For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-45 (विषय: चेतना)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-45 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-45
"विषय: "चेतना" 
अवधि : 30-12-2018  से 31-12-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 5041

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

फ़र्क़
****

चरर्रर्रर्रर.....चरर्रर्रर्रर.....चर्रर्रर।
सुमित ने कार का ब्रेक पैडल दबा कर छोड़ा, फिर दबाया, छोड़ा और दबाया। गाड़ी चरचरा कर आवाज़ करती हुई रुक गई। एक क्षण को उसके और उसके साथ वाली सीट पर बैठी पत्नी मानसी के होश फ़ाख्ता हो गए।

अभी कुछ क्षण पहले वो देख रहे थे कि एक छोटा सा बच्चा सड़क किनारे खेल रहा था जो अचानक सड़क के बीच में आ गया था। और अचानक ब्रेक लगाने पड़े।बच्चा बाल-बाल बचा। पर सुमित के मुँह से गालियां निकलने लगी।
"इनके बाप की सड़क है क्या? साले बच्चे पैदा करके सड़क पर छोड़ देते हैं मरने के लिए। इन्हें क्या है। और पैदा कर लेंगें।
और हम इनके पैर पकड़ कर इन्हें पैसे भी देंगें और कोर्ट-कचहरी भी भुगतेंगे।
संभाल नहीं सकते तो घर में बांध कर क्यों नहीं रखते।"

मानसी अवाक सी देख रही थी। अनायास ही बोली, "क्या जानवर और इंसान के बच्चे में कुछ फ़र्क़ होता है!"

"मतलब"।

"3-4 दिन पहले अपनी गाड़ी के सामने ऐसे ही एक पिल्ला बाल-बाल बचा था। तब तुमने मुड़ कर देखा था कि वो ठीक है। फिर भगवान का शुक्र किया था कि पाप होने से बच गया। और आज ये सब!!!"

सुमित को लगा कि उसके मस्तिष्क में ध्वनि तरंगें सी प्रवाहित हुई हों जिन्होंने उसे सोते से जगा दिया है।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आदाब। आसपास के ही दोहराये जाने वाले  सहज कथनोपकथन पर विषयांतर्गत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई इदआदर अजय गुप्ता साहिब।

बहुत ही सुंदर अर्थ भरपूर लघुकथा,गरीब के बारे ऐसे विचार कई बार अक्सर ही सुनने को मिलते हैं

आदरणीय अजय जी, प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

1. //चरर्रर्रर्रर.....चरर्रर्रर्रर.....चर्रर्रर। सुमित ने कार का ब्रेक पैडल दबा कर छोड़ा, फिर दबाया, छोड़ा और दबाया। गाड़ी चरचरा कर आवाज़ करती हुई रुक गई।// मुझे लगता है कि यदि ये बात साधारण तरीके से कही जाए तो लघुकथा ज़्यादा प्रभावी होगी. 

2. कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें देख लीजिएगा, जैसे : //सुमित के मुँह से गालियां निकलने लगीं।// //और पैदा कर लेंगे।// //इन्हें पैसे भी देंगे//

3. और साथ ही प्रश्नवाचक चिह्न भी : //घर में बांध कर क्यों नहीं रखते?// //"मतलब?"// 

सादर.

  प्रदत्त विषय पर एक अच्छी रचना। बधाई। 

आदरणीय अजय गुप्ता जी , बहुत ही सशक्त लघु-कथा , बधाई , सादर।

ओह, इंसान के बच्चे की कीमत पिल्ले से भी कमतर, थोड़ा आश्चर्यजनक व्यवहार लगता है. बहरहाल विषय बढ़िया है, बधाई इस प्रस्तुति के लिए आ अजय गुप्ता जी

गुस्सा शायद ,बच्चा अगर मर जाता तो वो सब भुगतना पड़ता,जो उसके मुंह से निकला,क्योकि आज के वातावरण में यह लहर बह हैं,कर भला,हो बुरा ,और अगर पिल्ला मर जाता,तो कौन जबाव-तलब करने आ रहा.

