आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन प्रस्तुति ।इसको कहते हैं दिमागी सतर्कता।
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब , लघुकथा में आपकी शिरकतऔर हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मुहतरमा नीता साहिबा , लघुकथा में आपकी शिरकतऔर हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
अच्छी लघु कथा | वाह !
मुहतरम जनाब लक्ष्मण लड़ीवाला साहिब , लघुकथा में आपकी शिरकतऔर हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
रास्ते
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कालू भागता-भागता घर पहुंचा।बेटी सुधिया निढ़ाल पड़ी है।कपड़े अस्त-व्यस्त हैं,बाल बिखरे हुए।जोर-जोर से हाँफ रही है।हाथ में पाँच सौ और हजार के कुछ नोट फड़फड़ा रहे हैं।बहुत पूछने पड़ धीरे से बोल पायी,
-लाला के बेटे।
कालू सन्न रह गया।लाला के काम से ही तो वह कई दिनों से बैंकों के चक्कर काट रहा है।रधिया भी कतार में लग-लग कर बेहाल हुई जा रही है आजकल।क्या करे बेचारी?एक से निकलती है,फिर दूसरी कतार में लगना पड़ता है।शाम तक बीस हजार बदल लेना मजाक थोड़े ही है।आज दूसरी दफा कतार में जा पायी थी।दोपहर हो गयी थी।आगे-पीछे करने में मार-झोंटव्वल(झगड़ा) हो गयी।दोनों औरतें अब पुलिस थाने में पूछताछ का सामना कर रही हैं।दूसरी तो विधायक का काम करती है।वह संभाल लेगा।पर लाला कितना कुछ करेगा रधिया के लिए,यह सोच पाना उसे मुश्किल लग रहा था।अचानक सुधिया को हिचकी आयी।लगा पानी पियेगी।उसने उसे थोड़ा पानी दिया।वह पी नहीं सकी।उसका छोटका अभी डॉक्टर साहब को बुला कर आया नहीं।रधिया कराह रही है।वह पहले उसका कुछ उपचार कराये।फिर आगे की सोचे।तबतक छोटका दौड़ता हुआ आया।उसने जल्दी-जल्दी बेतान शुरू किया-
-बाबू, डॉक्टर साहब आने से मना किये हैं।कह रहे थे लाला के लोग आये थे,कह गये हैं कि कालू के घर नहीं जाना,नहीं तो खैर नहीं।
-कुछ और बोले डॉक्टर का रे छोटू?
-हाँ,कह रहे थे कि तेरी दूसरी मइया ने लाला के खिलाफ नोटों के मामले में गवाही
दी है।क्या करती बेचारी! लाला की सेवा-टहल में ही तो रही भर जवानी।बाद में कालू के गले बाँध दी गयी।विधायक ने अपनी नौकरानी को थाने से छुड़वा लिया।इधर लाला अपना नोट होने से मुकर गया।
कालू की भवें तन गयीं।उसने सुधिया की तरफ देखा।वह अब शांत हो चुकी थी।उसे किसी ईलाज की दरकार नहीं थी।कालू की मुट्ठियाँ कस गयीं।एक-एक बात उसे याद आ रही थी।कैसे लाला के लिए वह पत्थर फेंकता रहा।रैलियों में भीड़ जुटाता रहा,भीड़ बनता रहा।लाठियाँ भी खायी उसने,कई बार।बस इसी बात के लिए लाला उसे डराता रहा कि उसकी दूसरी शादी की पोल खोल देगा,कि रधिया उसकी रखैल रही है,बचपन से जवानी तक।बिरादरी में उसकी नाक कटवा देगा।आज भी कभी-कभी उसके यहाँ काम करने आती ही है।उसने छोटू से कहा-
-चल,दीदी की चारपाई उठाते हैं।
-कहाँ जायेंगे?
-थाने। हमनी त घर के अँधियारा भगावे खातिर अँधेरे रस्ते चले।अँधेरा त झोपड़ी तक आ गया।
-कवन अँधेरा बाबू?
-लाला का,उसके नोट का और नीयत की खोट का।
कोई बात नहीं।सब अपने-अपने रास्ते चलते हैं।
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मौलिक व अप्रकाशित
अच्छी लघुकथा है आ० मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI मैं भी भाई सुनील वर्मा जी की बात से इत्तेफाक रखता हूँ कि कई जगह अनावश्यक विस्तार के कारण कथा की गति सुस्त पड़ी हैI एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि यदि मैं यह कथा कहता तो नोट बदली की बात से गुरेज़ करता क्योंकि यह एक ऐसी घटना है जो बहुत जल्द बासी होने वाली हैI
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