सारी बलाएँ मुझे न दो।

मर्ज़ी तुम्हारी दो या वफ़ाएँ मुझे न दो,
पर बद-गुमानी कर ये सज़ाएँ मुझे न दो।

सुलगा हुआ तो पहले से भड़काओ और क्यों,
नफ़रत की कम से कम तो हवाएँ मुझे न दो।

वाइज़ रहो भी चुप जरा, बीमार-ए-इश्क़ हूँ,
कड़वी नसीहतों की दवाएँ मुझे न दो।

तुम ही बता दो झेलने अब और कितने ग़म,
ये रोज रोज इतनी जफ़ाएँ मुझे न दो।

तुम दूर मुझ से जाओ भले ही खुशी खुशी,
पर दुख भरी ये काली निशाएँ मुझे न दो।

करता 'नमन' 'फ़राज़' को जिसने कहा है ये,
*हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो।*

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सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' 


मुझ पर करम करो ये सज़ाएँ मुझे न दो
बुझता हुआ दिया हूँ, हवाएँ मुझे न दो।।

हर शख़्स की सदा है यही आज देश में
दहशत भरी हुई ये फ़ज़ाएँ मुझे न दो।।

मुझको तवील उम्र मिले इस जहान में
ये इल्तिजा है ऐसी दुआएँ मुझे न दो।।

परहेज़ ख्वाहिशों से हमेशा रहा मेरा
तारों भरी हसीन क़बाएँ मुझे न दो।।

कहते मिले 'फ़राज़' हसीनों से बारहा
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"।।

आएगा रास कल ये मेरा वह्म है मगर
इस वह्म की जनाब दवाएँ मुझे न दो।।

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anjali gupta 


है इश्क़ इक मरज़ तो दवाएं मुझे न दो
मैं ठीक हो न जाऊं दुआएं मुझे न दो (1)

चलती रहेंगी सांसें है चलना ही इनका काम
इस जुर्म पर जनाब सज़ाएं मुझे न दो (2)

बरसीं हैं अब्र बन के मेरी आँखें रात दिन
सहरा को सींचने की अदाएं मुझे न दो (3)

आई है मुश्किलों से लबों पे हँसी ज़रा
तुम फिर उदासियों की रिदाएं मुझे न दो (4)

जाना है मुझसे दूर तो जाओ सुनो मगर
हर बार दूर जाके सदाएं मुझे न दो 

अंजाम जिनका होगा 'सिफ़र' से जुदाई कल
उन क़ुरबतों की आज सज़ाएं मुझे न दो (6)

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Tasdiq Ahmed Khan

चाहे वफ़ा के बदले वफाएँ मुझे न दो I
लेकिन ख़ताएँ करके सज़ाएँ मुझे न दो l

बुझता हुआ चराग हूँ मैं राहे इश्क़ में
अपनी फरेबी और हवाएँ मुझे न दो l

उनके बग़ैर ज़िंदगी किस काम की भला
जीने की ए अज़ीज़ों दुआएँ मुझे न दो l

आँखों को अश्क दिल को अलम और जिगर को दर्द
अपना बना के और अताएँ मुझे न दो l

वापस न आऊँगा मैं बहुत ज़ख्म खा लिए
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो l

