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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

कृपया मुशायरे सम्बंधित अधिक जानकारी एवं मुशायरा भाग 2 में प्रवेश हेतु नीचे दी गयी लिंक क्लिक करें 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

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...चेहरे को चाँद कहकर....बेजोड़...बधाई आदरणीया।

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मनन कुमार सिंह जी

आ. अंजलि जी ,
अच्छी ग़ज़ल के लिए   दाद और बधाई स्वीकार करें 

हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया नीलेश जी

जिसकी खातिर सुलग के राख हुई
ठोकरों से उड़ा गया है मुझे। वाह! वाह!! क्या दर्द है ।

           शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आदरणीया अंजलि गुप्ता जी ।

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, सराहना के लिए दिली शुक्रिया

ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया अंजलि जी। आपका चौथा शेर बेहद पसन्द आया। इसके लिए अलग से बधाई। सादर।

आदरणीय महेंद्र कुमार जी,हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहेदिल से आपका शुक्रिया

आ. अंजलि जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी , सराहना के लिए दिली शुक्रिया

//आइना यूं दिखा गया है मुझे 
कोई ख़ुद से मिला गया है मुझे// अच्छा और सादगी भरा मतला है। 

//मेरे चेहरे को चांद कह कर वो 
आसमां पर सजा गया है मुझे// वाह वाह वाह!! रिवायती रंगत का ये शेअर अच्छा लगा.  

//राज़ दिल के निगाहों से कोई 
सरे महफ़िल बता गया है मुझे// दूसरा मिसरा बह्र का हाथ छुड़ा कर भाग रहा है, संज्ञान लें। 

//जिसकी खातिर सुलग के राख हुई
ठोकरों से उड़ा गया है मुझे// बहुत खूब. 

//कौन ये रात के अंधेरे में 
चांद सा जगमगा गया है मुझे// अच्छा शेअर है। 

//ख़्वाब पर नाम लिखा था जिसका
नींद से वो उठा गया है मुझे// क्या कहने हैं,वाह। 

//छेड़ कर तार मेरे दिल के वो
गीत सा गुनगुना गया है मुझे// बहुत खूब 

//संगदिल से लगा के दिल अपना
सब्र करना तो आ गया है मुझे//  गिरह भी उम्दा लगाईं है, वाह।  

//है मुहब्ब्त भी कैसा खेल 'सिफ़र'
हार कर वो हरा गया है मुझे// मक़्ता भी खूब हुआ है आ० अंजलि गुप्ता जी, मेरी तरफ से ढेरों ढेर बधाई प्रेषित है। 

आदरणीय योगराज sir, थोड़ी देर पहले किसी की ग़ज़ल पर आपकी ऐसी विस्तृत टिप्पणी पढ़ कर ईर्ष्या कर रही थी, कि क़ाश मेरी भी ऐसी किस्मत होती। page 31 से 71 पर पहुंच चुकी अपनी ग़ज़ल ढूंढते हुए जब आपकी टिप्पणी देखी तो जो हर्ष महसूस हुआ बता नहीं सकती। आप सभी गुणीजन का आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहे। 

"सरे महफ़िल बता गया है मुझे" को इस प्रकार लिया था 1122 1212 112 क्योंकि पढा था कि इस बह्र में 2122 1122 112 को 1122 1212 112 भी लिया जा सकता है। यानि पहले 2 की जगह 1। कृपया मार्गदर्शन करें।

हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका दिली शुक्रिया

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"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
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सदस्य टीम प्रबंधन
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