फिर भी जान किसी की भी जाये,मानवीयता तो होनी ही चाहिए।बेहतरीन रचना,बधाई,आदरणीय अजय सरजी।

अच्छी कथा हुई है जिसके लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय गुप्ता जी|

अपने संस्कार-- “कितना मना किया था कि पैसे मत जमा कराओ लेकिन मेरी कभी सुनी हो तब तो. अब देखो, सबका कर्जा माफ होने जा रहा है और यह ईमानदारी का तमगा लटकाकर घूमेंगे”, बेटे की चुभती आवाज़ घर में गूंज रही थी. मंगलू एक तरफ खटिया पर बैठा बीड़ी पी रहा था और उसकी मेहरारू आँगन में एक किनारे चूल्हे पर दाल चढ़ाकर बैठी थी. बेटे को अनदेखा करते हुए मंगलू ने मेहरारू से पूछा “रोटी थोड़ी मोटी ही बनाना, बहुत दिन से मन कर रहा है”.
मेहरारू ने सर हिलाते हुए उसकी तरफ देखा और कुछ सोचकर कहा “कभी बचवा की भी सुन लिया करो, आखिर सरकार ही करजा माफ कर रही थी तो फाइदा लेने में बुराई का है”.
बेटे को थोड़ा और बल मिल गया, वह अब मंगलू और माई के बीच आकर खड़ा हो गया. मंगलू को लग गया कि आज यह माँ बेटे मिलकर उसको कोसेंगे तो वह उठने का उपक्रम करने लगा. तभी बेटे ने फिर कहा “आखिर आपने बीस हजार बर्बाद कर दिये, मुझे दे देते तो कुछ बिगड़ जाता. अपने गाँव का ही किसुना आजकल ज़मीनों का कारबार करने लगा है, मेरे लिए तो बस यही खेत और गोबर ही रखा है”.
मंगलू को याद आया, बेटा पिछले कई महीने से उससे पैसे मांग रहा था. वह कस्बे के कुछ छुटभैये टाइप के नेता लोगों के साथ घूमने लगा था और वह एक फटफटी के लिए कई बार कह चुका था. लेकिन मंगलू को उसका इन लफंगों के साथ घूमना फिरना पसंद नहीं था. उसने बेटे को कई बार समझाया भी कि दो ही पैसे मिलें लेकिन सुकून और ईमानदारी के मिलें तो ठीक है.
“इस बार थोड़ी और मेहनत करेंगे तो शायद कुछ पैसे और बच जाएँगे. अब हम जानबूझकर तो डिफ़ाल्टर नहीं बन सकते, बाकी तुम्हारी मर्जी. लेकिन किसी को धोखा देकर दो पैसे कमाना गलत है बेटा”, मंगलू ने बेटे के कंधे पर हाथ रखा और बाहर निकल गया.
मेहरारू को भी मंगलू की यह बात ठीक लगी, उसने बेटे को समझाते हुए कहा “बचवा, अपने बाबू का कहना मानो, गलत रस्ता जाने की मत सोचो. कम से कम उसके जीते जी तो कुछ गलत मत करो”.
बाहर दालान में बैठे मंगलू के कान में भी मेहरारू की बात पड़ी, वह मुस्कुरा दिया. बेटा भुनभुनाते हुए बाहर निकल गया, मंगलू कल की जुताई के बारे में सोचने लगा.

मौलिक एवम अप्रकाशित

आदाब। विषयांतर्गत ग्रामीण कृषक परिवार की हक़ीक़त और मानसिकताओं को उभारती सकारात्मक संदेश वाहक बेहतरीन रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब।

इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों को केंद्र में रख कर कही गई  इस उम्दा गजल के लिए बहुत-बहुत…"
38 minutes ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, अच्छी  ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. अपनी टिप्पणी से…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाई जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छी प्रयास है । आप को पुनः सृजन रत देखकर खुशी हो रही…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय बृजेश जी प्रेम में आँसू और जदाई के परिणाम पर सुंदर ताना बाना बुना है आपने ।  कहीं नजर…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service