हर वक़्त जो दिखाएँ जफाओं का ही असर
मेरे हबीब ऎसी वफाएँ मुझे न दो l

ओ वक़्त के हकीम हूँ बीमारे इश्क़ मैं
दीदार ए यार चाहूँ दवाएँ मुझे न दो l

धोका दगा फरेब तो तुम ख़ूब दे चुके
अब और मुस्कुरा के बलाएं मुझे न दो l

ऎसे तो जा न पाऊँगा परदेस जाने मन
करके विदाअ आप सदाएं मुझे न दो l

महफिल में खुल न जाए कहीँ राज़ प्यार का
सब की नज़र इधर है निदाएँ मुझे न दो l

तस्दीक मनअ ग़म की लताफत से कब किया
कब मैं ने ये कहा है जफ़ाएँ मुझे न दो l

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rajesh kumari


बुझता चिराग़ हूँ मैं हवाएँ मुझे न दो

झूठी सलामती की दुआएँ मुझे न दो

जीता रहा फ़रेब के साए में आज तक
जाते हुए तुम इतनी वफाएँ मुझे न दो

अब ओढ़ ली है़ ख़ाक मेरे ज़िस्म ने नई
पलकों की शबनमी ये रिदाएँ मुझे न दो

बेजान ज़िस्म पर न कोई होता है़ असर
अपनी जुबान से ये बलाएँ मुझे न दो

टूटा हुआ सा एक में गुलदान हूँ फ़कत
गुल ज़ाफ़रानी सब्ज़ कबाएँ मुझे न दो

आँसू नहीं पसंद मुझे पौंछ लीजिए
अब जाते जाते इतनी सज़ाएँ मुझे न दो

कहना नहीं पड़ेगा तुम्हें अब कभी सनम

हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो

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Munavvar Ali 'taj' 


तीनों तलाक़ की ये दफ़ाएँ मुझे न दो

रहने दो यार और बलाएँ मुझे न दो

बेज़ार हो गई है ग़मों से मिरी खुशी

अब और ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो

अपनी जफ़ा का जश्न मनाओ ज़रूर तुम

लेकिन मिरी वफ़ा की सज़ाएँ मुझे न दो

गोया हुई अवाम से भारत की एकता

तुम इंतिशार वाली हवाएँ मुझे न दो

अहसास में समाके सताओ न इस तरह

"हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो"

ये कह रही है 'ताज' शिफ़ा हाथ जोड़ कर

नुक़्सान जो करें वो दवाएँ मुझे न दो

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Md. anis sheikh


जो तिश्नगी को और बढाएं मुझे न दो

प्यासा ही ठीक हूँ ये घटाएँ मुझे न दो|

वैसे भी ज़िन्दगी में ग़मों का पहाड़ है

इश्क़ -ओ- वफ़ा की और वबाएँ मुझे न दो |

बच भी गया तो क़र्ज़ से कर लूंगा ख़ुदख़ुशी

इतनी ज़ियादा महँगी दवाएँ मुझे न दो |

चाहत की दिल में आग अगर फिर भड़क उठी

मुझसे न बुझ सकेगी, हवाएँ मुझे न दो |

तुमसे बिछड़ के लगता है लम्हा भी इक सदी

अब और ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो |

हौले से कान में कहो कुछ प्यार से कभी

हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो |

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Surkhab Bashar

ये इश्क़ का मरज़ है दवाएँ मुझे न दो
ऐसा ही ठीक हूँ मैं दुआएँ मुझे न दो

दीदार एक बार भी उनका न कर सकूँ
लिल्लाह इतनी सख़्त सज़ाएँ मुझे न दो'

अपनों को जिस मक़ाम पे मैं भूलने लगूँ
इतनी बुलन्दियों की दुआएँ मुझे न दो

सच के बहुत से तमग़ै मेरे बाज़ुओं पे हैं
झूटों के सर की सारी बलाएँ मुझे न दो

'सुरख़ाब' दिल की बात कहो मेरे कान में
"हर बार दूर जाके सदाएँ मुझे न दो"

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दिगंबर नासवा

हुस्नो-शबाब जो भी लुटाएँ, मुझे न दो

शायद किसी के काम ये आएँ मुझे न दो

चिट्ठी हो मेल, ट्वीट, संदेसा, सलाम हो

मोबाइलों पे फोन लगाएँ, मुझे न दो

खेलें वो खेल इश्क का, पर दर्द हो मुझे

उनका है ये गुनाह, सज़ाएँ मुझे न दो

खुद मैं नहीं हूँ असल तो मुद्दा है अँधेरा

जलने के बाद तेज़ हवाएँ मुझे न दो

जिस्मानी दर्द और नहीं सह सकूंगा में

हमदर्द हो मेरे तो दवाएँ मुझे न दो

सुख चैन से कटें, जो कटें ज़िन्दगी के दिन

लम्बी हो ज़िंदगी ये दुआएँ मुझे न दो

विश्वास उठ न जाए कहीं सादगी से फिर

छुप छुप के खौफनाक अदाएँ मुझे न दो

गम ज़िन्दगी में और हैं इस इश्क के सिवा

“हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो”

