For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सितारे-चाँद, अच्छे दिन, ऋणों की बात जपनी है
सजा कर बेचना है स्वप्न ये पहचान छपनी है
बनाते हम बड़ी बातें तथा जुमले खपाते हैं
सियासत तुम समझते हो मगर दूकान अपनी है 

 

जिन्हें तो चिलचिलाती धूप का अनुभव नहीं होना
कभी हाथों जिन्हें सामान कोई इक नहीं ढोना
जिन्हें ज़ेवर लदी उड़ती-मचलती औरतों का साथ
वही मज़दूर-मेहनत औ’ ग़मों का रो रहे रोना 

 

सियासत की, धमक से औ’ डराया ख़ूब अफ़सर भी
लिखा है पत्रिका में इंकिलाबी लेख जम कर भी
उठा कर मुट्ठियाँ अकसर भरी है चीख नारों की
मगर है ध्यान अर्जन पर.. न छोड़ा हक़ सुई भर भी
*****
सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1039

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on May 4, 2019 at 4:14am

आद0 सौरभ पांडेय जी सादर अभिवादन। वर्तमान हालात, राजनेताओं के चुनावी हथकंडों और उन्हीं के साथ बेबसी में जीने को मजबूर जनमानस को आपने बहुत बेहतरीन ढंग से अपने मुक्तक में जगह दिया। बहुत दिनों बाद आपकी कोई रचना पढ़ने को मिली। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by ram shiromani pathak on May 3, 2019 at 12:15pm

तीनों मुक्तक बहुत सुंदर लगे आदरणीय।।साधुवाद

Comment by Samar kabeer on May 3, 2019 at 11:45am

जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,आपके मुक्तक पढ़े,और ख़ूब आनन्द लिया,भाई कितने सलीक़े से आपने उस सच्चाई को बयान कर दिया जिसे लोग ज़बान पर लाते हुए भी दस बार सोचते हैं,और ख़ामोश रह जाते हैं ।

तीनों मुक्तक लाजवाब हुए हैं,इनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी,मेरी तरफ़ से इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

हाँ, एक बात याद दिलाना चाहूँगा कि ओबीओ से दूर रहकर और अपनी मसरूफ़ियत के चलते आप ओबीओ के नियम भी भूलते जा रहे हैं,शायद इसी लिए रचना के अंत में मौलिक व अप्रकाशित लिखना भूल गए :-))))

Comment by Sushil Sarna on May 2, 2019 at 8:03pm

सितारे-चाँद, अच्छे दिन, ऋणों की बात जपनी है
सजा कर बेचना है स्वप्न ये पहचान छपनी है
बनाते हम बड़ी बातें तथा जुमले खपाते हैं
सियासत तुम समझते हो मगर दूकान अपनी है .... वाह आदरणीय यथार्थ को चरितार्थ करता बेहतरीन मुक्तक।

जिन्हें तो चिलचिलाती धूप का अनुभव नहीं होना
कभी हाथों जिन्हें सामान कोई इक नहीं ढोना
जिन्हें ज़ेवर लदी उड़ती-मचलती औरतों का साथ
वही मज़दूर-मेहनत औ’ ग़मों का रो रहे रोना .... बिलकुल सही बात सर .... कितनी विडंबना है कि फुटपाथ की ज़िंदगी को जो हेय दृष्टि से देखते हैं आज वही फुटपाथ उनकी कुर्सी का आधार बन गया है .... सिर्फ उनकी ही बातें होती हैं , उनकी ज़ुबानी उनके दर्द की कहानी रोज़ दोहराई जाती है ... कुर्सी के बाद नज़र ज़मीन पर नहीं आसमान पर उठाई जाती है। .... बेहतरीन और भावपूर्ण सर।

सियासत की, धमक से औ’ डराया ख़ूब अफ़सर भी
लिखा है पत्रिका में इंकिलाबी लेख जम कर भी
उठा कर मुट्ठियाँ अकसर भरी है चीख नारों की
मगर है ध्यान अर्जन पर.. न छोड़ा हक़ सुई भर भी .... बहुत उम्दा .... खाते भी हैं और डकार भी नहीं लेते .... वोट से पहले ये अपने परिधान भी जन जन में बाँट कर महानता का चोला पहन लेते हैं वोट के बाद अपने परिधान का एक एक रेशा जिस्म से उत्तर लेते हैं .... हर वादे की आड़ में ये अपने हित साध लेते हैं। ...
सर तीनों मुक्तक वर्तमान व्यथा का आईना हैं। इस अनुपम , अप्रतिम प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई आदरणीय सौरभ सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service