वादा है खुद का खुद से न पीने का उम्र भर

छू कर लबों से जाम जो लाएँ, मुझे न दो

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क़मर जौनपुरी

मैं आब से घिरा हूँ घटाएँ मुझे न दो
मैं दर्द में हूँ और बलाएँ मुझे न दो

मैं जम गया हूँ बर्फ़ से एहसास के तले
अब मौत की ये सर्द हवाएँ मुझे न दो

उसकी जफ़ा की राह में बीमार हूँ पड़ा
फ़ाके में हूँ वफ़ा की ग़िज़ाएँ मुझे न दो

अब थक चुका हूँ दौड़ लगाते मेरे सनम
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"

अब रास आ गया है मुझे जश्ने तीरगी
मिल जाये चाँदनी ये दुआएँ मुझे न दो

ये ज़ख़्म मेरे दिल का निशानी है प्यार की
भर जाए ज़ख़्म ऐसी दुआएँ मुझे न दो

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मोहन बेगोवाल

ये जिंदगी अदा तो अदाएँ मुझे न दो।
जब खाक उड़ चुकी तो घटाएँ मुझे न दो।

जब तक यकीन साथ हवाएँ मुझे न दो।
हो दूर दिल आवाज़ तो सदाएँ मुझे न दो।

रिशता बना मिरा नहीं लगता कभी तिरा,
जिन हारता रहा वो सजाएँ मुझे न दो।

जब रोग़ ही तिरा दिया लगता नहीं मिरा,
तू उस दुआ न कर ये दवाएँ मुझे न दो।

किस पास हम रहें कैसे कहते बता तुझे,
ऐ। जिंदगी ज़रा सी वफ़ाएँ मुझे न दो।

दुनिया तलाश जब ये करती है सोच कर,
कैसे कहूँ कभी ये जफाएँ मुझे न दो।

आवाज़ दिल सुनी नहीं देते रहे सदा,
“हर बार दूर जा कि सदाएँ मुझे न दो।“

जब जीत कर यहाँ मुझे हारा मिला है वो,
अब देखना कभी ये दुआएँ मुझे न दो।

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Ravi Shukla

बुझता हुआ दिया हूँ, हवाएँ मुझे न दो,
हो दोस्त गर मेरे तो बलाएँ मुझे न दो।

मुश्किल बहुत है अब तो पलटना मेरा "फ़राज़"
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो।

सारे निशान वक़्त ने दिल से मिटा दिए,
कुछ याद आए ऐसी दुआएँ मुझे न दो।

अहसान ज़िन्दगी का उठाया न जाएगा,
आती है मौत आए दवाएँ मुझे न दो।

उनको अता हो आब सराबों में जो रहे,
सहरा की तिश्नगी हूँ घटाएँ मुझे न दो।

तुमने फरेब दे के दिए रंज बेशुमार,
रुसवाइयों की अब तो कबाएँ मुझे न दो।

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Dr Manju Kachhawa

बीमार हूँ मगर ये दवाएँ मुझे न दो
उम्र ए तवील की यूँ दुआएँ मुझे न दो

आदत सी हो गयी है जफ़ाओं की दोस्तो
ये इल्तिजा है तुमसे वफ़ाएँ मुझे न दो

मुझसे ख़ता हुई थी तो करते शिकायतें
ख़ामोश रह के ऐसे सज़ाएँ मुझे न दो

दामन छुड़ा के जाते हो ,जाओ,मगर सुनो
"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो"

तारों में आ बसी तो समाअत भी छिन गयी

बहतर है अब यही कि सदाएँ मुझे न दो

कहती है राख में दबी चिंगारी ऐ 'अना'
आतिश से ख़ौफ़ खाओ हवाएँ मुझे न दो

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राज़ नवादवी 

चुभने लगीं हैं, अब तो शुआएँ मुझे न दो
शह्र-ए-ख़मोशां में हूँ, सदाएँ मुझे न दो //१

कहता था चर्ख़ देके दुहाई किसान की
बरसें नहीं जो जम के घटाएँ, मुझे न दो //२

कुहना है रोग दिल का गो, गुंज़ीर हो नया
हर बार नीली पीली दवाएँ मुझे न दो //३

दुनिया के शोरो गुल की है आदत मुझे लगी
दिल के सुकूत, अपनी निदाएँ मुझे न दो //४

उल्फ़त में टूटने से ही बनता है जब नसीब
तोड़ें नहीं जो दिल को ज़फाएँ, मुझे न दो //५

देदो किसी ग़रीबे मुहब्बत को ये मता
लौटा के फिरसे मेरी वफ़ाएँ मुझे न दो //६

भड़काती हैं हवास के शोलों को और भी
आँचल से निकली शोख़ हवाएँ मुझे न दो //७

लौटूँ भी कितनी बार यूँ वस्ते सफ़र से मैं

‘हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो’ //८

कहती थी राज़ सादा दिली हुस्ने यार से

दिल तोड़ने की अपनी अदाएँ मुझे न दो //९

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Amit Kumar "Amit" 


बीमार इश्क का हूं, दबाएँ मुझे न दो।
मर जाउंगा कि और, दुआएं मुझे न दो।।१।।

बेखौफ बेवजह वो करता रहा खता।
उसकी नदानियों की सजाएं मुझे न दो।।२।।

टूटे हुऐ चराग को कैसे जलाओगे।
बेकार कोशिशें ये हवाएं मुझे ना दो।।३।।

घाटे तमाम इश्क के क्यों तुमने रख लिए।
हक मार के ये मेरे नफाएं मुझे न दो।।४।।

मेरी कसम है आप को इस तौर छोड़ के।
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो ।।५।।

क्योंकर 'अमित' जताते हो मुुुझ से युं बेरुखी।
मौसम बसन्त का ये खिजाएं मुझे न दो।।६।।

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

कैसे कहूँ मैं और सजाएँ मुझे न दो
मानव भला नहीं मैं दुआएँ मुझे न दो।१।

हर ओर इसके नाम से मडराती मौत अब
तुम दान ऐसे वक्त में गाएँ मुझे न दो।२।

मूरख हूँ मेरा ज्ञान से रिस्ता नहीं तनिक
पढ़ने को वेद की ये ऋचाएँ मुझे न दो।३।

तरसा हूँ चाहे बूँद को मौसम हर इक मगर
सूखी फसल के बाद घटाएँ मुझे न दो।४।

कहना है जो भी कह दो यहीं पास बैठ के
''हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो''।५।

माना कि मुफलिसी से हुआ बेलिबास मैं

फूलों की तुम कतर के कबाएँ मुझे न दे।६।

मुझमें नहीं हुनर ये कि बुत में तराश दूँ
मैं शहर काँच का हूँ  शिलाएँ मुझे न दो ।७।

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munish tanha 


इस जिन्दगी की और दुआएं मुझे न दो

रहने दो यार और सजाएं मुझे न दो

कितने सहे हैं जख्म मुझे खुद नहीं पता

अब रब के वास्ते ये बलाएं मुझे न दो

जलता हुआ चिराग मैं अपने मकान का

मुंहजोर वेलगाम हवाएं मुझे न दो

तुम पास आ के हाल सुना दो मुझे सनम

हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो

इस दर्दे दिल की बात को सुनता नहीं कोई

कहता फिरे वो सबसे जफ़ाएं मुझे न दो

तन्हा मिले न अब्र तो प्यासी हुई धरा

करती फिरे पुकार झूठी घटाएँ मुझे न दो

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dandpani nahak 


ऐसी ख़बर वो फिर से न आएँ मुझे न दो
यारो दया करो ये सज़ाएँ मुझे न दो

बातूनी हो गया है बहुत झूठ सच है चुप
कहता है वो यही कि सदाएँ मुझे न दो

कर कर के इंतिज़ार बहुत थक चुका हूँ मैं
ऐसे में ज़िन्दगी की दुआएँ मुझे न दो

इस बार जो गया न कभी लौट पाउँगा

"हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

कुछ रह्म तो करो कि मैं जनता हूँ देश की
अपने किये की आप सज़ाएँ मुझे न दो

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अजय गुप्ता 


यादों को सब्ज़ करती हवाएँ मुझे न दो
अब ठूँठ ही भला हूँ फ़ज़ाएँ मुझे न दो

जब से तुम आई पास खिली मेरी ज़िंदगी
फिर बुझ न जाए रंग खलाएँ मुझे न दो

कहते हो मेरे साथ चलो जाम छोड़ कर
अपना बना के अपनी बलाएँ मुझे न दो

आगे बढूँ खुदाया मुझे दो वो हौंसला
पीछे न हटने देे वो अनाएँ मुझे न दो

हल्की सी किरण हो कि नज़र में रहे डगर
अँधा ही कर दें इतनी ज़ियाएँ मुझे न दो

इंसानियत दिखा के निभाता हूँ फ़र्ज़ ही
इस बात के लिए भी दुआएँ मुझे न दो

बर्बाद होते देख हज़ारों को इश्क़ में
कहने लगा ज़माना वफ़ाएँ मुझे न दो

इक बार तो क़रीब से भी कर लो गुफ़्तगू
**हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो

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मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

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Replies to This Discussion

मुहतरम जनाब राणा प्रतापसिंह साहिब, ओ बी ओ ला इव तरही मुशायरा अंक - 103 के त्वरित संकलन और कामयाब निज़ामत के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं I 

आ. भाई राणा प्रताप जी, ओबीओ तरही मुशायरा अंक १०३ के संकलनके करण के लिए हार्दिक बधाई ।

साथ ही अनुरोध है कि मेरी प्रस्तुति के 6टे शेर की प्रथम पंक्ति को इस प्रकार करने की कृपा करें । सादर...

माना कि मुफलिसी से हुआ बेलिबास मैं

यथा निवेदित तथा संशोधित.

आद0 राणा प्रताप सिंह जी सादर अभिवादन। ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा 103 के त्वरित संकलन और उसमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सँग बधाई

जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,तरही मुशायरा अंक-103 के संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।

जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,

जनाब नादिर साहिब का ये मिसरा:-

'जुल्मों सितम की ऐसी खताएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब मो.नायाब की ग़ज़ल का ये मिसरा:-

'मुजरिम नहीं हैं कैसे बताएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी का ये मिसरा:-

'घुट जाए दम मेरा वो फ़जाएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब तस्दीक़ साहिब के इस शैर में शुतरगुरबा दोष है:-

'ओ वक़्त के हकीम हूँ बीमारे इश्क़ मैं
दीदार ए यार चाहूँ दवाएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब राज़ नवादवी जी का ये मिसरा:

'देदो किसी ग़रीबे मुहब्बत को ये मता'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब अमित जी का ये मिसरा:-

'बीमार इश्क का हूं, दबाएँ मुझे न दो'

इटैलिक होना चाहिए ।

जनाब लक्ष्मण धामी जी का ये मिसरा:-

'मूरख हूँ मेरा ज्ञान से रिस्ता नहीं तनिक'

इटैलिक होना चाहिये ।

जनाब अजय गुप्ता जी का ये मिसरा:-

'हल्की सी किरण हो कि नज़र में रहे डगर'

लय में नहीं,काटना चाहिए ।

'ओ वक़्त के हकीम हूँ बीमारे इश्क़ मैं
दीदार ए यार चाहूँ दवाएँ मुझे न दो l

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सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
17 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

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